पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४८०

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P १७-यह अर्ध्व मुख होता है। इसके किमी भी तथा दो आँगन हैं, उसका नाम सयग्रह है। इसमें तरफ प्रांगन नहीं रखना चाहिये । ऐसे घरमें ग.हस्यके रहनेवालेका सर्वस्वनाश होता है। धन, धान्य और सुग्वको वृद्धि होती है। १४ चाकन्द--जिम गृहमें पूर्व, पश्चिम और उत्तर • पव- इमका ओंगन और हार पूर्व दिशामें रखना दिशामें तीन तीन दरवाजे और ऑगन हैं, उस घरको चाहये। इममें धान्यकी वृद्धि होती है। ऋषिगणम आक्रम्द नामसे उन्लेख किया है। इसका का-इसका दरवाजा दक्षिणको ओर होता है। फल-शोकप्राप्ति है। इसका आंगन भी दक्षिण दिशामें करना चाहिये । इम १५ विपुल-जिम घरमें दक्षिण, पश्चिम और उत्तरमें घरमें रहनेवाला मवत्र विजय लाभ करता है। तीन तीन दरवाजे तथा आंगन होग, वह विपुल नाममे मन्द--इसमें पूर्व और दक्षिणमें दो दरवाजे करना उलिखित होगा । इममें वाम करनेवाला विपल अर्थ चाहय, और दोनों ओर दो आँगन भी। इसमें ग्रहि- लाभ करेगा। जौको अकालमृत्यु होती है। वित्रय-इसमें चारों तरफ दरवाजे और आँगन .५ वर-जिम घरका दरवाजा और ऑगन पश्चिम होते हैं। सच मकान में यही श्रेष्ठ होता है। फल- दिशामें हो, वह खर कहलाता है। इससे धननाश विजयलाभ। होता है। विश्वकर्माके मतम-वास्तुकी ऊचाई विस्तारके समान कान-जिम घरमें व और पश्चिममें दो हार तथा करना चाहिये । परन्तु यदि एकशाल ( एक मजला) दो आँगन रहते हैं। उमे कान्त कहते हैं। फल-पुत्र । मकान करना हो, तो उमकी ऊंचाई विस्तारसे दनी और पौत्रको वृद्धि। होनी चाहियं । इस प्रकार चतुःशाल गृहको ऊचाई • मनारम-जिम घरमें दक्षिण और पश्चिममें दो दर. और व्यास ममान करना चाहिये । इकमजले मकानको वाजे तथा दो प्रांगन होते हैं, वह मनोरम है। फल विस्तारसे दूनो लम्बाई और विस्तारके बराबर ऊंचाई धनको वृद्धि। करने से भी काम चल मकता है। दुमजले घरको दूनो, ___समस्व-जिम घरमें पूर्व पश्चिम और दक्षिणमें तीन ति-मजलेकी तिगुनो, चौ मजलेको पाँचगुनी ऊचाई दरवाजे तथा तीन प्रॉगन हो, वह सुमुख कहलाता है। करनी चाहिये। इससे ज्यादा ऊंचाई कदापि नहीं फल-भोगोंकी वृद्धि। करना चाहिये। दुसख-जिस मकानका दरवाजा और ओंगन उत्तर किमो मकानमें यदि एक ही कमरा बनवाना हो, दिशामें हो, उसको दुर्मुख कहते हैं। इसका फल तो नागाडि रहने पर उत्तरबालाके सिवाय दूसरी कोई विम खता है। भी शाला बनाई जा सकती है। परन्तु एकमजले मकान- १० कम-जिम गृहम पूव और उत्तरमें दो दरवाजे में उत्तरशाला नहीं बनवानी चाहिये। ऐसे ही हिशाल और दो आंगन हो, वह कर कहलाता है। इसमें रहने बनवाना हो तो दक्षिण और पश्चिममें तथा त्रिशाला बन वालेको मब तरहका कष्ट रहता है। वाना हो, तो दक्षिण पथिम और उत्तरमें पथवा पूर्व विव-जिस घरमें दक्षिण और उत्तरमें दो बार दक्षिण और पश्चिममें तीन घर बनवाने चाहिये । । और दो आँगन होंगे, उसे विपक्ष कहते हैं। इसमें शत्र का पराशरका कहना है कि जिस बास्त में घर वन भय रहता है। उसकी पूर्व सीमासे लेकर पश्चिम मोमा र भो १२ धमद-जिस मकानमें पूर्व, दक्षिण और उत्सरमें भागों में विभक्त करना चाहिये । उनको गणना । तीन तीन दरवाज भीर आँगन होंगे, वह धनद कहला- पहले तीन भागोको छोड कर चौथे भाग करने मे गा। इसमें धनकी वृद्धि होती है। है। उस जगहमें घर नहीं बनवाना तारा हो एय-जिस घरके पश्चिम और दक्षिणमें टोहार विश्वकर्म प्रकाशके मससे-ब्रामस्वामता