पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५०८

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१०६ गांड पेट भरते हैं । जङ्गल और घास काटकर भी पड़ोसियोंको | २५ भादमियोंको वलि दो थी। यह मम्बाद धोरे धीरे वेचा करते हैं। ये गजका मांस नहीं खाते । समय समय १८८३ ई०में तक नागपुरके राजाके पास पहुंचा था। पर चोरी ओर के तो करके पड़ोमियों का धन ल ट | बन्धुकवृक्ष के नीचे शलो, गोङ्गरा मल, पलो, गण्डावा, खास वा कड़, बूड़लपेन और मानियाल इन सात देव इनकी धार्मिक कार्य प्रणाली शक जातिके समान ताओंकी एक साथ “मातदेवल" के नामसे पूजा की है।ये लोग जीवित घोडके वदले देवको मिट्टी के घोडे । जाती है। चढ़ाते हैं। प्रतलोकके पिष्टपुरुषों को तृप्त करने के लिए इसके सिवा कोदोपेन, मातुश्रा, फासँपेन, हदल, मिट्टोका घोड़ा, चाँवल, उड़द, अण्डा, मुग्गा और भड़ बङ्गाराम, भौवासु वा भीमसेन, मसरकन्द, बाघोव, सुल चढ़ाते हैं। भोन्स्ले राजन इनके प्रचलित गोवधप्रथाको तान शाकद, शकलदेव वा शक्रपेन और सान्यालपन वा सर्वथा बन्द कर दिया था। लड़के लड़कीयोंके मर जान | सेनस्कदन देवताओंको पूजा थो प्रचलित है। पर ये लोग उन्हें जमीनमें गाड देते हैं, कहीं कहीं वृद्धोंक मगडलावासो गोडाम 'लमजिना' विवाह प्रचलित भी गाड़ देते हैं । परन्तु वस्तारको मादिया जाति और | है। इम प्रथाके अनुसार वरको विवाहसे पहले कुछ हिन्दु धर्मानुमारी गौड़ लोग म दें को दाह क्रिया | दिनां तक कन्याका आज्ञावाहो बनकर रहना पड़ता करते हैं। है। कन्या अपनी इच्छानुसार पुरुष के माथ चली आ ये लोग तीस देव देवियोंको पूजा करते हैं। इनमें सकती है। इनमें जो विवाह जवरदस्ती किया जाता है, बूड़ादेव और दुल्लाद वको अधिक मम्मान करते हैं । उसका नाम है,-'साधवन्धनो' । यदि कन्या वरक कभी कभी सृष्टिकर्ताको स्तुति द्वारा पूजा करते हैं । घर पर विवाह करने पावे तो उम व्याहको 'सादिवथो' पौर उनके उद्दशसे घी और चोनी हारा होम भो कहंगे। इस जातिको विधवायें अपने देवरके साथ किया करते हैं। या और किमो भौ पुरुषके साथ अपना ब्याह कर सकती ये लोग प्रति वर्ष फमलके समयमै बूड़ादेव वा बूडल- पेन ( सूर्य) के लिए शूकर उत्सग करते हैं। बू डल पुरुषके मर जाने पर वह जला दिया जाता है पंनकी व्याघ्रमूत्ति लोहे से बनी हुई है । मातियाल और लोको गाड़ देते हैं। शीतला देवोको कहते हैं । भण्डारा जिले के दक्षिणम बङ्गदेशको गोंड जातिमें राजगोड, धाकड़ गोंड़, परस्पर जुड़ो हुई चौखूटे काठ पर कुछ मूर्तियाँ बनी दोरोपा गोंड़ वा नायक, झोरा आदि चार थोक हैं। हुई हैं, उनका नाम बगरबाई है ऐसौ किम्बदन्ती सुन इनमें राजगोंड हो गण्य-मान्य है। क्योंकि बहुतीका ममें आतो है कि घण्टराम, चम्पाराम, नेकाराम, पोत ऐमा अनुमान है कि, य असल में य हो गोड़राजवंश- लिङ्ग प्रादि उनके पोंच भाई हैं और दन्त खरो (काली)। प्रसूत हैं। धोकड़ लाग रास्तोंपर भीख मांगा करते है। नामकी एक बहिन है । गौड़ जातिक लोगों को ऐसौ सिंहभूममें दारोया गोडोंको ज्यादा संख्या है। कर्णल धारणा है कि, ये हो देवदेवियां जीवों को मृत्यु का डेलन साहबने लिखा है कि, ये दोरोया गोंड हो बामन- कारण है। नागपुरके रहनेवाले गोड इन दं वद वि. ताटोके महापात्रको सेनामें भर्ती थे। अपने स्वामोक यों को विशेष भक्ति करते हैं, और बहुत डरते भी हैं। विरुद्ध प्रख धारण करने के अपराधसे ये लोग बामन जगदलपुरसे ६० मील दक्षिण-पश्चिममें शहरी और घाटोसे निकाल कर सिंहभूममें रखे गये थे। पन्द्रवती नदी हैं, इन नदियोंकी दक्षनशाखाके संयोग इन लोगों में बाल्यविवाह और पूरीउम्र में विवाह अब स्थान पर वस्तारके निकटवर्ती दगड़े वार नामक ग्राममें भी प्रचलित है। हिन्दूधर्म के मंस्पश से ये लोग क्रमशः दन्त खरी ( काली) का मन्दिर है । वस्तारराजने वास्यविवाहकै पक्षपाती होते जाते हैं। सिन्दरदान और किसो कार्यके उपलक्षमें १८१५ में उक्त देवीके सामने | समक्षके साथ विवाह ही इसका प्रधान प्रा। कहीं