पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४४९

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गुलाबसिंह इधर कावलमें बहुतसे अंगरेजो सेनिक मारे गए।। कराया। शरसिंहने सोचा कि अब मिहामनका दावा सेनापति पोलक ससैन्य काबुल पहुचे और गुलाबसिंह करनेवाला कोई न रह गया। किन्तु दुष्ट ध्यानमि ह को इस लड़ाई में योग देने के लिये संवाद भेजा। गुलाब | भी जिससे उसके ऊपर किमी तरहका आधिपत्य कर न मिह पहले दुविधामें पड़ गये, क्या करना चाहिए उनको मके, उमकी भी कोई तरकीब सोचने लगे। सिन्धुवान्नाक कुछ समझमें न आया। अन्तमें सेनाके साथ हजारासे मरदार लेनासिंह और अजीतमिह राजाका पस प्रव- पेशावर क्षेत्रको आये। किसी किमी अंगरेज ऐतिहा लम्बन कर ध्यानमिहके नाशकी चेष्टामें थे। सिकन लिखा है जिमसे ब्रटिश सैन्य महजमें हो खवर धानमिहने जम्ब में भाईको मब खबर जसला कर पथ पर न पहुंच मके, एवं देशीय सैन्य जिससे भयभीत उन्हें शोघ्न हो पाने लिखा। गुलाबसिह चांदमारी और विचलित हो जाय, गुलाबसिंह गुक्तभावसे माहो के मृत्य मंवाद पाकर निश्चिन्त हो गये। चांदकमारीका कार्य करने की चेष्टा करते थे। किन्तु जब उन्होंने देखा | रखा हवा लाख रुपये का मगिरत्न आज उन्हीं के हाथ कि अटिश मनिक नानाप्रकारके दाखौको दूर करते हए। लगा। मर्वदा उन्हें एक यही चिन्ता लगी रहती थी अपने कार्य में मफलता दिग्वला रहे हैं, तब उन्होंने निराश कि यदि चांदकुमारी शरमिहके माथ मिल गई तथा हो सृटिश सेनापतिको कहला भेजा कि “वह यथामाध्य उनके पाम जो सब धन रत्न रखा हआ है वह शरमिह वृटिशकी महायता कर रहे हैं, किन्तु अभो माहाय्यका जान जावे तो उन्हें एक भारी आपत्तिमें गिरनेको मम्मी- कोई प्रयोजन न जान वह स्वराज्यको लोटे जा रहे हैं।" वना है। जी हो, आज प्रमवचित्तमे गुलाबसिह लाहौर उक्त विदेशी ऐतिहामिकका कथन विश्वासयोग्य पहचे। यहां अधिक दिन रहने पर शायद किमौके नहीं हैं। गुलाबमिहने जिम तरह ब्रटिश गवर्मेटको मनमें कोई मदेह हो जाय, इमी लिय वे धामसिंहको मैन्य द्वारा माहाय्य किया था, उममें तनिक भी मदेह उपयुक्त सलाह दे कर शीघ हो जम्ब राज्यको लौट पायं । नहीं किया जा सकता। क्योंकि वटिश राजपुरुषने गुलाब गुलाबमिहके आर्द शानुमार धानमिहने रणजिसके एक सिंहके कार्य मे मतुष्ट हो उन्हें जलालावादका स्वाधीन । पांच वर्षके उत्तराधिकारी को राज्यमिहामन पर बैठाना अधिकार प्रदान किया था। स्थिर किया। उन्हीं का नाम मुविख्यात दलीपसिह था । इम ममय लाहोरमें एक भयङ्कर दुर्घटना हुई। महा- दौमा टेवा । रानो चान्दकुमारी नवनिहालके धरमें रहती थीं। शेर शेरसिंह ध्यानसिंह के व्यवहारसे भयभीत हुए, इम- सिहने उन्हें पानेको इच्छासे अनेक तरहके उपाय रचे | लिये उन्हें ध्यानर्मिहके विरुद्ध कोई कार्य करनेका माहम थे, किन्तु उनका अभीष्ट सिद्ध नहीं हवा। वरं चांद न हुआ। किन्तु यह उपयुक्त काल ममझ दुष्ट सिन्धः कुमारीने अत्यन्त घृणामे शेरमिहको इस तरह खबर दो वाला मरीन मदमत्त शरसिंहमे ध्यानसिंहका शिर- थी "प्रसिद्ध कुणियावंशमे मेरा जन्म हैं, मैं सुविख्यात के द करने के लिय आदेशपत्र ले लिया। इधर उन्हीन जयमालको कन्या ह, शरमिह जैसे- रजकपत्रके गजाका दण्डादश-पत्र देखा कर ध्यान सिंहको चिन्ताम हाथ आत्मसमर्पण करने में अत्यन्त लज्जा होती है।" महा डाला। उस समय दुष्ट मिन्धवाला मरन ध्यानसिंहमे राज शरसिंहने मोचा कि ध्यानसिंह और गुलाबसिंह कहा "यदि आप आज्ञा करें तो हमलोग अभी उस दुष्ट चांदकुमारीके पृष्ठपोषक हैं, इस लिये अवस्थाहीन होने शरमिंहका मस्तक दो खगड़ कर मकत हैं "धानमिंह पर भी चांदकुमारोमै उनको अवज्ञा की। वे जानते थे | इसमे महमत हुए । दूम दिन दुवत्त मिन्धवालाने महा- कि चांदकुमारी ही उनके सिंहासनका एक मात्र कंटक राज शरमिंह और धानसिंह दोनोंको मार डाला। है। इसलिये उन्होंने चांदकुमारीको चार महचरियोंको रसिक और ध्यान की। जागौरका लोभ दिखाकर वशीभूत किया और उनके हीरामिहके यत्नसे बालक दलीपमिह पञ्चमदक हारा अत्यन्त कठोरतासे चाँदकुमारीका प्राणस हार भी । सिंहासन पर अभिषिक्त हुए। हीरासिंहने वीरका