पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४२९

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४२० गुरुपुष्प-गुमराह मनुका मत है कि गुरु पुत्र को भी गुरुको नाई व्यव- उन्हें अधिकार है शिवको पूजामें जो चढ़ाया जाता, हार करना चाहिये। टोकाकार कान कभट्टने लिखा है उनके घर आता है। टोल माहबने उन्हें शूद्र-जेभा कि यदि गुरुपुत्र अल्प वयस्क वा अपना शिष्य न हो तो लिखा है। यह दाक्षिणात्य के अधिवासो और शिव, उसके प्रति गुरुमा भाव दिलाव, किन्तु गुरुपुत्र वालक मारुती, हनुमान् आदि मन्दिरोंक पजारी हैं ममानवयस्क या अपना शिथ हो तो उसके प्रति वैमा गुरुभ ( स० क्लो० ) गुरोभं, ६ तत् ।१ पुषानक्षत्र । वर. व्यवहार करना नहीं चाहिए । जो पिताक शिष्यक पाम स्पति इस नक्षत्रका अधिपति होनक कारण इसे गमभ पधायन करता है उसे चाहिए कि वह उनको गुरुको कहते हैं । २ धनुराशि। मोनराशि। नाई मान्य करें। गुरुभाई ( हिं० पु. ) वैमे मनुष्य जिनमेंमे प्रत्ये कका गुरु शिषाको न्यूनवयस्क वा ममानवयस्क गुरुपुत्रका गाव. एक ही व्यक्ति हो। माजन, उच्छिष्टभोजन या पदमद्दन करना नहीं चाहिए गुरुभार ( म० पु०) १ गरुड़ पुत्र । २ बहुत भारो। एवं वैसे गुरुपत्रको सान भी कराना मना है। शिष; देखा गुरुभाव ( मं० पु.) गुरोर्भावः, ६-तत। गुरुता, भारीपन, तान्त्रिकीका कथन है कि मनुका यह विधान सिफे गुरुश्चामी भाव ति कम धा। १ अतिशय गारवान्वित आचार्य गुरुपुत्रक प्रति उपयुक्त है; किन्तु मन्त्रदाता अभिप्राय । ( त्रि. ) गुरुौरवयुक्त: भावोऽभिप्रायो गुरुपुत्र चाह कैसाही क्यों न हो तो भी उन्हें गुरुमा यस्य, बहु वो० । ३ जिसका अभिगय वा तात्पर्य गौरव व्यवहार करना चाहिये। युक्त हो। “गुरुवत् गुरुपर्वेषु।" ( तन्त्रमार ) गुरुभृत् ( मं० पु० ) गुरु गुरुत्व विभर्ति गुरु भकिप वत्त मान मामाजिक नियममे वहुतमे तान्त्रिक उपाम- तुगागमश्च । गुरुत्वयुक्त, जिमको गौरव हो कनि गुरुकं मट्टश गुरुपुत्रको पादपूजा और उच्छिष्टादिका गुरुमत् ( म. वि. ) गुरुः गुरुवर्णोऽस्य अम्ति गुरु मतप। भोजन किया करत हैं। १ जिममें गुरुवर्ग हो। २ गुरुयुक्त । गुरुपुष्य ( मं० पु. ) क्रमुकवृक्ष, सुपारोका पड़। गुरुमदल ( म० पु० ) नित्य कर्म धा। वाद्य विशेष, एक गुरुपुष्य ( मं० पु०) वृहस्पतिक दिन पुषा नक्षत्रके पड़ने तरहका बाजा। का योग। ज्योतिषो इमे शुभ योग मानते हैं। गुरुमुख ( हि० पु० ) दीक्षित, जिसने गुरुमे मन्त्र गुरुपूजा ( म० स्त्रा० ) गुरोः पूजा, ६ तत् । गुरु वा लिया हो। मन्त्रदाताको पूजा । दीक्षित हो कर जिम तरह प्रति- गुरुमुखी ( हिं० स्त्री० ) एक प्रकारको लिाप, इसे गुरु दिन इष्ट देवताको पूजा करनी पड़ती है उमी तरह गुरुः । नानकने चलाया था। आज भी यह लिपि पञ्जाबमें प्रच- पूजा करने का भी विधान है। पूजा देवा, लित गुरुप्रमोद ( मं० पु० ) गुरोः प्रमोदः, ६-तत् । गुरुके प्रति गुरुरत्न ( म० क्लो० ) गुरु गोरवान्वितं रत्न । १ पुष्य सवा प्रोति । (त्रि.) गुरु प्रमोदयति गुरु-प्र-मुद-णिच रागमणि । पुखराज नामका रत्न। २ गोमद नामक अण । २ गुरुका मन्तोषकारक, जिमसे गुरु मन्तुष्ट हो। रत्न । गाप्रमाद ( मं० पु. ) गरोः प्रमादः, ६-तत् । गुरुको गुरुराज-१ एक वैदान्तिक । इन्होंने चन्द्रिका टीका प्रण प्रसन्नता। यन की है। २ वृन्दावनाख्यानम्तोत्र रचयिता । गरुप्रिय ( मंत्रि. ) गुरोः प्रियः, तत् । जिसको गुरु गुरुरामकवि-सुभद्राधनञ्जय नामक मंस्कृत नाटक प्रणता। चाहते हो, जा गुरु का प्यारा हो। गुरुग्व प्रियो यस्य, गुरुराह ( मं० पु.) गुरुणा मह गयंत्र, बहुव्री। बहुव्री । गुरुपरायण, गुल्में जिसकी अचला भक्ति हो।, योगविशेष । वृहस्पति राहुकं माथ एक नक्षत्र में प्रानमे गुरुबू-जातिविशेष। यह लोग शिवको उपासना और 'गुरुराहु' योग होता है। इम योगमै विवाह, व्रत भस्म धारण करते हैं : रुद्राक्षको माला पहननका भी और यज प्रभृति कार्य निषिच है । भविष्यपुराणमें लिखा