पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४९०

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गृहस्थधर्म-गृहाश्रम पालता है, वह अवशा हो मनुषा और देवोंके सुखोंको लीवत्व । गृहस्तम्भ, घरको खुटी या खम्भा । भोग कर मोक्षसुख प्राहा करता है। इमलिए व्रतोंका एहस्वामिन (मं० त्रि०) गृहस्य स्वामी अधिपतिः, ६-सत् । निर्दोष पालना हो मवथा उचित है। गृहपति, घरका मालिक।। गृहस्यों को चाहिये कि, वे अपने मनमें मर्वदा यहो ग्रहहन् ( मं० त्रि.) गाहं हन्ति हन् क्तिप । गृहनाशक, भावना रखें कि, मैं ममम्त प्राणियोंसे मंत्री भाव रवं, घरको नष्ट करनेवाला । पूज्य निष्पक्ष विहानों में प्रमोद रख, ममस्त प्राणियों पर यहाक्ष ( म० पु० ) गृहस्योतीव समासे टच । गवाक्ष, दया भाव रख और शत्रुओं के माथ भी मध्यस्थ भाव झरोखा, छोटो खिड़की। १)। इमसे आत्मामें मदा शान्तिभाव रहता है। यहागत (म पु०) गहमागतः, २-तत् । १ आगन्तुक, ___ यदि गृहस्थ इतने व्रतों को पालन न कर मके तो | अतिथि। २ जो मनुष्य किमी दूमरेके घरमें आया हो । कमसे कम उसे पांच अगव्रत तो अवशा हो पालना गृहाधिप (म० पु.) एहस्य अधिपः, ६-तत् । १ गृहस्थ। चाहियं तथा नित्य सुवह उठ कर शौचनानादिके (त्रि.) २ ग्राहस्वामी, घरका रसक । बाद जिनमन्दिग्में जा कर मञ्च देव, शास्त्र, गुरुको गृहापिका ( म. स्त्री० ) ज्येषठी, छिपकली। पूजा करनी चाहिये । मर्च देव वह हैं जिनमें रागहेष | हाम्न ( मं० ली० ) एहस्थि ताम्ल । कानिक, कॉजी। नहीं ( वीतरागी ) है, मज हैं और हितोपदेशी हैं। गृहाम्ब (म. ली.) गृह पर्यमित अम्व । कांजिक, इन्हीमे कहे हुए जो शास्त्र हैं, वे मञ्च शास्त्र हैं, और कॉजो । वाद्य आभ्यन्तर परिग्रहमे रहित दिगंबर मुनि मच्चे गुरु ग्रहायनिक ( म० पु० ) हरूपमयन विद्यतेऽस्य गहा. हैं। इनकी उपासना करनी चाहिये । इसके बाद यन-ठन् । एहस्थ । शास्त्री का स्वाध्याय करना चाहिये। फिर सामयिक गृहाराम ( म पु० ) ग हस्य आरामः, ६-तत्। गृहके करनी चाहिये । र 'स्थ धर्म का विस्वत वयं न जानना हो तो “रत्न निकटवर्ती उपवन, धरके नजदीकको फुल्नबाड़ी। करगण गावाचा.. ग. स्थधर्म " "अमिता। यान कासार ' अादि यथ ग्रहार्थ ( म० पु० ) गृह निष्पादोऽर्थः, मधापटलो । देखने चाहिये। यहां मक्ष पसे वर्णन किया गया है । यहम्थ गहकर्म, घरका कामकाज । धर्मका र विवरण जानना हो तो उन गन्दीका तम सातक शब्द की गृहालिका ( म० स्त्री०) गहे आलिरिव कायति के क। देखो। ग्रहगोधिका, घराल छिपकली। गृहस्थान (मं० लो०) रहस्य स्थान, ६ तत् । वाम करने गृहावग्रहणी ( स० स्त्रो०) ग्रह अवग ह्यत अनया अव. योग्य स्थान, एमा स्थान जहां घर निर्माण किया जा सकता है। यह देन । ग्रह करण ल्य ट-डीप । देहरी, दीवार । गृहस्थाश्रम ( मं० पु.ली.) गृहस्थरूपमाश्रम। गृहस्थ- ग,हावस्थित ( स० त्रि०) गहरवस्थितः। ग्रहस्थित, के कर्तव्यधर्म चार आश्रममिसे दूसरा आश्रम । | जो परमें स्थित है। गृहपधम देखी। ग्रहाशया (म स्त्रो. च्छायायुक्त स्थान प्राशेते गृहस्थी (हिं. स्त्री०) १ एहस्थाश्रम, गृहस्थका कर्तव्य। पाशो अच्-टाप । १ ताम्ब ली, पानको लता । २ पूगी. २ घरबार, यह गवस्था। ३ कटुम्ब, लडकेवाले. परि । करे। दयालु वक्षमा पार। ४ घरका मामान, माल. उचित - श्मन् ( स० पु० ) गृहस्थतोऽश्मा। पेषणी, मसा- गृहस्थ ल ( सं० क्ली० ) ग्टहस्य स्थल, ६ तत्, ममासे स्लादि पीसनेकी शिला। (१) 'पत्व एम वी गणिषु प्रमादक पुनर्विषु पापरत्वम। रहायम (म. पु.ली.) गृहमेव आश्रम। १ गृह- मजास्वभाव' विपरोताती सदा ममामा विदधातु देव रूपप्रायम, घरके सदृश रहनेकास्थान। २ गृहस्थके (अमितमतिषाचार्य) , अनुष्ठेय धर्म, गाहस्थ ।