पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४६४

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४६२ 'गुस्लखाना-गुहसैन गुखखाना (अ.पु.) सानागार, नहानका घर । गुहराज (मं० पु०) प्रामादविशेष । महल जिसका विस्तार गुस्मा (अ.पु.) क्रोध, कोप, रिस। . १६ हाथका होता है। प्रामा देखो। गुस्स ल (प.वि.) चिडचिडाहा, जिमको छोटोमी बातमें गुहराना (हि.क्रि. ) पुकारना, चिन्नाकर बुलाना। क्रोध आ जाय। गुहलु (स पु० ) गोत्रप्रवत्त क एक ऋषि : गुषाण-शक आतिको एक शाखा। किमो किसोका मत गुहल-गोपकपुरके कदम्बराजगणोंके आदि पुरुष । है कि महाराज कनिष्क एमी जातिके थे। कमियादेबी गुहवामा (हिं क्रि०) गुधवाना, गुहने का काम करना। गुष्टि ( सं० स्त्री० ) गाम्भारो वृक्ष, गम्भारका पेड़। गुरुशिव-कलिङ्गके एक राजा। गुष्फित (सं० लो० ) गुम्फ भाव क्त निपातनात् मकारस्य गुहषष्ठी (सं० स्त्रो०) गुरुप्रिया षष्ठी, मध्यपदला. अग्र- षकारः । १ निर्गत शाखा, निकली हुई डाली । २ गुम्फन- हायन मासकी शक्ल छठ । यह काप्ति केयकी जन्म तिथि वृक्षके शाखादि निर्गम, गुम्फन पेड़को डालियोंका मानी जातो है। स्कन्दपष्टो देखा। निकलना। गुहसेन ( म० पु.) १ वलभीके एक पराक्रान्त महाराज । गृह (सं० प्र०) गुरुति रक्षति देवसेनां गुह-क । १ कात्ति- य महाराज धरपट्टके पुत्र थे। इनके चलाये हुए २४६, केय, पाव तोके पुत्र। इन्होंने देवसेनाको रक्षा की थी २४७ और २४८ गुणा वलभी मम्बत् अङ्कित तीन अनुशा और ये गुहा या कन्दरामें रहते थे। इन्हीं दोनों कारणों मनपत्र पाये गये हैं। बलमी राजभ देखा। से इनका नाम गुह पड़ा। २ अश्व, घोड़ा। ३ परम- २ ताम्रलिप्तनिवामी वसुदत्त नामक एक विख्यात श्वर । ४ शृङ्गवेरपुरके अधोखर एक चगडान्न जातीय वणिक्के पुत्र । रनकी स्त्रीका नाम देवस्मिता था। इन- राजा । महाराज रामचन्द्रजीक साथ इन्होंने मित्रता को का दाम्पत्य-प्रेम एमा प्रवन था कि गुहमेन एक क्षणा यो। यह अतिशय धर्मपरायण और मित्रप्रिय रहे। भी स्त्रीको छोड़कर कहीं जा नहीं मकते थे। देवस्मिता ५ बङ्गाली कायस्थगणीको एक उपाधि । ६ सिंहपुच्छो भी उनको देखे विना एक क्षगा भी रह न मकतो यो । सता, पिठवन। ७ शालपर्णी, सरिवन । ८ वुद्ध। गुहसेनके पिताको मृत्य के वाद उन्हें कटाहहोपमं वाणिज्य . गुफा, कंदरा। १० हृदय । ११ माया । १२ मेढ़ा। करने के लिये जाना पड़ा। संयोग बश उन दोनोने एक 'गुरुक ( म पु०) निषादराज, रामचन्द्रके मित्र । दिन दो कमलके फल पाये। फलोंमें विशेष गुण यह गुहगुम्न (सं० पु.) एक वोधिसत्व । था कि यदि दो व्यक्तियों से किसी एकका भ्रष्ट हो जाय -बुद्धचन्द्र ( मं० पु.) एक वणिकपुत्र । कथासरित्सागरमें तो दूमरेके हाथका कमल मलिन हो जाता। गुहसेन • इनकी कथा वर्णित है। ये धर्मगुणकी कना मोमप्रभा- अत्यन्त कष्टसे देवस्मिताको परित्याग कर वाणिज्यक · को देखकर उन्मत्त हो गये थे ; फिर अनेक चेष्टा और लिये चले। कटाहहीपमें पहुंचकर वे वाणिज्य करने - कष्टके बाद उन्हें प्राभ किया था। सामप्रभा देखो। लगे। एक दिन वहांक वणिककुमारोंने उस कमलके गहडा (हिं. पु०) चतुष्पद जन्तुका एक रोग। इसमें फलका रहस्य प्रकाश करने के लिये उन्हें कोई मादक पशुके मुखसे लार नि:सृत होतो है और शरीर गर्म हो वस्तु खिला दो। बाद उमका रहस्य जानने और देव जाता है एवं चलमेक समयमें वह लङ्गड़ाता है। स्मिताका चरित्र दृषित करने के लियं उनमेंसे चार बणिक- गुहदवद्य (वै० त्रि. ) प्रच्छवावद्य। (ऋ३ २०१५) कुमार ताम्रलितिकी ओर रवाना हुए। यहां पहुंचकर • मुहदेव--एक प्राचीन पण्डित। देवराजने इनका वेद उन्होंने योगकरगिड़का नामको एक परिवाजिकाको भाष्य और श्रोनिवामदेवर्न इनका वैदान्तिक मत उहत शरण ली। योगकरगिड़काके मिडिकरी नामको एक ..किये हैं। शिष्या (चेन्लो ) थो। वह अपनो शिष्याको माथ लेकर गुहर ( सं० त्रि०) गुहेन निवृत्तः गुह अश्मादित्वात् र । देवस्मिताके निकट पहुंची और उसे परपुरुषमें प्रासत गुह द्वारा निर्वृत्त, सम्पादित । होमको यथेष्ट चेष्टा करने लगी। वहिमती देवरि ।