पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४७९

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मृत्य होती है। परन्तु वशिष्ठने ऐसा लिखा है कि, बार-पिण्ड २०३को से गुणा करनेसे १८२७ होगा, गृह और गृहस्वामीको एकमी राशि तथा एकसे नक्षत्र उसकों से भाग देनेमे बाकी ७ या शून्य बचेगा। हम होनेसे ऐमा होता है। भित्र भित्र राशिमें एकसे नक्षत्र प्रकार उस घरका शनिवार हुआ। (नवांशको ) पिण होने पर भी मकान बनाया जा सकता है। इसमें कोई २०३को ६से गुणा करनेसे १२१८ होता है, इमकोट से सरहका विघ्न नहीं पाता। व्यवहारसमुश्चयमें ऐसा लिखा भाग करना चाहिये; बाकी बचेगा ३ । इस प्रकार उस है-त्तिका आदि तीन तीन नक्षत्रोंके यथाक्रमसे नौ घरका अंशक ३ हुआ। फल होते हैं जैसे,-१ रोगनाश, २ पुत्रलाभ, ३धनको | धन-पिण्ड २०३४८-१६२४-१२ अवशिष्ट बचा ४। मकानका धन हुआ४। प्राप्ति, ४ शोक, ५ शत्रका भय, ६ राजाका भय, ७ मृत्य , ८ सुख, प्रवास। ऋए-पिण्ड २०३४३ = ६०८८ = ७६ बाकी ४ वास्तुशास्त्रके अनुसार मकानके मक्षत्र अश्विनी, भरणी चा। इस प्रकार घरका ऋण १ हुआ। और कत्तिका होनसे मेषराशि, रोहिणी और मृगशिरा नवव-पिगड २०३४८-१६२४-२७-६० बाको होनेसे वृषराशि आद्रा और पुनर्वसु होनेसे मिथुनराशि, बचा ४। एहका नक्षत्र रोहिणी । तिथि-पिण्ड २०३४८- १६२४-१५ = १०८ प्रव- पुष्या और अश्लेषा होनेसे कर्कट गशि, मघा. पूर्वफाला नो शिष्ट रहा ४। ग्रहकी तिथि चतुर्थी हुई। और उत्तरफाल्गुनी होनेसे सिंह राशि, हस्ता और चित्रा होनेसे कन्या, स्वाती ओर विशाखा होनेसे तुला, अनुराधा योग-पिण्ड २०३४४८८१२-- २७-३० बाकी और ज्येष्ठा होनेसे वृश्चिक, मूला, पूर्वाषाढ़ा और उत्तरा बचा २। घरका योग प्रीति है। षाढ़ा होनमे धनु, श्रवणा और धनिष्ठा होने पर मकर, पायु-पिण्ड २०३४८-१६२४ - १२० - १३ बाकी शतभिषा और पूर्वभाद्र होनसे कुम्भ तथा उत्तरभाद्र और बचा ६४। मकानको आयु ६४ वर्षको हई। रेवती नक्षत्र होनसे मकानको मीनराशि होती है। विश्वकर्म प्रकाशक मतानुमार ११ हाथमे लेकर ३२ तिथि का फल-पूर्व प्रक्रियाके अनुसार घरको तिथि रिक्ता हाथ तक ही आयादिको चिन्ता करनी चाहिये। इससे वा अमावश्या होनसे घर न बनाना चाहिये। इसके ज्यादा होने पर पायादिको चिन्ता करना व्यर्थ है। घर- अलावा दूमरी तिथियोंमें घर बनानेसे मङ्गल होता है। को मरम्मत करते ममय आय, व्यय वा माम शुद्धि प्रादि योगका फन-जो योग शुभ कहे गए हैं. घरके लिए देवनेको जरूरत नहीं। वास्तुके ईशान कोणमें दैवग्रह, वेही योग शुभ हैं। प्रशुभ योग होनसे अमङ्गल होता है। पूर्व में स्नानागार, अग्निकोणमें रसोई घर, दक्षिणमें अय- अथका फन-प्रक्रिया अनुसार जितने वर्ष को भायु नागार, नैत कोणमें अस्त्रशाला, पश्चिमको और भोजन- निकलेगी उतने वर्ष तक मकानको स्थित ममझना गृह, वायुकोण, धान्यालय, उत्तरमें भाण्डागार, अग्नि- चाहिये। कोण और पूर्व दिशा के बीच में दधिमन्यधर, अग्निकोगा और का फल-हितोय अंशमें गृह बनाने मृताका भय, दक्षिण दिशाके बीच में वृतशाला तथा दक्षिण और नैऋत रोग और शोक उत्पन्न होते हैं। शुभग्रहकै अंशको अच्छा दिशाके मध्य भागमे पायुघर वा पैखाना करना चाहिये । • और अशुभग्रहके अंशको अनिष्टकर समझना चाहिये । नत और पशिमके बीचमें विद्यालय, पश्चिम और वायु इसी नियमके अनुसार घरका पाय-व्यय आदि जाननका कोगके मध्य में रोदनवर, वायु और उत्तर दिशाके बीच में 7-कोई एक घर लम्बाई में २८ हाथ और विस्तार रतिघर वा बैठक, उत्तर और ईशान कोगाके मध्यमें पोष. रफ था है, तो उसको लम्बाई २८ हाथको विस्तार धालय, ईशाण और पूर्व दिशा के मध्य भागमें अन्यान्य घर होनेरी पानसे २०३ होगा। यह घरका पिण्ड | बनवाने चाहिये। सूतिकाघर नैऋत को गार्म बनाना मकी से गुणा करमेसे १८२७ होगा, उचित है। न करनेसे बाकी बचेगा ३। इसलिये उस आंगन और दरवाजक भेदी घर १६ प्रकारका ra...सापक श्री पायदुई। | होता है। BYE. 120