पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४४६

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४४४ गुलाबसिंह होतो देख, बहुतसे मनुथोंने गुलाबसिंह पर आक्रमण । मनुष्योंको अपनी मुट्ठोमें कर लिया। थोड़े ही समय में किया। गुलाब और ध्यानमि'हमे किसी तरह भाग कर वे हिह का छिन्त्र मुण्ड ले लाहोर पहंचे। महाराज मिश्र दीवानचन्द को छावनी में आ आत्मरक्षा की। वह ; रणजित्ने गुलाबके कार्य से संतुष्ट हो उन्हें प्रचुर अर्थ हत्या कहानी महाराज रणजित्के कर्णगोचर हुई । किन्तु और बहुतसो जागीर प्रदान की। फिर भी रणजित्- वे इससे तनिक भी दुःखित नहीं हुए, वरन् उन दोनों मिहके आदेशसे गुलाबसिह कृष्णवा और जम्व के उत्तर- भाइयोंके ऊपर बहुत सन्तुष्ट हुए थे, साथ ही माथ उन। वर्ती पावतीय भूभाग जीतनके लये बाहर निकले । उन.' की पदवृद्धि भी को गई। अभी गुलाब विविध पारि ! के सौभाग्यक्रमसे दुर्दान्त पावतीय जातियोंन सहज हीमें तोषिकर्क मवा प्रतिदिन १८, ०० पान लगे थे। उनको वश्यता स्वीकार की थी। १८१७ ई० में राजपूत- जम्ब राज्य मिखोंक हस्तगत होने पर रणजिमिंहने । वीर सफलता लाभकर पंजाबकेशरोक निकट लौट आये। दीवान भवानीदामको ममैन्य जम्व, शामन करनेके लिये इस बार भी इन्होंने यथेष्ट पुरस्कार पाया था । भेजा। पिग्व मैन्यको देख कर ही जम्व राजके परिवार इस समय ध्यानसिंह देवड़ीवाला अर्थात् मर्वप्रधान शत? नदीक दूसरे पार भाग आये। इमर्क बाद जम्व- हाररक्षक पद पर नियुक्त इ.ए थे । रणजित्मिह वामी राजपूत के माथ मिवांका मर्वदा विवाद रहा करता गुलाबको अपेक्षा ध्यानमिह और चेतमिहको अधिक था, किन्तु इसमे राजपूत ही अधिक कष्ट भोगते थे। इस समयमै दिह नामके एक मनुष्यन पर्व तसे गुभावमें जवु आ मिखांक ऊपर अत्यन्त ही अत्याचार करना प्रारम्भ किया। धोरे धीरे हिह. के उपद्रवमे जम्ब का राजकर तक भी बन्द हो गया। यह संवाद रगाजित्मिहके निकट पहुंचा। उम ममय गुलाबसिंह पञ्जाबकेशरीके पास ही माजद थे। उन्होंने मिखराजमे कहा कि जम्व का जमादार कुशियालमिह म्वय स्वाधोन होनक 'लये पार्वतीय जातिको मिखांक विरुद्ध उत्तं जित कर रहा है। एमके पहले हो गुलाबने दीवानचंदको समझाया था कि उन लोगोंको मातृभूमिको रक्षाका भार यदि उन्हीं मनाब 4 पर सौंपा जाय, तो इस तरहका दुर्घटना कभी भी नहीं चाहते थे। उन्होंने दोनों भाईयों को "राजा" उपाधि हो सकती है। दीवानचंदन भी गुलाबका पक्ष ले। अर्पण की। किन्तु ज्येष्ठ भाईको एमः उच्च उपाधिके महागज रणजिमिहके निकट जम्बकी कथा कह न मिलने पर उन दोनोंने रणजितमि हम कहा, "महा- सुनाई। पञ्जाबकेशरीने गुलाबको जंव और भीमबटके। राज! हम दोनोंसे जो ज्येष्ठ हैं, सब काममि जो हम निकटवर्ती चालोम हजार रुपये आमदनीको सम्पत्ति लोगोंकी अपेक्षा उपयुक्त तथा वोर और विन हैं, जब जागीरम उन्हें पाव तोय जातिको दमन करने के लिये उनके भाग्य में ऐसी उपाधि न ह.", तो हम दोनों किस तरह राजाको उपाधि ग्रहण कर मकत हैं ?" नियुक्त किया। कनिष्ठ भाश्योंक ऐमे कौशलप गां वचनम महाराज गुलाबमिह ५।६ मौ मन्य साथ ले जम्ब की ओर रणजितने गुलाबसिंहको भी "राजा" उपाधि दी। रवाना ह.ए। वे बह त दिनके बाद अपनी जन्मभूमि | इस तरह १८१८ ई.में सिख नरपति हाग गुलाब जम्व - पहुंचे। यहां गजपूतान उनका यथेष्ट सम्मान किया। के राजा, ध्यामसिंह भौमवर और कुशलके राजा तथा चतुर गुलाब प्रधान प्रधान मनुष्योंको प्रथहारा वश कर सुचेतसिह रामनगर और चम्वा प्रभृति स्थानोंके राज. ने लगे। इस तरह घूम देकर दिद के पक्षके बहत' बनाये गये ।