पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४५९

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गुल्म • कट, अम्बरमयुक्त, तीक्षा, उष्ण, विदाही तथा रुक्ष । पित्त बहत दिन बाद वेदनाके माथ गर्भाशयम त ट्रव्य सेवन, क्रोध, अतिरिक्त मद्यपान, रोट्र एवं अग्निके होता है। दश मास बीत जाने पर वैद्योंको को उत्ताप, लगुड़ आदिके अभिघात, आम अर्थात् विदग्ध | चिकित्मा छोड़ देना चाहिये। अजीर्ण और किमी भी दूमो कारणमे रक्त विगड़ने पर ___ जो गुलम पत्थरके टुकड़े जैसा कड़ा, ऊँचा, वेदना पित्तज गुल्म उठता है। पित्तजन्य गुलमरोगमें ज्वर, तथा दार युक्त और मलको व्याकुलता, शरीरको समता, पिपामा, शरीरको अवसन्नता एवं रक्तवर्णता, घम उद्. अग्निवैषम्य एवं बल हाम करनेवाला हो, प्रसाचा गम और भुक्त ट्रयकी परिपाक अवस्थामें अतिशय वेदना ममझा जाता है। वह गुन्नम भो अमाधा है, जो क्रमाब होती है। यह व्रण जैमा दाहयुक्त और स्पर्शामह भी यसे मञ्चित हो मारे पंटमं व्याप्त होता, धात्वन्तरके साथ रहता है। मिल करके शिराजालमें लिपटता एवं कछएको तरा __शोतल, गुरु एवं स्निग्ध ट्रय मेवन, नि पूर्वक परि उठता और रोगोको ट्वलता, अरुचि, हलाम, खांसी, पूर्ण भोजन और दिवा निद्राप्रे श्ले भिक गुल म निकलता के, ग्लानि, बुखार, प्याम, तन्द्रा तथा प्रतिश्याय उत्सव है। वातज, पित्तज तथा भिक गुल मके जो कारगा करता है। कहे गये हैं, उनके ममुदायमे मानिपातिक गुल्मको उत् गुलमरोगोको बुनवार, दमा, के ओर दस्त तथा दिल, पत्ति है। तोद, हाथ एवं पाव शोथ होनेमे फिर जोनको भाषा भिक गुल ममें गेगोको ममझ पड़ता, मानो उम नहीं रहती। जिम गुल मरोगीको दमा, शूल, पका के मारे शरीरमें कोई तर कपड़ा लिपटा है। शीतज्वर, विष्ट प और दोवन्य उपस्थित होता तथा ग्रवि जैसा देहका भारोपन तथा अवमत्रता, वमन उहेग, ग्वामी. गुल म एकाएक विलुप्त हो जाता उसके भी जानकी अरुचि. अग्निमान्य और थोड़ा दर्द,प्रभृति अपरापर ममम्त उम्म द कम होती है। श्लेष्मज लक्षण देख पड़ते हैं। ___ वातजना गुल्म रोगमें जुलाबके लिये रेडीका तेल ___ मानिपातिक गुल्ल म पत्थरके टुकडे जमा कड़ा और दूधके माथ हर पीना और चिकना भपारा लेना चाहिए। उठा रा रहता है। उममें बहत पीडा और जलन होतो मज्जीवार २ माषा, कुट २ माषा और केवड़े को बोला है। शीघ्र विदाह, मनको व्याकुलता, शरीरका दुबला क्षार मामा रेडीकै तलमें मिला करके पीनेसे वातब पन, अग्निवषम्य और कमजोरी आ जाती है। वह गुल्म विनष्ट होता है। वात गुल मके रोगीको तीतर अमाधा है। मोर, मुर्गा, बगला और वन क पक्षोके मासका रमा; घी, नवप्रसूता ( प्रमवके बाद जिमक' अग्नि, बल, वण, शालि चावलका भात और शराब देते हैं। मांम आदि स्वाभाविक नहीं होता), आमगर्भ प्रमवा (नो पित्तज गुल ममें विरेचनके लिय त्रिफलाके सामने महीने पूर्ण होनेमे पहले हो जो प्रसव करती है) और | अथवा शकर और शहद के साथ कामला ऋतुमतो स्त्रो यदि किमो प्रकार अहितजनक द्रव्य गुड़ीका च ण मेवन करना चाहिये। दाख या गुदी भोजन कर लेती उसका वायु रक्तद्वारा गर्भाशयमें गुटिका माथ हर खानेसे पित्तज गुल म दब जाता है । वातना कार गुन्ल मरोग उत्पन्न करता है। उममें जलन और दर्द | गुल मको जो औषध बतलाया गयो हैं, भिक गुल माम होता है। लक्षण लगभग पित्तकै गुल्म जमा है। मिवा भी प्रयोज्य हैं । कफघ्न क्रियासे भी उमका सपथम इसके रक्तज गुल ममें गर्भके समस्त लक्षण अर्थात् मृतु न | होता है। होना, मुह पोला पड़ना, स्तन अग्र भागका कालापन । हींग, पीपल, धनिया, जोरा, वच, चोत, आयनाकि और दोहद प्रभृति देख पड़त हैं। परन्तु गर्भजैसे हम्तादि शटो, अम्ल वेतम, मामुद्रलवणा, विटलवण, समय, अङ्ग प्रत्यङ्ग सञ्चालनपूर्वक नि:शूल स्पन्दित होता है, त्रिकट , यवक्षार, सजि क्षार, अनार, हर, पुपरमूक रताज गुलम वसा नहीं करता। यह गुलम वा रक्त । खेखड़, हवुषा और काला जोरा सबका बराबरकरार Vol. VI. 115