पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५१८

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गोता. सैन्य बाध्य हो लौट गये । इस समय गोत गीजको एक अलङ्कारों से मजा कर चलत और भृत्यगण आमा सोटा दूसरा मकट आ पड़ा । पोतुगल और स्पनराज्यमें पर- छत्र चामर और पानका दोना हाथ में ले माथ साथ जाते स्पर विशेष मम्बन्ध था। यद्यपि ओलन्दाज स्पेनको थे। देखनसे मालुम पड़ता है कि कोई नबाबपुत्र जा अधीनतासे मुक्त हो गये थे तोभी पोत गोजा पर उनका रह हो । गरीव मनुष्य भो धनी मनुष्यका अनुकरण करते अधिक डाह था । ये भारतके उपक लमें आ पोत गोजर्क हैं. सुतरां उनका पेट भर या नहीं बाहरसे वे सजधज ऊपर अनिष्ट करनेकी चेष्टा करने लगे । कर रहते थे। थोडा अवकाश पानसे हो अधिकांश मनुष्य ऐमो गड़बड़ी और उत्पातमं भी गोपा थोहोन नहीं जार्क अडड या प्रमोदगृहम जा आमोद करते थे। इधर हुवा। मोगलबादशाहके प्रबल भाधिपत्यकालमें दिल्ली उनको स्त्रियां भी विलामितामें डब कर इतनी मत्त हो और आगराका जैमी थोद्धि हुईथो और १६वीं शताब्दी जाती थीं कि, उन्हें घर काम काजका भी होश न में पोतंगोजक अधीन गोआ भी वैमी हो ममृद्धि और रहता था पार कभी कभी वे अच्छो अच्छो पोशाकोंसे अपूर्व थो धारण को थी । इनकी समुच्च माधावली, पृथ्वी अपनको मजा कर नौजवानोंक साथ मङ्गम करनेकी के नाना स्थानक वणिकीका ममागम, ईमाई धममन्दिर कोशिश करती थीं। के नित्य उत्सव और योद्ध,गणक अस्त्रको झनझनाहटमे कोई कोई अपन पतिको मादक वस्तु पिला अचेतन दशकोंकि लिए यह नगरी सुरपुरो महश ममझी जातो कर दूमर पुरुषर्क माथ सुख भोग करती थीं। पोत गोज थो। उस समय भ्रमणकारियोंन मुक्तकण्ठस इनक राज्यको एमी अवस्था थी । इसी धूमधामक समयमें १६०३. गौरवको घोषणा की है। ई०को अोलन्दाजान गोआ अवरोध किया था। यद्यपि पोत गोजो ने जिम तरह अस्त्रबलमे आधिपत्य विस्तार उम ममय उनका उद्यम निष्फल हुआ था, तथापि उन्होंने किया था, उसी तरह अपन अत्रक जोरसे हो मैकडो अपने पैर पीछे न हटाय , क्रमश: पोत गोजको बहुतसी व्यक्तियों को इमाई धर्म में दोसित किया था। धम प्रचार रणतरि (फौजी जहाज) हस्तगत कर नीं। इम ममय गोत्रा ही इनक अधःपतनका कारण हुआ। साई देवा। के सारो और प्रबल ज्वरका प्रादर्भाव हा। १६३५ ई. १६वीं शताब्दीमें जिनक वीरदपसे भारतभूमि कंपित तक दम ज्वरम अधिवामियोंको यथेष्ट कष्ट हुवा। १६३८. हो उठो थी, १७वीं शताब्दोमें वेही वीरतजा पोत गोज ई०को फिर भी अोलन्दाजान गोआ अवरोध किया था। गण अत्यन्त विलामी हो गये। विलासिता ही इनकं इस ममय भी उनको पूर्ववत् पृष्ठ प्रदर्शन करना पड़ा था। अधःपनतका अन्यतम कारण था । उस समय गोआ नगर इन ममस्त दुर्घटनाओं से गोत्रा धीर धोरे श्रीहीन होता में यद्यपि पान्यनिवास नहीं था तौभी नगरकै मर्वत्र जूा गया। १६४८ ई०को टावारनियरने गोत्राको मौधावलो- खेलने अडडे और प्रमोदग्गृह मौजूद थे । जुआ खेलन- कं शिल्पनेपुण्यको अधिक प्रशंसा को थी, किन्तु उन्होंने का अडडा प्राजकनके अच्छे पच्छे बैठकखानाक सदृश अपने प्रथमागमनमें गोमाके थोडं पोर्त गीज परिवारका अतिसुन्दर रूपसे मज्जित रहा करता था । पोर्तगीज गव. जिम प्रकार सुखसे रहते देखा था, इस बार उन्ह संपूर्ण मण्ट उन अड्डाओं से यथेष्ट कर लिया करती थी। विपरीत पाया। उन्होंने लिखा है-“छ र वर्ष पहले प्रमोदग्गृहममूहमें दिन रात गायिका, नत को, नटनटो, जिनको यथेष्ट सम्पत्ति थो, अभी वे गुणभावसे भिक्षाद्वारा वाजीकर आर शराब रहा करती थी। सकल वणीक जोविकानिर्वाह करते हैं। किन्तु इतना होने पर भी मनुष्य प्रमोदग्रहमें पाया जाया करते थे। इनका अभिमान घटा न था। अब भी बहतसो दरिद्र पोत्तं गोजकी स्त्रियां देशीय रमणियों के जैसे वस्त्र पोतगीज रमणियां पालकी में बैठ नौकरको साथ ले दूसरे- पहन अन्तःपुरमें रहती थीं। पुरुष भी घरमें देशीय वस्त्र के दरवाजे पर जाती और नौकर उम रमणोकेलिये घर पहनते थे, किन्तु बाहरमें ये अपनको सुसज्जित रखते थे। के मालिकसे भिक्षा प्रार्थना करता।” इस समय १६६६ कोई कोई रास्ते में घोड़े को मणि मुक्ता और स्वर्ण रौप्यके ई०को थवेनो (Kerenot) ने लिखा है-"गोमा नगरी