पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५१२

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कृष्णमार मृगके सदृश हो यदि ऐसा बल एहजात भी शुभाशुभ फल जाना जा सकता है। वृहत्म हितामें लिखा हो तोभो उसे परित्याग करना चाहिये । जिमके शरीरका है कि, गौक अतिशय दोन भाव अवलम्बन करनेमे राजा- वर्ण भस्ममिश्रित ईषद् रक्त, दोनों नत्र मार्जारके जैसे का अमङ्गल होता, इमोतरह परम भूमि कोड़ने पर तथा जिम शरोरमें पुष्पाकार श्यामवर्ण चित्र लक्षित रोग, चक्षु अश्रुपूर्ण होने पर मृत्य एवं अकारण अवि. हो वह बैल ब्राह्मणों के लिये तो अच्छा किन्तु दूमगे के रत डकारने पर पालकको चौरभय हा करता है। लिये अशुभकर है। जिम बैलको ग्रीवा वश तथा दोनों रात्रिकालका गायके अकारण शब्द करने पर भय होता, अांखास कातरता भाव लक्षित होता हो, जो भार ढोन किन्तु वृषभ शब्द करने पर मङ्गल हुआ करता है। में अक्षम हो, जसका ओष्ठ ताम्रवण , मृटु तथा संहत यदि गो छोटो छोटो मक्षिका और छोटे छोटे कुत्तेम हो, स्फिफ अप्रशस्त हो, जिला और ताल ताम्रवण का ताड़ित हो तो श घ हो वृष्टि होती है। जब मदानसे हो, का कोटा, ह्रस्व तथा उच्च हो एवं पट देखन में गाय मन्ध्या ममय लोटतो है यदि उस समय हम्बा शब्द सुन्दर मालूम पड.ता हो, जिसके खर ईषत् ताम्रवण के करती हुई बहुतांक माथ गो में प्रवेश करे तो गोष्ठकी हों, वक्षःस्थल विपुल और विस्तात की, ककुद् वृहत्, वृद्धि होती है। गोगण आर्द्राङ्गो और हष्टनोमा ह ने गात्रत्वक स्निग्ध, राम मनोहर और तामवण के हो, पर धन तथा हर्षको उति होतो। ( ना . ) जिमका लाङ्गल क्षुद्र क्षुद्र लोमविशिष्ट और भूतन्नस्पर्शी देवलका मत है कि गौ अष्ट माल्य ट्रयों में एक हो, चक्षु रमाक्त, स्कन्ध सिंहकै महश और गलकम्बल है। इमका दर्शन, नमस्कार, अर्चना और प्रदक्षिणा कर सूक्ष्म तथा छोटा हो, एमे वृषांको सुगत कहते हैं, यह नसे आयुको वृद्धि हुआ करतो है। गो प्रणामका मन्त्र शुभफन्तप्रद हैं। जिस बलक चक्षु वेदुर्य, मल्लिका भार यह है-- बुदबुदुक मदृश ही, चक्षुका आवरण स्थ ल और पाणि 'ममा गामा: शोमतामा सोरमेय'भा एव च । पम्फुट हो, वही बल वहनक्षम ओर प्रशस्त फलप्रद ममा ब्रह्मसमभाव पविधान्यो नमानमः " ( ब्रह्म पुराण) माना गया है। यह मन्त्र पढ़ कर गोको नमस्कार करनेमे गोदानका जिस पृषभको नासिकाके निकट वलि रह, मुख ठोक फल होता है । भविष्यपुराणके मतानुमार गायको अंगम- माजोरक जैसा हो, लाङ्ग ल सुन्दर, गति घाई के सदृश, दन और नमस्कार कर प्रदक्षिण करना चाहिये । गायक वृषण अपक्षाकत वृहत, उदर मंघके सदृश नोल वण प्रदक्षिण करने पर महापा पृथ्वो प्रदक्षिणका फल होता। तथा वडण और क्रोड़ छोटा हा, उसो जातिका वृषभ गोकी अस्थि लान करना निषेध है। भार ढोनमें अक्षम और प्रशस्तफलप्रद माना गया है। विष्णु के मतमे गोके विष्ठा, मूत्र, क्षीर, घृत, दधि जिस वृषभ शरीरका रंग उजला, चक्षु पिङ्गलवण, शृङ्ग और रोचना य छह पदाथ पावत्र है। ताम्रवण और मुख बडा हो उमौका नाम हम है। यह ___गोगण रोमन्थक जातिके अन्तर्गत है । साधारणतः शुभफलप्रद एवं इसे पालनवाले व्यक्तिका उति होती इस जातिके पशु अतिशय निरीह और महजमें हो पोष है। जिम बलका लाङ्गुल पुच्छयुक्त और भूतलस्पों हो, मानते हैं । एमा देखा गया है, कि मनुष्यक इमके स्तनसे वडगा तात्रवण , ककुद लाल सथा शरीरका रंग खत मुख हारा दुग्ध पान करने पर भी यह किमी तरहको और कमिश्रित हो वह वल थोड. हो ममयमें अपने बुराई नहीं करती। इसके पावके खुर खण्डित तथा स्वामोको लक्ष्मोको बढ़ा देता है। जिस वृषभका एक मस्तक पर दो शृङ्ग होते हैं। विपक्ष कर्टक आक्रान्त चर व तवण और दूमरा-चरण तथा शरीर भित्र भिव होने पर यह पद और शृङ्गसे ही आत्मरक्षाको चेष्टा वर्ण कहा वह वृषभ रहस्थोक लिये अत्यन्त शुभफल- करती। इसके मस्तकको करोटी (खोपड़ी) कुछ स्य ल होतो गांक इङ्गित (चेष्टा) देख कर पाल कके भाबोका तथा ललाट देश वृहत होता है। मुखविवर लम्बा भोर