पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४७८

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४०१ रह हैं। ये पांच प्रकारक स्थान उत्तम होते हैं । गृहस्वामा , देनेसे जो अवशिष्ट बचेगा, उसके अनुसार प्राय होतो इनमें से जैमा चाहे वैसा स्तम्भ बनवा सकता है। इनके है। उसी प्रकार पिण्डाको से गुणा कर फिर से अलावा दूमरे प्रकारक स्तम्भ नहीं बनान चाहियं ।। भाग करके जो अवशिष्ट बचेगा, उमक अनुमार रवि, विश्वकम प्रकाशमें मकानको लम्बाई चौड़ाईके | भीम आदि वार होते हैं। पिण्डको ६मे गुणा करके हिमावस, उमका शुभाशुभ फल जानने का तरीका इस | फिर उमको ८ से भाग देनेसे अंश, से गुणा करके १२से प्रकार लिखा है-गृहक विस्तारको दर्य से गुणा कर भाग करनसे धन, ३ हारा गुणा करके से भाग करनेसे के ८ मे भाग करनेमे जो बचेगा, उमर्क अनुमार ध्वजादि | ऋण वा व्यय, ८ द्वारा गुणा करके से भाग करनेसे आय होती है। अर्थात् ८से भाग करने से यदि १ बचे नक्षत्र, ८से गुणा करके १५ हारा भाग देनसे तिथि, ४ तो ध्वज, २ बचे तो ध म ३ बचे तो हरि, ४ बचे तो द्वारा गुगा कर २७से भाग करनमे योग और गृहपिण्डके कुक्कट, ५ बचे तो गाय. ६ बचे तो गदभ. ७ बचे तो हम्तो, ८से गुणा करके फिर १२ द्वारा भाग करनेमे वर्ष जाना और ८ या शून्य बचे तो वायस नामक आय होती है। जाता है । (विश्व तमप्र काग) इमका फल पोपूषधारामें एमा यह ध्वजादि अाठी आय यथाक्रममे पूर्वादि पाठो दिशा लिखा है कि--विषम पाय शुभकारक ओर सम प्राय मि अवस्थित हैं। अपन अपन स्थानसे पांचवां स्थान दःख और शोकजनक होती है। सूर्य पार मलके वार इनके लिये वैरी है। घरको आय विषम होनमे शुभफल तथा राज्य श अग्नि भयकर होते हैं। इसके सिवा दूमरे और मम होनेसे शोक व दुःख होता है। अग्निशाला ग्रहांक वार और राज्यश अच्छे हैं। पहलेको प्रक्रियाक और अग्निजोवियों के लिए ध म आय अच्छी होतो है। अनुमार ग्रहका नक्षत्र यदि हिराश्यात्मक हो तो मकान किमी वास्तुशास्त्रोपदेष्टाका मत एमा भी है कि, म्लेच्छादि बनवाना चाहिये। जातियों के लिये कुक्कर आय उत्तम होती है। वश्यक धम पार ऋणका फल प्रक्रिया के अनुमार मकान.. घरके लिये गर्द म आय और शूद्रोंके धरके लिये काक ऋणसे धन अधिक होने से धनको वृद्धि होती है, पर आय अच्छी है। वृष, सिंह और गज नामक आयमें | धनमे ऋण ज्यादा होनसे धनको हानि होती है; इस प्रामाद और पुरगृह बनवान चाहिये' हस्ती प्रायमें वा लिए ऋण अधिक हो; तो घर न वनबाना चाहियं । ध्वज आयमें हस्तिशाला, गद भ, ध्वज और वृषभ प्रायमें मतवाल-गृहका नक्षत्र ग.हस्वामोके लिए विपत्ति बाजिशाला, गज वृष वा ध्वज आय में पशुशाला बनवाने- कर तारा होनेसे विपत्ति, प्रत्यरि होनसे अमङ्गल और से शुभ फल होता है। ब्राह्मणके लिये ध्वज प्राय अच्छी निधनाख्य होनसे ग हस्वामीको मृत्यु हो जाती है। इन है। ब्राह्मणोंको पूर्व की तरफ हार करना चाहिये। नक्षत्रांम घर न बनबाना चाहिये। क्योंकि ये नक्षत्र क्षत्रियों के लिये सिंह आय प्रशस्त है, दरवाजा उत्तरमें नाना उपद्रव्यवॉक कारण है। किमो किसो ज्योतिवेत्ताक होना चाहिये। वेश्यों के लिए वृष आय शुभ है, दर मतमे जिस नक्षत्रमें ग्टहकार्य प्रारम्भ करना हो, वह बाजा दक्षिणमें करना चाहिये । मब अायोंमेंसे ध्वज प्राय नक्षत्र ग्रह नक्षत्र में जितनी संख्यामें अवस्थित हो, उमको ही सबसे श्रेष्ठ है। वृहस्पतिक मसानुमार ध्वज प्राय ८ से भाग करनेसे जो बच्चे उसके अनुसार जन्म मम्पद क्षत्रिय और वैश्यों के लिए प्रशस्त है। ब्राह्मणोंक लिए विपद तारा आदि होते हैं। इम नियम विपद, प्रत्यरि सिंह और वृषभ नामको प्राय सर्वथा त्याज्य है। सिंह वा निधन तारा होनेसे उमदिन यह नहीं बनाना चाहिये। और कुक्क र आयसे अल्प प्रायास. ध्वज प्रायमे पूर्ण मिडि, इसके सिवा किमी किमी ज्योतिर्वेत्ताका यह भी कहना वृष आयसे पशुओंको वृद्धि और गज प्राय होनेसे सम्पद है कि, गृहकर्ताके नक्षत्रसे ग्रहनक्षत्रको गणना करने की वृद्धि होती है ' इसके सिवाय अन्यान्य आयोंसे दुःख | पर जो संख्या होती है, उसकोटमे भाग करनेसे जो अव- पौर शोक होता है। शिष्ट बचे; उसके अनुसार जन्म आदि तारा होते हैं घर मकान पिण्डाकोरसे गुणा करके फिर से भाग। और ग्राहस्वामीके एकसे नक्षत्र होनसे स्वामीको ना