पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५०३

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आसानोसे निकल प्रति है : ओर पात्र साफ करने में भी समयमै उन दोन नम्लाक महको बन्द कर देना चाहिये प्रामानी होती है। दूमीलिए दोनों तरफ ढकन बनाये जिसमे कि, गैस निकलतो है। ऐसा नहीं करनमे बाहर जाते हैं। कोई पात्र विल्कल गोल और कोई गोलाई को हवा उम नलमें घुस जायगी या उमकी गेम बाहर लिए हुए लम्ब होते हैं। गैसके कारखानकि ये पात्र निकल जायगी। बारहको हवा नलमें घूम कर गैसमें जमीनसे ऊ'चे और मिलमिल्ने वार लगाये जाते हैं। एक मिल जानसे बत्तीका उजाला कम हो जाता है। इमलिए पंक्ति में बारह पात्र तक लगाये जा सकते हैं। गम बना कलकत में जिम प्रकार ईन जोडनमें S अक्षरके माफिक ते समय नोचेका ढक्कन बन्द कर देना पड़ता है; और नलको टेढ़ा कर देते हैं, गमके नलको भो बहुतमे लोग फिर कोयला भर कर ऊपरका ढक्कन भी बन्द करना वैसा हो टेढ़ा कर देते हैं। नलको ऊपरको ओर चढ़ा पडता है। सिर्फ ऊपरमें दोनों तरफ दो छेद रह जाते कर फिर नीचे झुका देनमे एमा टेढ़ा हो जाता है। हम हैं। इसमें गम निकलते रहनके लिए दो नन्न लग स्थानका तल भाग नलम मोटा है इसे एक गट्टा भी कहा रहते हैं। इस प्रकारमे जब पात्र कोयल से भर जाते हैं, जा सकता है। रमको 'हाइड्रोलिक मेन' ( Ilydraulic तब उनके नीचे आग जला दी जाती है। पात्रके प्राम main) कहते हैं । इम गट्टे के भीतर हमेशा पानी या चल. पाम भी आग जलाई जा मकती है। एक पक्तिके मब कतरा भरा हुआ रहता है। पावसे गम बन कर पहिले पात्रोंमें जिमसे ममान भावसे आँच लगे, उसका भी नल हारा ऊपर चढ़ती है। फिर वह गैस गट्टे के पास विशेष ध्यान रखना चाहिये। कमती बढ़ती होनेमे आजाती है। वहां पर जाकर मामन पानी या अलकतरा किमी पात्रक कोयन्न तो कच्चे ही रह जाते हैं, और किमी देखता है। पात्रमं यदि जल्दी जलदो गम न,बने और किमोके विल्क ल जन्न भो जाते हैं। इनके सिवा और भी नीचेसे अगर जोर धक्का न आवे तो गैस उम अलकतरे- बहुतमे दोष उत्पन्न हो जाते हैं। पत्थरके कोयल में कक को पार कर आगे नहीं बढ़ मकती। परन्तु ऐसा नहीं गन्धकका भी भाग रहता है। यह गन्धक भाफ रूपमें होता। पात्रमें बरावर कोयले मिकत रहते हैं गैस भी परिणत हो कर जिम गेमके माथ मिल जाती है, वह बराबर बनतो रहती है और धक्का भी बराबर जारी रहता गैम बहुत ही अनिष्टजनक होती है। है। इसलिए पोछको गस आग गसको धक्का देतो हुई पात्र में गेम निकलनेके लिए दो नल रहते हैं। गैम | अलकतरम प्रवश करत अलकतरमें प्रवेश करती है। अलकतरासे ग़म हलको बननके माथ माथ उन नलों द्वारा वह निकलती रहनी होती है। इमलिए अलकतरेमें घुस कर बुबुदाकारमें चाहिये। देगे हानेमे पात्रके ऊपरसे कणसे झरने लगते ऊपर आजातो है । ऊपरमें पानसे फिर कोई चिन्ता नहीं। हैं, जिममे पात्र शोघ्र ही खराब हो जाता है; और गैमकी फिर वह नलकी रास्तामे बरावर चली जाती है। कोक- आलोकदायिका शक्ति घट जाती है। पात्र या रिटर्टके कोयला निकालते ममय भी वह फिर निकल नहीं सकती भौतरके कोयले जब पूर्ण पक जाते हैं, तब उन्हें कोक- क्यांकि, उसके पोछम कोई धक्का नहीं लगता। न लौटे कोयला कहते हैं। कोक-कोयलामे वाष्यीय भाग निकल तो मामने अलकतरा है, उसे पार करनको ताकत नहीं, जाता है। इसलिए वह देखनमें जन्ना हुपासा मालम इसालए पुन: वह लौट जाती है। इसी प्रकार बाहरको पड़ता है। कच्चे कोयलोंसे यह हलके होते हैं। इसमें वायु भी अलकतराको पार कर भीतर नहीं जा मकतो । अङ्गारका भाग (Carbon) भी ज्यादा रहता है। जलाते कोयला सिकन पर पहिले पहिन जोगस निकलती बखत इनसे धुआँ कम निकलता है और टुगंध भी कम है, वह विशुद्ध नहीं होती। कोयलेमें जो तलादि पदार्थ होती है। इसलिए यह रमोई करने के काममें मनाया रमत है, वही उत्ताप लगनसे वाष्पाकार धारण करते हैं जाता है। और गैसके साथ मिल जाते हैं। इसके बाद ठण्ड होने ममुदय गेमके निकल जाने पर पात्रके दोनों ढक्कमीको पर जम जाते हैं। जम कर जो पदार्थ बनता है, उसे कबोल कर पके हुए कोयले निकाल लेने चाहिये। इस' अलकतरा कहते हैं। अलकतरा जम कर गैससे अलग Vol. VI. 126