पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४७७

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है,-२८०, २३।१६ ओर २८।८। शूद्रोंके दो प्रकारके , कर सकते हैं। यदि किमो मकानके चारों पर वैमो घरको लम्बाई २५ और २० हाथ हैं। अन्त्यजोंके घर- वीथिका रहे . तो उमको सुस्थित कहते हैं। वास्तुशास्त्रम को लम्बाई १६ हाथमे ज्यादा न होनी चाहिये । सब दूम प्रकारके मकानोंकी विशेष प्रशंमा को गई है। ये ही जातियों के लिये अपने अपने परिमाणसे ज्यादा वा सब मकानही ग,रस्थ लिए मंगलजनक हैं। कम मापके मकान अमङ्गलकर हैं। परन्तु पश्वालय, मकान का ऊचाई या उच्चाय-उत्तम मकानक विस्तारके प्रब्राजिकालय, धान्यागार, अस्त्रागार, अग्निशाला और -अशके माथ ४ हाथ और जोडटेनमे जितना होगा, रतिगृह वा बैठकका परिमाण अपनी इच्छानुसार कर उस घरकी ऊंचाई उतनी ही होनी चाहिये। बाकी कोई भी घर हो एक मो हाथमे ज्यादा ऊंचा चार प्रकार के घरोंको ऊचाई क्रमश: उममे बार वें भाग अच्छा नहीं और न करना ही चाहिये। घटती जायगी। मकान भीतरी हिम्मे को शाला कहते हैं। कोनीत माप-जो भोत पको हई ईटोसे बनाई जाती समकानकी शाना किम मापकी होनी चाहिये, उसका हैं, उनका परिमाण व्याम १६ भागमेंका १ भाग करना परिमाण वत्महितामें इम प्रकार लिखा है-राजा और चाहिये । परन्तु काठमे जो भीत बनाई जाती है. उमका मेनापतिक मकान के व्यासके माथ ७० को जोड़ कर २ परिमाण अपनी इच्छानुमार कर मकते हैं। से भाग देकर जो भागफल हो, उस १४ से भाग देन पर दरवाजे का पारा-गजा और सेनापतिक घरके व्यासके जो उपलब्ध होगा, वही नृप ग्रहको शालाका माप शाला माथ ७० जोड कर ११ मे भाग देनसे जो फल उपलञ्च भितिक वाहिरवं हिम्म के मोपानयुक्त प्रांगनको प्राचीन होगा उतने हाथका विस्तार उमके दरवाजका होगा। वास्तुशास्त्रीपद ष्टानि अलिन्द नामसे उल्लेख किया है। उम दरवाजका विस्तार जितने अङ्गलका होगा उतने पपटशित रिविभक्त अंकको ३५से भाग करनसे जो ही हाथको उमको ऊचाई होनी चाहिए तथा विस्तारसे फल उपलब्ध होगा, वही राजाके गृहके आंगनका परि आधा दरवाजका फैन्नाव करना उचित है । ब्राह्मण आदि माण है। दमरो जातिके मकानको शाला और आंगन- ट्रमरी जाति के लोगों के ग, हव्यामके पञ्चाशर्क माथ १८ का परिमाण निकालना हो तो राजा और सेनापतिके अंगुन्न जोड़नसे जितना हो, उतना ही उनके घरके दर- घरके व्यासके योगफलके माथ ७० को जोड़कर, उममेंसे । वाजेका माप है। हारके माप का अष्टांश, दरवाजका अपनी जातिर्क व्यामांक घटा देना चाहिये । पीछे फैलाव और फनावसे दूनो ऊचाई होनी चाहिये। उममेंमे प्राधि अंक घटा कर, उसको यथाक्रममे १४ ओर दरबाजेको ऊचाई जितने हायकी होगी, उतने अङ्गल ३५ हारा भाग करके जो दो अंक उपलब्ध होंगे, उसे प्रमाण उमको दोनों शाग्वा होनी चाहिये, और शाखासे अपनी जातिको शाला और मांगनका माप समझना योदो चौखट होनी चाहिये । अचाई जितने हाथकी चाहिये। होगी उतनो संख्याको १७से गुणा करके ८० मेभाग टेनमे पहिले ब्राह्मण आटिके पॉचप्रकार वास्तुपरिमाण जो जो फल उपलब्ध होगा उतना हो उसके पृथुत्व (मुटाई) कहे गये है, उसमें यथाक्रममे ४।१७, ४।३. ३२१५. ३१३ का नाप ममझना चाहियं । (३० म० ५६.१.२०) पौर ३ हाथ ४ अङ्गलको शला' तथा ३१८, १८, ऊंचाईको मे गुणा करके ८०मे भाग देने पर २१२०, २।१८ ओर २ हाथ ३ अगुलके आँगन होने ' जितना लब्ध बचा हो उममें अपना १०वां अंश घटानसे चाहिये। शालाका: अंश स्थान भवनके बाहर रखना जो बचे उतने मापको स्तम्भको अगाडो करना चाहिये । प्राचीन कालमें वीथिका कहा जाता था। चाहिये । स्तम्भ यदि ममचतुरस्र या चौखटा हो तो यह वोथिका मकान पूर्व को तरफ रहने से, उस मकान- उमे रुचक, अष्टानि या अउकोन हो तो वध, मोलह को मोषणोष, पश्चिममें रहनेसे मायाश्रय और उत्तर या कोगवाला हो तो शिवज, वत्तीम कोनवाना हो तो दक्षिणमें रहमेसे उस मकानका सावष्टम्भ नामसे उसख पुलौनक ओर वृताकार वा गोल हो तो उसे वृत करते