पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४७६

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४०४ गर रखना पड़ता है। इसके बाद उम जगह घर बनाना माण उत्तमक्रमसे विस्तार ४८, ४४, ४०, ३६ और ३२, प्रारम्भ करना चाहिये। (हस ० ५३९८) उत्तमक्रमसे दैय-६७।१२, ६२।०, ५६।१२, ५१।०, और ग्रारम्भ का प्रभाग चिह्न शकुन शब्दमै दंग्या । ४५।१२ है। कञ्च को, वेश्या और नृत्यगीतादि वेत्ताओं- वृहत्महिताके मतमे-ममम्त वास्तु यह पांच भागों के घरका परिमाण उत्तमक्रममे विस्तार २८, २६, २४, में विभक्त हैं, उनमेंसे प्रथम तो उत्तम है, हितोय उमसे २२ और २० उत्तमक्रमसे देय २८/८, २६।८, २४८, मध्यम और उसमे अधम हतीयादि हैं। परिमाणके अन- २२८ ओर २०८ है। अध्यक्ष और अधिकृत व्यक्तियों के मार घरके ये पांच भेद होते हैं। जिम घरका विस्तार घरका परिमाण कोषग्रह और रतिराहके परिमाण के १०८ हाथ हो ओर दयं विस्तारके माथ उमका चतुः ममान समझना चाहिये ! कार्याध्यक्ष और दूतोंके घरका थांश मिलाकर १३५ हाथ हो, वही गजा के लिये उत्तम परिमाण उत्तमकमसे विस्तार २०.१८, १६ १४ और ..घर है और उनके विस्तारमें से यथाक्रम ८८ हाथ बाद १२, देय ३५८, ३५।१६, ३२१४, २८।१६ ओर २५।४ है। देनेमे दूसरे चार घरोंका परिमाण निकलता है, वे चार देवज्ञ, पुरोहित और चिकित्सकोंक घरका माप उत्तम घर एक दूमरेको अपेक्षा परस्पर अधम हैं। २य प्रकार- क्रममे विस्तार ४०, ३६, ३२, २८ ओर २४, दैध्य ४६।१६, का विस्तार १० हाथ और देध्य १ ५ हाथ है। श्य. ४२१०.३६१६, ३२६ ओर २८ हाथ है। वास्तु-ग्रह. का विस्तार ८२ हाथ और देयं ११५ हाथ है। ४थ का जितना विस्तार हो, उमको अगर उतनी हो ऊचाई प्रकारका विस्तार ८४ हाथ ओर देय १०५ हाथ तथा हो, तो वह मकान मङ्गनकर होता है। परन्तु जिन ५म प्रकारका विस्तार ७६ हाथ और दय ८५ हाथ धगेम मिर्फ एक हो कमरा है, उम घरको लम्बाई विम: है। मेनापतिके पांच प्रकारके ग्रहके श्म घरका विस्तार तारमे दनी होनी चाहिये। कोषग्रह ार रतिराहका ६४ हाथ और देय ७४ हाथ १६ अंगुलि है। हम माप उत्तमक्रमसे विस्तार ४४. ४२.४०, ३८, और २६, विस्तारमे छह छह बाद देनमे यथाक्रममे बाकोके चार देय ६०८, ५७१६ ५४।८, ५१ ओर ४८८ हाय घरीका परिमागण होगा। जैसे -२य-वि० ५८, द. है। (तम ० ५७ ५० ) ६७।८ ; ३य-वि० ५२, द. ६०।१६, ४थ-वि० ४६, ब्राह्मण आदि पृयक् पृथक् जातियोंका जिन जिन द०५३।१६ ओर ५म-वि० ४०, दै० ४६।१६ । मन्त्री मकानों पर अधिकार है. उमका भी वर्णन वृहत्महिता के पांच प्रकारके घरों में प्रथम घरका विस्तार ६० हाथ में लिखा है। ये टर्शित घरीको भांति होगा और दूमरे इममे चार हाथ कमतो कमती होंगे। पांच भागों में विभक्त हैं। ब्राह्मणों के पांच प्रकारके गृहों. विस्तारके माथ उमका चौथाई और जोड़ देनेसे ही उसः का विस्तार ३२, २८, २४, २० और १६ हाथ है । क्षत्रियों को लम्बाई हो जाती है। १म-विस्तार ६०, दैर्घ्य के रहने योग्य चार प्रकारके मकानोंका विस्तार २८, १७।१२ . २य-वि० ५६, दै०६३३य- वि० ५२, दै. २४, २० और १६ हाथ है। वैश्योंके रहने योग्य गृह ५८।१२, ४र्थ-वि० ४८, द. ५४ ओर पञ्चम - वि० तीन प्रकार हैं, उनका विस्तार २४, २० ओर १६ हाथ ४४, दे० ४८।१२। मन्त्रों के घरसे आधा विस्तार ओर है। शूट्रके रहने लायक घर दो प्रकारके हैं उनका लम्बाई वाला घर राजमहिषो (रानो) के लिये उपयुक्त विस्तार २० ओर १६ हाथ है। एमके अलावा अन्यज है। युवराजके पाँच प्रकारके मकानोंका परिमाण, - जातियोंको मिफ एक प्रकारके १६ हाथके घरमें ही रहने रम-वि० ८०, दै० १०६।१६, २य-वि० ७४, द का अधिकार है । ब्राह्मणके पांच प्रकारके गृहका ८८।१६, ३य - वि० ६८, द ०८०।१६, ४र्थ-वि० ६२. देयं इस प्रकार है, -३५।४।४८, ३०।१८।१२, २६८। दै०८२।१६ और पंचम-वि० ५६, दै० ७४।१६। युवा : ३६. २२० और १७।१४।२२ है। क्षत्रियके चार प्रकार- राजके अमुजोका निवामस्थान इमसे आधे विस्तार और के ग्राहका दैर्घ्य ३१।१२, २७।०, २२।१२ और १८ हाथ देयं युक्त होना चाहिये। श्रेष्ठ राजपुरुषों के घरका परि- है। वैश्य के तीन प्रकारके वास्त का द य इस प्रकार