पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गृह-कल्प-गृहधुलो उचित है। कटा हुआ वृक्ष यदि उत्तर या पूर्व दिशा- , गृहकारक ( मं: पु० ) गृहं करोति लगव स्न, तत । में गिरे, तो उसे शुभ समझना चाहिये । इसके अलावा १ वर्णमङ्गर जातिविशेष । पराशर पद्धतिमें लिखा है दूमरी दिशाओं में गिरनेवाले वृक्षको लकड़ीको अशुभ कि कुम्भकारकके औरससे नापितकन्याके गर्भमें इमजाति- जानना, ऐसो लकड़ी मकानमें लगाने लायक नहीं । पेड़- की उत्पत्ति हुई है । (त्रि.) २ गृहनिर्माणकर्ता, को काटने पर यदि उस काटी हुई जगहका वर्ण विवर्ण घरका बनानवाला। न हुआ, तो उस लकड़ीको मकानके लिये उपयोगी सम- गृहकारिन् ( म० त्रि० ) गहं करोति क् णिनि । १ गृह- झना चाहिये। काटने बाद यदि वृक्षका मार भाग कारक, घरका बनानवाला। (पु.)२ एक तरहका वर्णान्तरको प्रान हो जाय, तो उस लकडीसे मकान नहीं काट । गृहकार्य ( . क्लो.) ग हस्य यतत। ग्टहकम, बनवाना चाहिय । घरमें प्रवेश करके अनाज, गो. गुरु, अग्नि वा देवतासे ऊचे स्थान पर न मोना चाहिये ।। प नोमा । घरका कामकाज । राहकुक्कुट (मं० पु० स्त्री०) हे रुधः कुक्कट: । गृह- जहां बांस या सोटे पड़ीं हों, उममे नोचे सोना निमित है। पालित कुक्कट, घरमुगा। प्राचीन ऋषिगण प्रामाद, एकमञ्जल, दुमजल. ति . ___ ग्रहकुमारो ( मं० स्त्री०) घृतकुमारी, ग्वारपाठा, घोकुवार। मञ्जल आदि मकान किम प्रकारमे बनाना चाहिये और। राहकुलिङ्ग ( मं० पु० ) ग है पुष्टः कुलिङ्गः । पत्तो विशेष, किम प्रकारले घरके खभ, सन्धियां ओर भी तें आदि एचटक, एक तरह की चिडीया, घराल गोरेया। इसके बनानी चाहियं, इमर्क अच्छे अच्छे नियम बना कर मांमका गुण-रक्तपित्तनाशक और शुक्रवृद्धिकर है। लिपिवद्ध कर गय हैं। उन्हीं नियमांक अनुमार पहिले ग्राहकूलक (म पु०) ग हस्य कूले ममीपे भवः ग हकूल- मन बना करते थे। प्रामाद पार वास्तुविधा पादि शम्द देवा।। | कन। काशाक। चिचिगडा, चचौंडा २ कलत्र, भार्या वा स्त्रो। ३ नाम। ४ मेषादि गहलत्य ( म० की. ) गहस्य कृत्य, ६-तत् । गहकार्य, राशि। घरका काम । क मं० पु० ) ग्रह कच्छप इव । पेषण शिला, ग्रहगोध (म स्त्रो०) गहस्यगोधव । ज्य ठी, छिपकलो,

  • पत्थर ।

टिकटिकिया। इसका पर्याय-पल्ली, मुमलो, विश्वम्बरा, ग्रहकना ( म० स्त्री० ) एक तरहका पौधा, घृतकुमारी, | ज्येष्ठा, कुड्यमत्स्य, पलिका, ग हगोधिका, गहगोलिका, घोकुवार, ग्वारपाठ।। माणिक्या, भित्तिका, ग हालिका। रहकपोत ( मं० पु. स्त्री० ) हे स्थितः कपोतः । पक्षी- ग्रहगोधिका ( म स्त्रो०) खुट्रा गोधा अल्पार्थ कन् टाप विशेष. घराल या पोमाज कबूतर । अत इत्व ग हस्य गोधिव। ज्येष्ठो, छिपकलो। रहकरगा ( सं० लो० ) घरका काम । ग्राहकट । सं० वि०) गृहं करोति क्लच । १ घरकारक, गगोलक ( म० पु०) गृहस्थितः गोलोक इव । जातीय घरबनानेवाला। २ एक तरहका पक्षी. चटकाया । टिकटिकी, छिपकलो। (Sparrow ) इसका पर्याय-धानाभक्षण, क्षम, भोक गहगोलिका ( मं० स्त्री० ) गई गोधिका इव पृषोदरादि. कृषिविष्ट, कणप्रिय है। त्वात् धकारस्य लकारः । ज्येष्ठी, घराल छिपकली। ग्रहकमन् (सं० क्लो० ) रहस्य कर्म, ६-तत्। १ घर. गहनो ( मं० स्त्रो० ) गह-हन् डोप । गहनाशि का स्रो, निर्माण । २ गृहकार्य । घरको नष्ट करनेवाला स्त्री। ग्रहकम दास ( सं० पु० ) ग्रहकर्मणो दासः, तत। टहचटक ( म० पु०) गृहस्थितः चटकः। पत्तीविशेष, गहकर्म का भृत्य, जिस नौकरके ऊपर घरका कार्यभार घराल गोरेया पक्षो। अपित है। यह चुली (म० स्त्रो० ) गृहाणां चुलीव । दो घरवाला ग्राहकलह (सं० पु.) यह कलहः, सत। गहविरोध, मकान, दो ऐमो कोठरी जिनमें एकका मुख पथिमको घरका झगड़ा। ओर और दूसरका पूर्व की ओर हो। Vol. VI. 121