पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४८२

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साडीमे मकामका कोई भी काम न लेना चाहिये ।। बरनसे व्याधि, वैशाखम धनरत्न, ज्येष्ठ में मृत्यु , आषाड़- मस पेड़ पर बिड़ियोंका धौंमला हो, उसको लाड़ी भी में भृत्य और धनलाभ, श्रावणमें मित्रलाभ, भाद्रपदमें लामके काममें न लाना चाहिये । गजभन्म, विद्य त् । हानि, आश्विनमें युद्ध, कार्तिकमें धन और धान्य वृद्धि निर्वात अनल वा वायुसे पीड़ित पत्य अथवा देवालयसे प्रगहनमें धनलाभ, पौषमें चोरभय, माघमें अग्निमय पौर सन ववभग्न श्मशामजात देवाश्रित कदम्ब, नीम, फाला ण मासमें लक्ष्मीसद्धि होती है। (मिम प्रकाश १०). ला, कण्टकयुक्त वृक्ष, अमार, बड़, पीपर, 'नगुगडी, गरुडपुराणामें ऐसा लिखा है, वास्तुपुरुष बाई तरफ कोधिदार प्लक्ष, शाल्मली पोर पलाम इन सब वृक्षोंकी सोते है और तीन तीन महीने बाद एक दिशासे दूसरी साड़ियोंसे मी घरका काय न लेना चाहिये। दिशामें चले जाते हैं। इनकी मोदमें मकान बनवाना । मागका शिरोजान करके जिम स्थान पर घर बनवा प्रशस्त है । सिंह, कन्या और तुलाराशिमें उत्तरहारी और किसी तरह अमंगलको सम्भावना न हो, वहाँ बाकीके यथाक्रमसे वृश्चिक आदि तीन तीन राशिमें पूर्व, fare निर्माण कराना चाहिये। दक्षिण और पश्चिमहारो मकान बनाये जा सकते हैं। शाख, श्रावणा, प्राषाढ़. अगहन, फाला न और दरबाजको लम्बाईसे चौड़ाई आधी करनी चाहिये । FAतिक इन मामोंमे घर बनवाना अच्छा है| शुकपक्षमें दिशाओंके भेदसे मकानकं आठ प्रकारके दरवाजे होते हैं। . रम्भ करनेमे सुख और कष्णपक्षमें भय होता है। दक्षिणहारमें वीर्य हानि, अम्नि दिशाक हारसे बन्धन, विभीर मङ्गलवारके सिवा अन्य वारों में घर बनवाना वायुकोणक हारमे पुत्रलाभ और सन्तोष, उत्तरके हारसे गरम करना प्रशस्त है। पूर्णिमासे अष्टमी तक पूर्व राजपीड़ा, बन्धन और रोग, पश्चिमहारसे राजभय, सन्तान चरीघर, नवमीमे चतुर्दशोके भीतर उत्तरदारी, अमाव. नाश और विरोध तथा पूर्व हारसे अग्निभय, बहुम्ला सार शुक्ल अष्टमीक भीतर पश्चिमधारो और शुक्र नव. धन, सम्मान राजनाश और रोग होता है। ईशान दि. वचतुर्द शोके भीतर दक्षिणाहारी पर नहीं बनवाना के दरवाजेसे पूर्बदरवाजे सरीखा और नैऋतके हार ये। वय, व्याघात, शून्ध, व्यतिपात, अतिगगड, पश्चिमहार जैसा फल होता है। (गरुटपुगया ४६.) गृह मभ और गण्ड ये सब योग गुहारमभमें वजनीय प्रारम्भ करते समय याग और वास्तपुरुषको पूजा आदि समादित्यय, रोहिणी, मृगशिरा, ज्येष्ठा, धनिष्ठा, करनी पड़ती है। वय, रेवतो, मघा, अनुराधा पर श्रवणा नक्षत्रमें, वास्तुपयोग और वासविद्या शब्दमै सका विशेष विवरण देखना चाहिये। कारमें, गण्डके सिवा दूसरे योग, रिक्ता और विष्टिक वृहत्संहितामें ऐसा लिखा है-वास्तु यदि पूर्व और मरिया दूसरी तिथिमं रहारम्भ करनसे मङ्गाल होता है। उत्तरमें ऊ'चा ही तो धन क्षय और पुत्रनाश होता है। मासिक, ककट, मेष, कुम्भ, और धनु लग्नमें राहा दुर्गन्ध युक्त होनसे पुलनाश, टेढ़ा होनेसे बन्धुनाश और करनसे कार्य में बिलम ब तथा कन्या मीन और दिकम्रमसे मकानबने तो नारीगणका वंशनाश होता है। लग्नमें रहारम्भ करनेसे अर्थ लाभ होता है वासभवनके चारों तरफ समानभावसे भूमि वर्दन करनेसे किसी ज्योतिर्विदके मतसे कुम्भ, सिंह और वृष | समस्त पदार्थीको वृद्धि होगी। यदि किसी भी कारणसे यहारम्भ करनेसे वृद्धि होती है-ऐसा भी है। एक तरफ भूमि वर्जित करनेकी पावश्यकता पडे तो पूर्व के जो जो नक्षत्र बतलाये गय है. उनमेंस | या उत्तरमें बढ़ा सकते हैं। वास्तुकी पूर्व पाटि दिशा और पुनर्व सुके सिवाय दूसरे नक्षत्रों में ग्रहप्रवेश | जलपूर्ण रहनसे यथाक्रमसे सुतहामि, अग्निभय, शनुमय, वाजा सकता है। कन्या, कुम्भ, वृष, वृश्चिक. सिंह स्त्रोकलह, स्त्रीदोष, निधन, धनवृद्धि और पुसारखे मिथुन लम्बमें, तथा शुक्र, वृहस्पति सोम और बुध पाठ फल होते हैं। मकानके कामक्ष छेदन रहावेश करना शुभ हैं । युक्ति कल्पतरु ) करना हो, तो एमक्षिकीकर- बकर्म प्रकाशके मतानुसार-पेनमासमें टहारम्भ / के, दूसरे दिन म प्रदक्षिणपूर्वक वृक्ष करना