पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४९६

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४९. भयमें भागने के बदले अपने उभर सौंगांसे उसको मारने स्वाभाविक रूपसे दृढ़ रहता और स्कन्धोपरि और सामन चल देता है। इसके निम्नलिखित कई एक मस्कृत नाम और पीछे के दोनों पैरोंके जप "दोपरता पड़ता है। मिलते हैं-खली, गगड क, खजमग, क्रोडि, भुङ्गमुख, उसीसे इसका शरीर अस्त्व। अभदा है। लांगू- वज्वचर्मा, युग्म, वली, वर्धानम, स्वनो माह एक चर, गण) लके अग्रभागमें औरयायो। .ण तथा कठिन त्साह और गगड़ । फारमोमें इमको गर्गदन कहते हैं। लोम निकलताब) १ गेरुके रङ्गका खङ्ग है। मत्थं की भगवान् मनुने इस खानधारी जन्तुको पञ्चनखों में गिना करोटोका आकार चूड़ा जैमा लगता है। अपराशर है। एतद्भिव बाईबल के पूर्वभागमें बहुतसे स्थलों पर देशीय गण्डक ऐसे नहीं होते । इमके सब मिला करके मिसर राज्यके गेंका ( B.iinoceros unicorrnis) ३६ दांत होते हैं। उल्लेख है। टेसियास:( Gtasias ) कल्पित खड्गवि- भारतवर्षका गेंडा वहि त देशसमूह-विशेषतः शिष्ट वन्य गर्दै नका विवरण कुछ कहानी जैमा लगते भो वङ्ग, श्याम और कोचीनके जङ्गल, नदा तोरवती स्थान अधिकांश गडककी प्रततिका परिचायक है। इन्होंन और अन प भूमिमें रहता है । यह घास पात और पड़ोंक शिखा है कि उमके सींगसे पानपात्र बनते और उनमें डालियां खा करके जीवन धारण करता है। मी पोनसे वात नथा मृगोरोग हटते हैं। उसका भारतवर्षमें उसको अपेक्षा और भी एक जातीय गुल्फास्थि सुन्दर रूपमें गठित, वृषभका जैसा दृढ़ और छोटा गेड़ा ( R. Sodaicus ) देख पड़ता है। सुन्दर- खुरविभिन्न होता है । वन्य धा पालित गदभ या किमी वन, मेदिनीपुर, राजमहलके गङ्गानिकटवती पार्वत्य अपर एक शाफ जन्तुको वैमी एड़ी नहीं पायी जाती प्रदेश और महानदीके तोरस्य वन्य भूमिमें इसकी संख्या आरिष्टटल अपने ग्रन्थमें टेमियासके विवरणका प्रतिवाद अधिक है। कोई कोई उसे यवहोपवामी गैड़े से उत्पन्न करके लिखते हैं कि उन्होंने एक खड्ग और एक शफ जीव जैमा बतलाता है। नहीं देखा और कंवलमात्र गुल्फ विशिष्ट एक खङ्गी भार यवहोप समूह में एक प्रकार गेडा R. Javanus) तीय गदभका उम्म व किया है। है। इसके गलेको तह भोतरको छिपी है। नामिका फिर ई०से १८० वर्ष पहले एगाथारकाइडिमन एक कचकडा निकलता है। यह दलबद्द हो करके किमी खली गण्डककर्ट क हस्तीक उदर विदारणको | विचरण करता है। बात लिखो। उमोसे अगरेजीमें इसका नाम Rhino- भारतीय गण्डकको तरह इसको तह नहीं होत', ceros पड़ा है। रोमराज्यको अनेक माचीन मुद्राओंमें भी | सिर्फ घुटनके पास परत पड़ता है । सर्वाङ्ग में गोल गोल गगड होते हैं। इसका लोम छोटा तथा दृढ़ रहता और कर्णाग्रभाग और पूछमें निकलता है । थुथन नर्म नम लगता और बढ़ानसे बढ.ता है। मस्तक प्रायः त्रिकोणा- क्वति होता है। पिपरके बाद कचकडे नोचे मुखका प्रायः तन कुछ छोटा और दोनों पाश्व का मांस गोल जमा लगता है। ___यवहोपवासी इस जातोय गण्डकको 'बरक' और गेंडे को मूर्ति मिलती है। ( Descripve Catalogue | मलयवासी 'बड़क' कहते हैं। साधारणत: यह फुट of Cahinnte of Roman Imperial large Bras- लम्बा और ४ फुट ३ र अ'चा होता है। medals) भारतमें एक जातीय गैडा ( R. Indicus ) सुमात्रा दीपक गेडाको २ कचकड़े पाते और भार. है। इसका गात्र ईषत् रक्ताभ पांशुबर्ण, गण्डविशिष्ट सोय तथा यवहोप गण्डकको भांति ३६ दांत देखे जात तथा लोमविहीन होता है। चर्म पतिशय स्थल तथा है। गावचर्म वलियुक्त तथा पिङ्गलवर्ण लोमसे पाच्छा.