पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४५२ गुलाबसिह-मुलाब-बाड़ो रल लाहोर दरबारमें उपस्थित न हो सकें, उसो लिये वं मे गटको ७५ लाख रुपये देकर महाराज गुम्लाबसिह कसूर नामक स्थानमें बड़े लाटसे आ मिले, किन्तु बड़े उम विस्तीर्ण भूभागके स्वाधीन राजा हुए । वृटिश गवन- लाटने उनके कथन पर कुछ भी धान न दिया। तब गुलाब मट तथा लाहोर दरबारमें इनका कोई मस्पर्श न रहा। सिंहने अभिमानसे कहा था-“यदि में युद्ध करता, तो गुलावमिह तथा उनके वंशधर स्वाधीन राजा हो कर दूमर ही प्रकारसे लड़ाई समाप्त हो जाती । वैमा होमसे उक्त राज्यका भोग दखन करते रहेंगे " अपने ही फ'देमें अपनेको ब'धा न रखता । यदि मैं लड़ा जो कुछ हो गुलाबसिह इतने दिनों पर पूर्ण मनो , ईको इच्छा करता तो दिल्ली और फिरोजपुरमें अम्मी रथ पाकर काश्मोरकी ओर रवाना हुए । उम समय हजार मेन्य जमा कर मकता ।"वीरवर हार्डिचन भी लाहोर दरवारकै अधीन शेख इमामहान काशमोरके कहा था, "पजाबकी राजधानी में अंगरेजोंके रक्तपात का शासनकर्ता थे । वे महजमें काशमोरराज्य छोड़ने राजी बदला लिया जायेगा " गुलावसिंह हताश हो लाहोर म हुए । वृटिश सेनापति लोरेन्सने ब्रिगेडियर हु दलरको लौट आये। गुलाव कोई उपाय न देख वालक दलीप ममय काश्मीर भेजा। वृटिश सैनाने इमामुद्दीनको सिंहको ले ललियाना नामक स्थानमें लार्ड हाडनको वहां से भगा दिया। बहुत ममारोहके साथ महाराज छावनी में पहुंचे । बड़े लाटने दलीपको अत्यन्त आदरमे गुन्नाबमिह स्वाधीन राजाके मदृश काशमीरके सिंहासन ग्रहण किया और मर्दारों को मम्बोधन कर कहा, "दलीप पर अभिषिक्त हुए। मामाना ३, क. मासिक तनखाह सिंह पजाबके सिंहासन पर प्रतिष्ठित होगा तथा युद्धका पानेवाले सैनिकसे आज गुलाबमिह काश्मोरकै स्वाधीन खर्च डेढ़ करोड़ रुपये देना पड़ेगा। किन्तु विपाशा और राजा हो गये , यह कम आश्चर्य की बात नहीं है । इस शतद्रुके मधाका प्रदेश सटिश गवर्न मे गटके अधीन । महोच्च पद पर शोभायमान होते हुए उन्हनि जीवनके रहेगा।" शेषकाल सुखस्वच्छन्द और शान्तभावमे व्यतीत किया । उसके बाद लार्ड हार्डिञ्जने लाहोर पा दलीपको २री अगस्त १८५७ ई० में गुलाब अपने पुत्र रणवीर मिहामन पर बैठाया। दरबारमें बड़े लाटने कोहिन र सिंहको काश्मीर राज्य प्रदान कर आप परन्तोकको देखना चाहा तब गुलाबमिहने अपनेसे हो कोहिन र सिधारे। लागरज राजपुरुषोंको दिखाया। गुलाबमिहभङ्गो-पञ्जाबके एक विख्यात भङ्गी मर्दार । ८ मार्च १८४६ ईमें बड़े लाटको छावनी में एक इन्होंने महाराज रणजित्मिहके विरुड कई बार लड़ाई बड़ा दरबार लगा । उम दरबारमें सिख पक्ष के महाराज को थी। १८०० ईमें बालक गुरुदत्तमिहको अपने दलीपसिंह और उनके समस्त प्रधान मर्दार उपस्थित स्थानपर रख आप परलोकको चल बसे । उनको मृत्य के थे। यहां वृटिश गवर्नमेण्ट और लाहोर दरबारमें मन्धि मवादसे उत्साहित हो महाराज रणजित्न भङ्गी सर्दा- पत्र स्वीकार किया गया बड़े लाटने पहले ही से गुलाब रकी विधवा महिषो गनो सुम्वासे अमृतसरका लोहगड़ मिहके विषयमें कुछ विचार करनेका निश्चय कर लिया दर्ग छोन लिया। विधा तथा मनापातगपरे साथ ले था। अब उन्होंने एक करोड रुपये ले गुलाबमित्रको जंगल जा कर आत्मर किया। गुल्लाबामदन सिखे। काश्मीरके साथ विपाशा और सिन्धु नदीके मधावतॊ गुम्लाबसिंह मेजतिया-पा होरामिहके भाई मोयो पार्वतीय राज्य बेच द नेका प्रस्ताव किया। गुलाब भी रणजित्मिहके पूर्व पुरुषगरोता नामक स्थानका भेजा। इम प्रस्तावमें महमत हुए । वे उसी दिन एक स्वाधीन सिखधर्म ग्रहण किया था। बाद मर्दार उत्तरसिं स्वप्न राजाके जैमा गिने गये । १५वीं मार्च में अंगरेजोंने गुला- गुलाबांम ( फा० ) गुल भव्याम या पो मीयां जबादिरहिन दोनों बको 'महाराज' की उपाधि दी । म दिन स्थिर हुआ गुलाय-बाड़ी (हिं० स्त्रो० ) एक त प्रतएष में अभी उन्हों कि “सिन्धु नदोके पूर्व इरावती नदो पश्चिममें चम्पाके हर एक जगह शोभाके लिय गुलाब। सब खालका माथ जो विस्तोण पार्वतोय भूभाग है, वृटिश गवन- जाती हैं। यह उत्सव प्रायः चैत्र मास'चे । गुलाब-