पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४६२

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गलसानो-गुवाक कंटेकी लकडी लगी रहती है। ८ डेढ़ बालिश्त लम्बो । अभिषान्दी एवं अग्नि और दृष्टिनाशक है । मिद्ध को लोहे को छड जो रूई प्रोटनकी चरखो में लगी रहतीहै। हई सुपारी खानेमे त्रिदोष नाश होता है। भिषक् शास्त्रका गुलमानी--एक मुसलमान कवि । इनका यथार्थ नाम शव मत है कि जिस फलका मध्यभाग कठिन होता है वही सैयद उल्ला था। ये गुजरातराजमबी इस्लाम खाँके फल श्रेष्ठ है। (भा +17) वशधर और शाहगुलके शिषा थे। ये सर्वदा दरवेश राजनिघण्ट के मतसे कच्ची सुपारीका गुण-कषाय, रूप भ्रमण करत एवं 'गल्सन कवि' से मशहर थे। मुखमल, रक्ताम्ललष्मा, पित्त और उदगमान नाशक, कण्ठ इन्होंने दिल्ली में रहकर १००००० गजल रचना की थी। शुद्धिकारक ओर सारक है। सुपारोका गुण-कण्ठरोग- इनकी कविताये गूढार्थक होती थीं। ये अपने शिक्षा नाशक, रुचिकारक, पाचन और रचक हैं, पानके साथ गुरु शाह अबदुल आहद मरहिन्द के साथ मक्का तीर्थस्थान सुपारीका गुण पाण्ड, वात और शोथकारक है। गये थे। ११४१ हिजरीको दिल्ली नगरमें इनकी मृत्य | राजवल्लभके मतसे इमको पोकका गुण-पहलो पोक हुई। विषतुल्य, दूमरी भेदक और गुरुपाक तथा तोमरी गुल्लाला ( फा० पु० ) एक तरहका लाल पुष्य । इमके पौधे पानका उपयुक्त हैं। और पुष्य पोपत के पौधे और पुष्पक जैसे होते हैं। ___डाकर सर्ट माहचका कहना है कि सुपारीका चूर्ग गुल्ली (हिं. स्त्रो० ) १ वोज । फलको, गुउलो ।२ महवेको १०मे १५ ग्रेण मात्रामं व्यवहार करनेमे दुवल मनुषाका गुठली । ३ गोलाकार लंबोतरा छोटा ट कड़ा। उदरामय अच्छा हो जाता है । मोरिण माहबने परीक्षा कर देखा है कि सुपारीमें टैनिक और गेलिक एसिडका ४ छोटे छोटे लड़कोंके खेल खेलने का काठका भाग ही अधिक है (Journa Pharm. VOI VILI टुकड़ा । यह चारसे छ: अंगुल लम्बा होता है। इमके py ! 19 ) एमियाके प्रायः ममस्तदेशों में यह प्रचलित है दोनों छोर जौकी तरह नुकीले होते हैं और गोल सुपारी वृक्षका मधाभाग शूना, है, यह तुकमार जातोय तथा मोटा होता है, अंटी। ५ पत्ते का मधुयुक्त स्थान । तृणमधामें गिना जाता है। सुपारीका वृक्ष ४० से ५० ६ केतकी, केवड़ेका फ ल । ७ दाने निकाल हुए मकई हाथका लम्वा देखा गया है । अग्रहायण या पौष मासमें की बाल । ८ एक प्रकारको मैना, गगा मना । ८ ईखका इसको मुकुल ( कली) बाहर निकलती है और चैत्र काटा हुआ टुकड़ा, गांड़ा | १० छाटा गोल पासा।। वैशाख माममें फल लगते हैं। तथा आश्विन कात्तिक गुवाक ( स० पु० ) गुवति मलवत् क्वाथमुत्सृजति माममें ये फल पक जाते हैं । थोड़ देशांके मनुषा सुपारी गु ा क । १ सुपारीका वृक्ष । इसका पर्याय-छोटा, पूग. फलके छिलकेको अलग कर उसे पतले पतले खण्डोंमें क्रमुक, ग्वपुर, गूवाक, पूगवृक्ष, दोघ पादप, वल्कतरु, दृढ़ काटते और पानके साथ खाते हैं। बङ्गालमें चार तरहको वल्क, चिक्कण, पूगो, सुरञ्जन, गोपदन्ल, राजताल और छोटे | मुपारी देखी जातो हैं । पहली 'देशान' जो देखनमें बड़ो फन्न है। इसके फलका नाम क्रमुकफल पूग, चिक्कणी, और काटने पर मधाभोग शुभ्रवण मी होती, दूसरी मक्षक, उद्दे ग, पूगफल और पूगीफलन है। इसके शोष 'भेटल' जो 'देशाल' मो होतो और तोमरी चिकणी जो भागका गुण - स्वादु, तिक्त, कषाय, बल, प्राण, शुक्रवद्धि, देखने में बहुत छोटी होती है। कोई कोई कहते हैं कि भेद और मदकारक एवं मूत्ररोग नाशक है । इसके अपक्व फलको शुष्क करने पर चिक्कणो सुपारी बनतो है निर्यासका गुण-शीतल, मोहकद गुरु, उष्ण, क्षार, कुछ चौथो 'रामपुग' जो इम देशमें नहीं होती है। यह सुपारी कुछ अम्लरस, वातघ्न और पित्तद्धिकर है। इसके फल का दक्षिण और पश्चिम प्रदेशमें पायी जाती है। एक तरहको गुण-गुरु, शीतवीर्य, रूक्ष, कषाय, कफन, पित्तना सुपारी बार है जो दक्षिणसे इम देशमें लायी जाती है शक, मदकारक, अग्निद्धिकर, रुचिकारक एवं मुखका और जहाजी सुपारो कहलाती है। विरसतानाशक है। अपरिपक्क सुपारोका गुण-गुरु, गुवार (हिं० पु०) ग्वाल देखा।