पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४४३

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गुलाब-गुलाबचश्म गुलाबके खुशबूका अंश अर्थात् अतर पानीमें अच्छी तरह बजारू अतर पिसे बनता है, जिस पात्र में भाषामा मिल जाता है, नहीं तो अपर ही अतर तैरता रहता है कर जमती है, उसमें पहिले होमे चन्दनका तेल रखा और इमोसे उमको खुशबू भो स्थायी नहीं रहती। आज रहता है। सुगन्धयुक्त भाफ पाकपात्रमे भवका पात्र कल बाजागेमें जो गुलाब जल बिकता है, वह एक आते ही उसका गन्धाश चन्दनके तेल साथ मिल जाता हजार फलामे दो मेर बनता है। बहुतसे दूकानदार है, और भाफ अलग हो जाती है। इस प्रकार वो तो अतरक बचे हुए पानी में जरामा चन्दनका अतर मिला गुलावसे बहुतसा चन्दनका तेल सुवामित र जाता, कर उसे ही बढ़िया गुलाब-जल कह कर बेचा करते हैं। और वही गुलाबका अतर कह कर बाजार में बेचा जाता गाजीपा करोव चालीम जगह गुलाब बनता है, वहाँ है। बना. चमेली जहो, केवडा आटिक अतर भी से गुलाबजनमें खर्च बाद देकर कर ब ४० हजार रुपये ही बनते हैं । इम प्रकार चन्दनकै तन्नमें दूसरोंकी नाभ होते हैं। इम देशम गुलाब जल बनाते ममय सुगन्धि घुसेड़ कर मिश्र अतर बनता है। विलायतम फलके डण्ठल नहीं तोड़ते, इम लिय उमको खुशबू भी अतर अग्निक उत्तापमे नहीं चुआया जाग। वहाँ ज्यादा दिन नहीं रहतो, शोघ्र श्री बट्टापन आ जाता है गुलाब के ऊपर माफ चर्बो विकाकर, उमक ऊपर ताजे अतएव गुलाब जन्नको सुगन्धि बहुत दिनों तक स्थायी फल रवदेते हैं, इममे फन्नीको खुशबू चप मिल रखनेवालीको चाहिये कि, फन्नोंके डगठन तोड कर जाती है। इसी प्रकार १५-२० वार फ ल रग्वकर बाद- गुलाब जन्न बनावें। में चर्बी को सुरामार ( शराब या तेजाब ) में घोल कर अर ना नियम-गुलाब-जलको तरह इसमें भी रख देते हैं, इममे चर्बोको सुगन्धि मुरामाम आ जाती नाबका डेगचीमें फ ल और पानी रखकर उबालना पड़ता है, और चर्बो अन्नग हो जातो है। इममे बनत बढ़िया है, और उमममे भाफ त्तकर भवका पात्र में आती है। इस अमली अतर बनता है। प्रकारसे जब तमाम पानो जल जाय, तब उम भाफको ऐमा प्रवाद है कि--सुप्रमिद्ध न रजहान बेगमने एक चपटी डगचीम ढाल कर उसका मुह मोटे कपड़े मे १६१२ ईमें सबसे पहले अतरका आविष्कार किया था। बांध देना चाहिये। बाद में २ हात नोचो जमीन खोद मम्राट जहांगीरके माथ उनके विवाहकै ममय गुलाब कर उसे ठगडकम गाड़ देना चाहिये। मारो रात गड़ी जन्नका स्रोत वहा था, बगीचेक नालेमें गुलाब जलक रहनेमे, उम पानोके ऊपर तेल मरीखा अतर तैर निक- ऊपर तेन्न मरोखा कुछ तैरते देख न रजहानन उम संग्रह लेगा। गत जितनी ठण्ड पडेगो, उतना ही ज्यादा करनेका हुक्म दिया। उन हो मे फिर अतर बना था। अतर निकलेगा। इसलिये हेमन्त और शोतऋतुमें अतर बम्बई में गुलाबको सूखी पखुड़ियां ३, रु० और बनाना चागिये। सुबह उम तैरते हुए अतरको निकाल बिकती हैं। कर प्रोममें रखना चाहिये, और फिर घाममं सुखा लेना गुलाब-हिन्दीक एक कवि । कविताका नमूना यह है- चाहिये। पहले पहल वह अतर देखनमें कुछ कुछ हरा "गामादान मांग सुखद सुभौम लाग सा दोखता है । फिर कुछ दिन बाद अमली अतरका वैसा पोन लागे । पद विया गिनी पियाग। रङ्ग नहीं रक्षता अमलो अतर एक ममाहक भीतर भीतर सन्दा मवादन सभोजन नगमलारी कुछ पीला हो जाता है। यही सबसे येष्ठ है। जगम मनोजलागे यागिमक निया। रोमा अतर एक लाख गुलाबो एकही तोला बनता है करत नाय वम फलन पलाम लागे और समय समय पर ८० से १००, तोम्ने तक विकता सकल विनामन के समय सुनियर्ग। है। ऐसा बहुमूल्य अतर सहजम नहीं मिलता। दिन पधि मिलारी मतपति पान लागे बाजारों में जो अतर मबसे उत्कष्ट कह कर बिकता है. तमसु-1 मागे पागलागे विरा" वह भी इससे बहुत गिकष्ट है। गुलाबचश्म (फा० पु०) एक तरहका पक्षो। यह खैर गया ____Vol. VI. 111