पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५२०

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११८ गोपा गोपाके रहनेवाले पोत गोजको पोतु गास्नके अधीन भार- और तिमोर प्रभृति विभिन्न जनपद भी गोपाके शासन- तीय राज्यममूहका शासनकर्ता बनाये थे। उन्होंने कर्माकं अधीन हैं। गजाका इन्तजाम तो अच्छा किया था। लेकिन उनका पण्यस्थान---गोपा गज्य हिन्दू तथा ईमाई मम्प्रदाय शासनकाल १० दिनमे अधिक स्थायी न रहा। इम ममय का पुण्यस्थानके जमा गण्य है। यहां बहुत्मे हिन्दू तोथ इनके विरुद्ध कुछ लोगोंके षडयन्त्र रचने पर इन्होंने तथा प्राचीन देवालय हैं, जिनमें चन्द्रवती महालके बम्बई भाग कर आत्मरक्षा को। इसके वाद १६ वर्ष गोगामें और किमी तरहका उपद्रब न हुआ। १८४५ चन्द्रनाथ और नवजित गोपाके अन्तर्गत माडीश, महा- ई.को मामन्तवाडौम विद्रोह उपस्थित हवा। बहुतमे लमा, शान्तादुर्गा, कपिलेश्वर, नागेश और रामनाथ प्रसिद्ध विद्रोहियाने गोत्रा आ कर अाश्रय लिया था। इन्हीं के हैं। वन्द्रनाथ या चन्द्रचूड़का माहात्मा स्थल पुराण और मह्याट्रिग्वण्ड में विस्टतरूपसे वणि त है। मह्यादिखगड. लिए पोर्त्त गोजीक माथ वृटिश गवन म गटके विवाद का मत- होनेका सूत्रपात हुवा। इम समय पेस्ताना गोपाके | शामनकर्ता थे। १८५२ ई०को दोपजीके भड़कान पर ___ "पूर्वकालमें किमी ममय दश हजार वष तक अना- मतरीको रानौ विद्रोही हई। १८७१ ई०को गोआके होगा वृष्टि हुई थी। दारुण अनावृष्टिमे पृथ्वी पर हाहाकार मच वाष्ट हुइ था। दारुण अनाहाट रहनेवाले देशीय मैन्य अपनी प्रार्थनाके अनुमार वेतन न हा गया । अन्नम बहुतसे ऋषि मिल कर अगाध मलिल कुश- गया । अन्तम बहुतम ऋषि । पाने के कारण विद्रोही हो उठं । विद्रोहियों के दमन कर वती नदीमें उपस्थित हुए एवं जल पाने के लिए देवदेव नेके लिये पोर्तुगलक राजाक भाई सोम अगष्टो स्वयं ममैन्य महादेवका स्तव करन लग । शिवजो इनके स्तवमे मन्तष्ट पहचे । इन्होंने आकर शान्ति स्थापन और विद्रोहियोंको हो वृहत् पवत रूप में अवतीण हुए । इमका ऊचाई एक निरस्त किया था। योजन था। इमके शिरोदेश पर चन्द्रकान्त पत्थर है, इमो. मे जल नि:मृत हो अनावृष्टिमे पोडिन ममम्त भूमगडल पहली सेनाका पुनःमङ्गठन हुआ न था और देशो। को रक्षा हुई। फिर भी अनावृष्टि होने पर क्या उपाय मनाए मुट्ठीभर युरोपो फोजके लिए ग्वतर नाक हो मकती किया जाय। यह मांच कर ऋषियोंने शिवजोको वहीं दी। फिर समम्त भारतमें अङ्गीजोंक शान्ति रखनमे उन रहनका अनुरोध किया। ऋषियांक अनुरोधसे महादेव की कोई आवश्यकता भी न थी। १८८५ ई०को जब मर उसी पर्वतशिखर पर लिङ्गरूपमें रहने लगे। इसका नाम कार गोत्रा फौजको जो मोजमर्माबकवलवाई काफरीको चन्द्रचूड़ है । इनका दर्शन करनेसे समस्त पाप नाश होते दबानक लिए भेजी जा रही थी, मांग पूरी कर नमकी हैं। थोड़े दिन बाद भूतनायक भैरव शिवजोको देखने पैदल मिपाहियोंने बलवा कर दिया। सतारीकी रानी आये। शिवजीको अनुमतिसे ये भो इसो स्थान पर विद्रोहियोंमे मिल गई । जब तक लिसबनसे हिज हाइनमा रहने लगे। इसके बाद नानादेशीय ऋषिगण इम इनफागड डोम अलफोन्मो हेनरिक कुमक ले कर न आये, पशान्ति बनी रहो। १८८७ ईमें माधारण समाप्रदान स्थानमें आ वास करने लगे। तीर्थक प्रभावसे सब किमी. ने मिडि लाभ की है। जिस स्थान पर जिस ऋषिको की गई। १८०१ ई०को रानी फिर बिगडो । यह बलवा | ६ नवम्बरको वन्नपाय (मतारो) में एक अफसरको मार मिद्धि मिली है, वह स्थान उन्होंके नाम पर तो हो गया है। इनके मध्य कपिन्न, गौतम, मोम, भरद्वाज, मं हालने पर शुरू हुआ था। हत्यार और बहती रानीके चन्द्रोदय, मुशमिठ और अम्बष्ठ तीर्थ हो प्रधान है।" परमें नेता पकड़े गये और दण्डित हुए । रानी लोग तिरको निवासित किय गय। "चन्द्रचूड़क पश्चिममें कुशवती प्रभृति कई एक पुण्ट कारको सलिला नदियां तथा इमर्क चारों ओर प्रसिद्ध तीर्थ हैन हैं। गोपाके प्रधान नगर (नयं ) गोमा या पत्रोम्, मर्गानी कुशवती ब्रह्माकं पदसे उत्पन्न हुई है। इस नदीके दो का चल माजाम्बक, मकात्रो. कूल पर बहुतम कुश है इस लिये ऋषियों ने इसका था। बल-