पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४५०

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४१ गुलाबसिंह पढ़ पार । थोड़े समयके बाद की होरामिह और उन- | तुम्हारे चारो ओर शत्र हैं। जैसा मैं देखता है, उससे के पाच सुचेतसि हमें हेष प्रारम्भ हुआ । सुचेतसिह कब किस तरहकी आपत्ति आ पहुचेगी, इसका कुछ के पर अनेक राजमहिला विमुग्ध थी, यही होरा ठीक नहीं है। मेरी इच्छा है कि तम्हारे पिताकी और सिंहकी रेषताका कारण था। यहां तक कि दलीपको मेरी यहां जा समस्त बहुमूल्य अस्थावर सम्पत्ति है, उसे माता महारानी चन्दा भी सुचेतको अत्यन्त पसन्द करती अभी हम लोगांका पिटराज्य जवुमें ले कर रखना ही थी। पगिडत जल्ल नामक होरामिहके एक प्रियपात्र थे, ठीक है। उसमें तुम्हारी क्या सम्मति है ?" हीरासि सुचितमिहक महश राज अन्त:परमें वे भी जात पात थे। ज्येष्ठतात कौशलपूर्ण वचनों पर किसी तरहका प्रति- मयोमका एक दिन अन्तःपरके शयनग्रहमें दोनोंकी वाद कर न मका। इस तरह गुलाबमि इन निष्ठ सुचेत- मेंही गई। इमसे सचेतमिह पगिडतके ऊपर बहुत सिह और असंख्य मणिरत्नादि ले स्वराज्यका प्रस्थान होमोधित हो उठे। उन्हें मालम था कि पण्डित इस | किया। उस समय ऐमा माल म पड़ने लगा कि, लाहारके घटनाको होगमिहसे कह देंगे। जो कुछ हो, सुचेत- राजभण्डारमें एक प्रकारको चोरी हो गई है। मिल राजमाताको महायतासे प्रधान मन्त्री के पद पाने जवुमं पा गुल्लावमिहन सुचतमि हमे कहा “भाई ! को पेष्टा की, रामो चन्दाकै भाई जबाहिरमिहने भी | देखो, मुझ तोन चार पुत्रमन्तान हैं, किन्तु तुम्हें एक भी इसमें योग दिया। होगमि'हने ज्येष्ठ भ्राता गुलाबसिंह मन्तान नहीं है, मेरी इच्छा है कि तुम मेरे एक पुत्रको को बोतसिहक इस व्यवहारक विषयमें लिख भेजा तथा दत्तक पुत्र बना लो।" ज्येष्ठ भाईकं वचनी पर सुचेत- में एक बार लाहोर आनेकी प्राथ ना की। किन्तु | मिह राजी हा गये। इस तरह गुलाबमि हक एक पुत्र धू सबमिह पहल प्रानको राजी न हुए। अन्तमें ! मुचेतकी ममस्त जागीर और भूसम्पत्तिकै भावी उत्तरा- न मासूम क्या सोचकर वे लाहोर आपसे आप आ पहुंचे। धिकारी हुए। लालस्वामियोंनि उनका यथेष्ट सत्कार किया। यहां इस बार गुलाबमिह अपने स्वार्थ मिडिका दूसरा आ गुलाब मिहने सुना कि --जबाहिरमिह दलीपको ले उपाय सोचने लगे। रणजिमिहक काश्मीरा और पशोरा वृटियाराजामें भाग जानकी चेष्टा करते थे। सुचेतसिंह नामक दो पुत्र थे। गुलाब मिहने उनक नामका जाल कर भी इस षड्यन्त्रमें लिा थे। मिख मैन्यके माल म एक पत्र तैयार किया उममें लिखा गया,था कि मिन्धवाला- होने पर उन्होंने दलोपमिहको जा घेरा । बजोर होरा- प्रांकि राजहत्या और मत्रिहत्याकागडम उन्हीं दोनों भाई- सिक माहनपर जबाहिरमिह लोहके पिंजड़े में बंधे हैं। यांका षड़यंत्र था। रणजत्सि काश्मोर महक। मियाल- गुखाबसिंह सुचेमिह पर जिमसे किसी तरहकी | कोट और पेशोरासिंहको चन्द्रभागाकै ग'ड्यावाला दुग जोखिम-पहचे पहले उमौका वन्दोवस्त करने लगे। दे गये थे। काश्मीराक अधीन मयरसिह नामक एक किन्तु तो भी होगसिहन किले में सुचेतसिहके अधीन जो वृद्ध किलेदार थे । उनन भी दोनों भाइयोंके विरुद्ध झठी दो सम्बदल थ, उन्हें भगा दिया और साथ ही साथ गवाही दी। लाहोरस उन दोनों भाइयोंकी वन्दो और यह भोगवाजा दी कि उनको अनुमति विना सुचेत- उनको सम्पत्ति जब्त करनेका हुकम पाया । लोभी मिथचना उनके किसी मनुष्य के साथ किसो सरहका जम्बु राजने सियालकोट और गाड़यावाने में सैन्य भेज. महामनकव" । कर दोनों भाइयोपर आक्रमण किया और उनको समस्त मुलाबसिंहने होरामिहको बहुत ममझा बुझा कर | धन सम्पत्ति लूट ली गई। काश्मीरा और पे शोरा स्वप्न- राबडाद शान्त कर दिया। सुचेतमिह उनके साथ | में भी नहीं सोचते थे कि इस तरहसे अकस्मात् उन दोनों जम्न भनियो प्रस्तुत हुए । तब अर्थ ग्टन गुलाबसिहने के ऊपर कोई आक्रमण कर सकेगा। जो हो, अभी उन्हीं होवित्र कहा, “यह तुम्हारा जी प्रधान प्रतिवन्धक ने निराश्रय अवस्थामें परिवारके साथ एक सिखगुरुका था, उसे अपने साथ ले जा रहा है। तिस पर भी | प्राश्रय ग्रहण किया। इस स्थानमे उन्होंने लाहोर और