पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गुलाब-छिड़काई-गुलाबसिंह होता है । इसकी चोंच काली और पैर लाल होते हैं।। १७८० ई० में रणजित्देवर्क मृत्यु के बाद उनके पुत्र यह बहुत मधुर स्वरसे गान करता है। विजयराय, इसके बाद विजयके पुत्र सफरीदेव और गुलाब-छिड़काई (हिं. स्त्री०), विवाहमें एक प्रथा । विजयके कनिष्ठ भ्रातुष्युत्र जयसिंह जम्ब के राजा हुए । इसमें दोनों पक्षोंके मनुष्य आपसमें गुलाब जल छिड़कते जयसिंहके अभिषेक वर्ष १७८८ ई० में गुलाबसिंह पैदा है।२ दान, दहेज। हुए थे । गुलाबजम (फा० पु०) एक पुकारकी झाड़ी जो आमामको | पंजाबकेशरी रगाजिमिहन मिश्र दीवान चंद नामक पहाड़ियों में होती है। इसको छालके रेश से रम्सियां | एक सेनापतिको जम्बु, जोतने के लिये भेजा था। यहां बनाई जाती हैं। राजपूत राजाओं के साथ मिखमेन्यका घममान युद्ध हा । गुलाबजामुन (हिं० पु०) १ एक प्रकारको मिठाई। इसके उस युद्ध में अठारह वषके गुलाबमिहने जिम तरह वीरत्व बनानेमें पहिले आटे और खोयाको मिलाकर छोटे छोटे दिखलाया था, उसमे मिख सेनापति दीवान चन्द मुग्ध टकडे किये जाते हैं और फिर व्रतम छानकर चाशनी में होकर पंजाबमिंझके निकट गुलाबसिंहकी अधिक प्रशंसा डुबो देते हैं । २ एक प्रकारका व त जो शोभाकै लिए की थी। उद्यानमें लगाया जाता है। ३ डम पंडका फल जो खनिमें जम्बु शिखगजाके हाथ आ गया। जम्ब- बहुत स्वादिष्ट होता है, इमर्क अन्दर एक कठिन वीज राजपरिबार अत्यन्त विपन्न और विषम्म हो गया। उस रहता है। समय गुन्नावसिंह और उनके छोटे भाई ध्यानसिंह मीया मुखाबतान (फा० पु.) एक प्रकारका हायो । मे हाथी मोती बहुत कष्टसे काल क्षेपण कर रहे थे। इस कारण का ताल गुलाबी रंगका होता है जो शुभलक्षण समझा वे थोड़ो ही उम्रमें अपनी अदृष्ट परीक्षा लिये दशवर्ष- बाता है। के लड़के ध्यानमिहको माथ ले बाहर निकले। दवान बुलाबपाश ( फा० पु. ) गुलाबजल रखनका एक तरहका चन्दका प्रशंमावाद उन्हें कर्गागोचर हुआ । वे आगा. पात्र जो झारीक आकारका होता है। पूर्ण हृदयसे मिखमहाराजके अनुग्रह प्रार्थी हो लाहोर पा गुलाबपासी (फा० स्त्री० ) गुलाबजल छिड़कनकी पहुंचे। किन्तु इम वार उनका इतना कष्ट और परि क्रिया । मुलाबराय-हिन्दोके एक जैन कवि, इन्होंने वि. मं० श्रम निष्फल गया, प्रायः तीन महीने लाहोरमें रहने पर १८४२ में इटावामें मोतीराम और सिरलालके माथ रहकर भी महाराज रणजित्का उन्हें दर्शन न हुआ। इम लिये 'शिखरविलाम' नामक एक पद्य ग्रन्य रचा था। निराश हो अपने छोटे भाईको साथ ले जन्मभूमि लौट मुलाबसिंह --हिन्दी भाषाकै एक कवि । वह पञ्जाबी थे । गये। यहां प्राकर भी आत्मीय स्वजनोंका कष्ट देख वे १७८८ ई०को उनका जन्म हुआ। उन्होंने रामायण, बह त ही दु:दित हए । उच्च राजपूरवंशम जन्म ले घर- चन्द्रप्रबोध नाटक, मोक्षपन्य आदि कई एक वेदान्त ग्रन्थ म कायर पुरुषको नाई रहना उन्हें तनिक भी पमन्द न लिखे । प्राया। हम ममय ये अकेले ही बाहरको निकले । गुलाबसिंह-राजपूतवशाय काश्मोरके महाराज और वितस्ता नदोंके तोर आ वे बहुत ही शान्त हो गय । वर्तमान काश्माराधोम्वर प्रतापसिंह पितामह । उम स्थानसे थोड़ो हो दूर पर मुन्न ला नामक दुग अव १८वीं शताब्दीमै काश्मोरके उत्तरवर्ती जम्ब प्रदेशमें | स्थित है। संयोगवश किलेदार वहां टहनते हुए आ रूपदेव और उनके बाद उनके पुत्र रणजित् देव राज्य पहुचे और गुन्नाबका सुन्दर और वीरोचित कान्ति देख करते थे। ये अपनेको चन्द्रवंशीय राजपूत बतलाते थे। उनसे परिचय पूछा। युवक गुलाबसिंह उस किलेदार रूपदेवके कुशदेव और सुरतदेव नामके दो पुत्र थे और के निकट ३, रु. मासिक वेतन पर एक सामान्य सैनिक कनिष्ठ सुरतदेवके वशमें विख्यात गुलाबसिंह उत्पन' पद पर नियुक्त हुए। किन्तु यहां भी अधिक दिन रह न सके । उनका युहनैपुण्य और कार्यकुशलता देख किले-