पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४३०

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४२८ गुरुवर्चान गुरुवष है कि गुरु और राहु के भिन्न भिन्न नक्षत्रमें रहने पर भी पुनर्वसु वा पुषा नक्षत्रमें वृहस्पतिका उदय हो, यदि एक राशिगत हो तो भी यह योग लगता है। तो पौष नामका वर्ष हाता है। इस वर्ष में धान्यका कालागि दम्वो। । मूल्य दूना वा तिगुना हो जाता है। राजाको शत्रुका गुरुवाघ्न ( सं० पु० ) गुरुव! वातादिप्रकोपजनित- भय नहीं रहता और पौष्टिक कार्योंकी भी वृद्धि हुआ कोष्ठरोध: तहन्ति हन्-टक। लिम्पाकवत, कागजी। करती है। नीबका पड़। अश्लेषा अथवा मघा नक्षत्रमें वृहस्पतिके उदय गुरुवतिन् ( म० पु० ) गुरौ गुरुकुले वर्तते वृत-णिनि ।' होनेमे, उमको माघवर्ष कहते हैं। इसमें पितृगणकी १ ब्रह्मचारी । (त्रि० ) २ गुरुकुलमें रहनेवाला। पूजाको वृद्धि, ममस्त प्राणियोंका मङ्गल, प्रारोग्य, सुदृष्टि गुरुवर्ष (म.ली.पु.) वर्षविशेष, किमो एक वर्षका नाम। धान्य सुलभ, मम्पदको वृद्धि और मित्रोंका लाभ होता है। जैसे वैशाव मामक शेष दिन तककी मोर वर्ष कहते हैं, पूर्व फाला नी, उत्तर फाला नी वा हस्ता नक्षत्रमें बह- उसी प्रकार बृहस्पति मेष राशिकं प्रथमांशमे चनना स्पतिका उदय होने पर वर्ष का नाम फाला न होता है। प्रारम्भ कर जितने ममयमें मीन राशिक शेष अंशमें - इम वर्षे मङ्गल, शस्यवृद्धि, स्त्रियोंका दुर्भाग्य, चोरोंकी चत है उतने ममयको गुरुवर्ष कहते हैं । वर्तमान बढ़ती और राजाओंको मर्वदा उग्रता रहती है। ममममें मानवका दैनन्दिन व्यवहार मौरवर्षकै अवलंबन चित्रा वा स्वाती नक्षत्रमं वृहस्पतिके उदयसे वष का मे ही चला करता है . अन्य किमी ग्रहके वर्षको उम्में नाम चैत्र होता है। इस माल थोड़ी वर्षा, राजाओंका जरुरत नहीं होती। परन्तु ज्योतिवत्ताओंने मभी ग्रहों। मृतुस्वभाव, कोष और धान्यको वृद्धि, ल म रूपवान् व्य- का एक एक वर्ष स्थित किया है। न द ख । वराह क्तियोंको पोडा होतो है। इस वर्ष लोगोंको अवका का मिहिरके मतसे वृहस्पतिकी माध्यमिक गतिमें पक राशि नहीं रहता। के भोग-कानका गुरुवर्ष कहा जाता है। ___जिम वर्ष में विशाखा वा अनुराधा नक्षत्रमें वृहस्पति वृहत्संहितामें लिखा है कि, वृहस्पति जिम माम | उदित होता है, उम वर्षको वैशाख कहते हैं। इसमें और जिम नक्षत्र में उदित होगा, उसके अनुमार मामक राजा और प्रजाके धम की वृद्धि और प्रमन्नता होती है। नामकी भांति उस वर्ष का नाम होगा । वृहस्पतिके कुल किसी तरहका भय नहीं होता। बारह वर्ष हुआ करते हैं, जिमको वार्हस्पत्य मान जिम वर्ष में ज्येष्ठा वा मूला नक्षत्र वृहस्पतिका (12. Yeuts (s cle of Juitor ) कहते हैं । यथा उदय होता है, वह वर्ष जवष्ठ कहलाता है। इस माल कार्तिक, मार्गशीर्ष, पोष, मात, फाला ग, चैत्र, वैशाख, गजा और धर्मज व्यक्ति प्राधान्य लाभ करते हैं । कङ्ग जैाष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्र और आखिन कृत्तिका वा | और शमौके मिवा और मब धानोंकी हानि होती है। रोहिणी नक्षत्र में वृहस्पतिके उदय होनेसे कात्तिक नामक पूर्वाषाढ़ा वा उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में ब्रहस्पति उदा. वर्ष होता है। इस वर्ष में शकटजीवी, अग्निजीवी और से वर्ष का नाम प्राषाढ़ होता है। इसमें सूखा पडतो गायोंको पीड़ा होती है। बहुतसे लोग व्याधिग्रस्त और है और अलब्ध वस्तुओंका लाभ तथा लब्ध वस्तकी रक्षा शस्त्रके आघातमे मर्माहत होते है। लाल और पोल्ने | होती है। परन्तु राजाकीको व्यग्रता होती है। फ लोकी वृद्धि होती है। जिम वर्ष वृहस्पति श्रवणा वा धनिष्ठा नक्षत्र में उदित ___ मृगशिरा वा आर्द्रा नक्षत्रमें वृहस्पतिका उदय हो होता है, उम वर्षकों श्रावण कहते हैं । इसमें मब तो उस वर्ष का नाम मार्गशीर्ष होता है । इस वर्ष में | तरहका अनाज निर्विघ्न पकता है, पर उक्त अनाज- सूखा पड़ती है और मृग, चूहे, पक्षी, और टिटीयों आदि को खनिमे मनुषा और पाखण्डियोंको पीड़ा होती है। से अनाज मष्ट होता है । मनुष्यों को व्याधिका भय और शतभिषा, पूर्व भाद्र और उत्तरभाद्रपद, इनमें से किसी राजाओंकी मित्र के साथ शत्रुता होती है। एकमें वृहस्पतिका उदय हो, तो उस वष को भाद्रवर्ष