पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४९

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खोज-खोसा : 8. राजधानीको रक्षा को। किन्तु इनका वैसा साहस पोर फल है । यह वर्षा ऋतुमें उपजता और मोटा मोटा एक पषषसाय व्यर्थ हुवा। उनके घरहीके किसी शव के एक बित्त तक लम्बा लगता है। खोराका मिरा काट षड़यन्बसे गघवगढ़ विपक्ष सैन्य के साथ पा गया। दोनों कटे टुकड़ोंको कुरीसे गोद करके एक दूसरे पर जयसिसोपर जङ्गलमें अपना प्राण बचाने लिये रगड़ते हैं। इससे उसके मुंह पर फेन उमड आता है। माग गया। १८१६६०को उसी चिन्तासे उनकी मृत्य फिर पहली कटी जगहके एक अङ्गल नीचेसे दोबारा समके लड़के का नाम दृकशमिथे। इन्होंने अपने काटते हैं : कहते हैं, ऐमा करने पर खीरेका कडवापन पिहराज्य को उभार करने के लिये बस स्थानोंसे सैन्य निकल जाता है। अन्तको करीसे बकला कोल करके संग्रह कर शव भोंके बिना पाक्रमण किया। इस समय खीरा नमक और काली मिर्डको बुकनीके माथ खाते हैं। हटियगवरमेण्टले १८२.ई में गजा दूकूल सिंह को यह खाने में बहुत अच्छा लगता ओर डकार आने पर गधवगढ़ पोर वास्तभट जिस्ता दिला 'दया। सभीसे वह अपना ही मजा रखता है। खोरको तरकारी भी स्थान उन्होंके वशधरीके प्रधान पा रहा है। वहां की बनती है इसके वोज ठण्डाईमें पीस कर पीये जाते हैं। भामदनी २०५००० रुपये है। उसी समयमे वा स्थान खीरा शीतल होता और बहुत स्वानेसे शीतज्वर उत्पन्न ग्वालियर राजका करदराभ्य हुमा। . कर देता है। खोज ( हिं० स्त्री ) १ चिढ़, झलाहट । २ चिढ़नकी खोगे (हिं. स्त्रो०) बाख, चौपायोंके थनके जपरका बात, झझलाहट पैदा करनेवाली चीज। माम। इसमें दुग्ध ज्यबहोकर पवस्थान करता है। खोजना (हिं० कि० ) १ चिढ़ना, उकताना, बिगड़ना। खोल ( स० पु०) कोस पृषोदरादिवत् साधुः । कोलक, खोप (हिं० पु.) १ वृक्षविशेष, कोई पेड़। यह सघन काटा। तथा सरल रहता और पञ्जाब, राजपूताना तथा अफ- खोस (हिं० स्त्री.) १ लाई, भुना पोर खिमा पा गानस्तानमें उपजता है। पत्र क्षुद्र एवं लम्ब लगते और धान। २ कोस, कांट।। ३ अनारविशेष, कोई शीतकालको छोटे छोटे फूल खिलते हैं। यह पशुओंके जेवर या गहना। स्त्रियां इसेमाको पहनती और लोग खिलाने और रस्मियां बनाने में काम आता है। २ लाज- भी करती है। मुंहासे को कोन। ५ भूमि विशेष, वन्ती । ३ गंसधारा। कोई जमीमा बस दिन पीछे जोनी जाने वालो भूमि खीर (हिं. स्त्री०) दुग्धपक्क तण्ड ल, जाउर, तसमई। खोस' कामाती है । पहले चावल चुन बिन करके सुखा लेते हैं। फिर उसे खोसना (हिं. क्रि०) खोल नगाना, गोठमा । गर्म घीमें अल अच्छी तरह भूना जाता है। चावल खोली (हिं. स्त्री०) पामका बीड़ा, सगा नगाया भुमते भुनते लाल हो जाने पर विशुद्ध दूध डालते हैं। पान । जब दूधमें पकते पकवे चावल फल आता, चीनी देकर खीवन (हिं. स्त्रो.) उन्मत्तता, मस्ती। कड़ाही उतार ली जाती है। शीतल होने पर दूधमें खोवर (हिं. पु.) वीरपुरुष, बहादुर पादमी। बना हुआ यही भात 'खोर' 'जाउरि' 'तसमई' आदि खोस (हिं. वि. )१ मत, बरवाद, उजाड़। (स्त्री.) नाम धारण करता है। खीर खानेसे फिर किसी चीज २ खिसियारट, चिढ़ । १ कोपा गुस्मा। ४ विगाह, पर मन नहीं चलता। नागजगी । ५ माजा, शर्म । दात निकासनका भाव, खीरचटाई (हिं. स्त्री० ) अन्नप्राशन, पसनी, जिस दिन खिमारा, घाटो। दुग्धभेद । व्यानेके पीछे दिन शिशुको सर्वा यम अब खिलाया जावे। तक होनेवासा गायका दूध 'खोस' कराता है। रस- खोरमोहन (हि.प.) एक बङ्गाला मिठाई। यह केनेका का पपर नाम है। . . . बनता है। . खीमा (हिं. पु.) १ थेसा, जैव । २ किसी किस्मकी खोरा (हिं. पु. ) फम्तविशेष । खीरा कर्कटौजातीय- एक चेली। .यर कपड़े की बात है। इसको हाथमें डाल