पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४६६

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818 गुहावासा-गहातन्त्र लवङ्गः गुलाम (स स्त्री०) गुहाबुद्धिरावासो यस्था: बहुव्री० | पर पदक्षेप नहीं करते और जो अतिशय धनशाली अथच मटाय । गायत्री । (देवोभा१९६६४२) क्रोध वा प्रसूयाशूना हैं और आपममें धन विभाग कर म. प.-स्त्री.) गुहायां गत शेते गहा-शो निर्विवादसे भोग करते हैं, जो सर्वदा सुखाभिलाषी हैं, पाय। १ मषिक, म मा, चहा। २ जो समस्त जन्तु | किसी पुण्य तिथि, वार, संक्रान्ति वा पर्वदिनमें किसी गुफामें वास करते हैं। भावप्रकाशमें लिखा है कि सिंह, | तरहका पुण्य कार्यका अनुष्ठान नहीं करते या अनुष्ठान । मासक, भाल , तरक्षु, होपी, वभु, जबुक और करना जानते ही नहीं, सिर्फ ब्राह्मणको हो पूज्य मम- माजर प्रति जन्तु गुहाशय कहलाते हैं। झते और ममय ममय पर उन्हें गोदान किया करते एवं Keोका-वातघ्न, गुरु, उष्ण, मधुर, स्निग्ध, वलकर एवं कभी भी ब्राह्मण वाक्य उत्लान नहीं करते वे ही मनुषा मिसयो और गुह्यरोगीके लिये विशेष उपकारी है। मृत्य के बाद गुहालोकको प्राप्त होते हैं। १०) गुहायां हदि शते गुहा-शो-अच । ३ पर २ पक्काबविशेष, एक तरहका मधुर ग्वाद्य द्रव्य । माना ब्रह्म। ४ प्राण । मेंदा या सूजोको तम भंज कर उममें चोनो और किश- गानि (म.पि.) गुहाया वुद्धौ हृदये वा अाहितः, मिश मिश्रित करदें और सुगन्धिके लिये दो एक एलाची, अस। हदिस्थ, जो हृदयमें अवस्थान करता है। को दे दें। इतना करनेके बाद उसे गुनि ( लो०) गुरु बाहुलकात् इवन् । वन जङ्गल । एक ममितालम्व पात्रमें रखकर धृतमे पाक करें। भली • लो०) गुह इलच.किञ्च । १ वन जङ्गल । भांति पाक होन पथात् चीनीका रम उममें डाल दें। (for गुहाके निकटवर्ती देशादि । (पु०) ३ गहलोत् इमोको गुद्यक कहते हैं। यह अति उपादेय स्वाद्य है। वमा प्रादिपुरुष । गहलत देखो। इसका गुण-द्रण, अतिशय हृद्यग्राहो, वृषा, पित्त गुरवि०) गुह-एरक । १ रक्षाकर्ता, रक्षक ! और वायुनाशक, मधुर एवं गुरुपाक है। (8) लौहकार, लोहार । ३ अङ्गिरा कुन्लज तममादेवोक भक्त एक राजा, गुहाई पु० ) गोध, गोह नामका कोट । गोपालके पुत्र । ( महादि १।३३.३५ ) गुज (मारली) गुह भावादी यत् । १ गोपन, छिपाव। गुथकाली · मं० स्त्री० ) नित्य कम धा० । कालीमूर्ति- २ रुपमा भग, लिङ्ग आदि गोपनोयअङ्ग । ३ (त्रि.) विशेष । विश्वमारतन्त्रमें इनको उपामनाको कथा, विपासायक । (पु.) ४ कमठ, कच्छप, कछुआ । ५ दंभ. दोक्षाप्रणाली और मन्त्रोद्धार लिखे हुए हैं । इनको उपा इस कपट । विष्णु । ७ महादेव, शिव । ८ उप- मनासे चतु वर्ग लाभ होते हैं, माधकका अभीष्ट यह देवताविष। सर्वदा पूर्ण किया करती हैं, दिनोंदिन माधकको भक्ति गु म पु० ) गृहन्ति रक्षन्ति निधि धनविशेष गुह वृद्धि होती जाती एव पाञ्चभौतिक देहपात होने पर उसे गरम पषोदरादिवत् यगागमे माधु: । गुहा कुत्सित मोक्षकी प्राप्ति होती है। इनका मन्त्र यथा- (१) कायति के क। यहा गुहा गोपनीय क सुख येषा ___ "क्रों क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं गुहये कालिके ।" बहुबो । १ देवयोनिविशेष, कुवेरके खजानोको रक्षा पच विवरण दोधा शब्दमें देंग्यो। परवाला यक्ष, निधि-रक्षक यक्ष। इनका आवासस्थान गुह्यकेश्वर ( सं० पु० ) गुह्यकानां ईश्वरः, ६ तत्। कुवेर । पिपाचोकके ऊर्य और गन्धर्व लोकके निम्नमें है। ब्रह्म । गुद्यगुरु ( सं० पु० ) गुल्यो गोपनीयो गुरुः । शिव । तन्त्र वैवर्तपुराण में लिखा है कि कृष्णाके गुह्य देशमे पिङ्गन्लवर्ण शास्त्रमें बहुत जगह 'शिव' का 'गुहागुरु' नाससे उल्लेख अनुमका जन्म हुआ था। इसीलिये वे गुह्यक कहलाये। किया है। (प्रभावत, प्रका० ५॥६० ) गुहाग्रन्थ ( सं० पु० ) गुह्यो गोपनीयो ग्रन्यः । १ गोपनीय कापोखगडका मत है कि जो मटुपायसे अधिक धन | ग्रन्थ, गुप्त पुस्तक। २ तन्त्रशास्त्र। २ बौद्यमान उपार्जन कर छिपा कर रखते और कभी भी अनपाय पथ गुह्यतम्ब (सं० लो० ) गुद्यच तन्त्र चेति कर्मधा०