पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गुल्मवल्ली-गुल्ला ४५६ अष्ठोला, यकृत, पानाह, कामला, पागड, ज्वर और गूल अक्षा० २६ २४ उ० ओर दंशा०८११ पू.में अवस्थित नाश होते हैं। है। प्रायः पाँच सा वर्षे पहले गलारसिह ठाकुरमे यह गुल्मवली ( मंः स्त्री०) गुल मप्रधाना वल्ली। सोमलता। नगर स्थापित किया गया था। यहां एक बिद्यालय है। गुल्मशार्दूलरम ( मं० पु० ) गुल मस्य शार्दूल इव नाशको जिसमें गवर्म टसे भी कुछ सहायता मिलती है। रमः । एक तरहको औषध। पारा, गन्धक, लोह, गुन्नर (हिं पु०) दैनिक प्राय रखनेका सन्दूक या थैली। गुग्गुल, पोप्पल, त्रिवत् वाला. मांठ, जीरा, धनियां और गुजर (हि. पु. ) गलर देखो। शर्टी प्रत्ये कके आठतोले और जयपालके बारह तोले मभी- गुल्लर-रिचीडम रहनेवाली एक जाति । इनमजे अड़बी को एकत्र करके घृतके माथ मर्दन कर ६ रत्तो परिमाण- गुजर और गडा गुल्लर य ही दोनों विभाग स्वतन्त्र हैं। को गोलो बनाते हैं । इमीको गुल्मशार्दूलरम कहते हैं। इसके सिवा कई एक विभाग और भो देखे जाते हैं। अदरकर्क ग्स और उष्ण जलके साथ यदि उक्त औषध ये हैदराबाद और पूना जिले के ग्रामसमूहमें तथा कुन्न मेवन को जाय तो लोहा, यक़त्, गुल्म, कामना, उदरी, वर्गक निकटवर्ती मेलर ग्राममं रहते हैं। यं अपनेको शाथ, वातिक, पैत्तिक, तथा नेमिक गुल म नाश होते 'गोल' या 'हनमगोन्न' कहते हैं। हैं । रक्तज गुल मरोग भी इमसे दूर हो जाता है । गहना- अड़वी गुल्लर जातिके पुरुष ग्राम तथा वनके नाना नन्दनाथ नामक किसी योगीन इस प्रोषधका आवि- स्थानोंमें जा कर देशीय कविराजाँके लिये फल फल एवं ष्कार किया था। (रम द्रमार ) औषधको लता लाया करते हैं, और उनकी स्त्रियां घर गुल्मशूल ( म० ए० ) गुल ममूलकं शूलमत्र । शूलरोग घर भिक्षा मांगतो फिरती हैं। इनकी शारीरिक गठन विशेष। शन देखो। प्रणाली राजपूतानावामियोंके मदृश है, शरीरका वर्ण भो गुल्मिक मं० पु. ) रक्त करवीर, एक तरहका लालकनेर। तदनुरूप है, किन्तु यं उनमे पतले तथा छोटे होते हैं। गुल्मिन् ( म० त्रि. ) गुल मोऽस्यस्याः गुल म-इनि। यं हिन्दी, कनाडी और तेलगु भाषा ममझ तथा बोल गुल मरोगयुक्त, जिसको गुल मरोग हुआ हो। मकते हैं। यं अपने वस्त्रको गेरू महोसे रंगा कर पहनते गुल्मिनी ( स० स्त्रो०) गुल मोऽस्त्यस्याः गुल म इनि तत: हैं, और भड़, वाग, खरगोश तथा गोमांमक भित्र डोप । विस्तृता लता, लम्बी लता। इसका नामा अनाना जन्तुओका मांस भक्षण करते हैं। वैद्य जातिको न्तर-वीरुत्, उलुप, विरुधा, अवरुत् है। नाई ये भी कछएका मांस खाते हैं। गडागुल्लर जातिके गुल्मी ( स० स्त्री० ) गुल्मोऽस्त्यस्य गुल्म अर्श आदित्वात् माथ ये अपने पुत्र वा कनाका विवाह नहीं करते। अच ततो गौरादित्वात् डीप । १ आमलको, ऑवला। गडा गुल्जर जातिक मनुष्य कुत्त तथा गदह पालते २ इलायची। ३ वस्त्रनिर्मित यह, तम्बू, खेमा । और शिकारके लिय बन वन घूमते हैं । ये शृगाल, कछुए, ४ फलवृक्षविशेष, हरफरी। ५ राइनखी वृक्ष । ६ कण्ट- शल्य या खरपुस्तका मांस ग्वाते हैं । पुरुषगगा चीर्य कपालीवत्स, हिऊन गरनाका पेड़। वाँ-दिल्लीक एक राजकवि। इनके बनाये गुल्ला (हिं. प.) १ गुलेलमें फेकनको मट्टीको वनी हए ग्रन्थमिमे जहर उल मुयाजिन नामक काव्य ग्रन्थ हो गोलो । २ एक तरहको मिठाई, रमगुना। सर्वांपेक्षा उत्कृष्ट है। कविताके प्रभावमे इन्हें "नातिक" (अ. पु०) ३ ऊचा शब्द । शेर, हल्ला । ४ ईग्वका को उपाधि मिली थी। १८४८ ई०को इनका देहान्त कटा हुआ कोटा टुकड़ा, गडरी, गोंड़ा । ५ पानी खींच नेके लोटेकी रम्मी में बधी हुई छोटो लकड़ी। ६ नैनो. गुल्य ( स० वि० ) गुड़ तहत् रस' अह ति गुड़ यत् उस्य तालमें मिलनेवाला एक पहाड़ी पड़ । इमकी लकड़ी लत्व। मधुर, मोठा। । सुगधित, हलको और भूरे रंगको होती है। ७ गोटा गुरिरह-अयोधमाके उनाव जिलान्तर्गत एक नगर। यह पट्टा बुननेवालोंका एक डोरा । इसके दोनों मिरी पर सर हा ।