पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५२१

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गोपा ५१५ कुशवतो रखा। किसा समय अगस्त्य ऋषि, हाटकश्वरका । ___ चन्द्रचूड़ शखरक दाक्षणका पार गातमतोथ है। देखने जा रहे थे, गस्त में कुशवतौके साथ रन्हें भेंट हुई। पूर्व कालम गौतम नामक ब्राह्मणन कठिन तपस्या, शत- ऋषिके पादेशसे कुशवतो प्रवाहित हो हाटकेश्वर तक कद्रीय मूक्त एवं मद्योजात मन्त्रमे शिवजीको आराधना चन्नी गई । स्थानविशेषमे इमका नाम पंचनदी पड़ा। को थो। उनका आराधनामे शिवजी मन्तुष्ट हो गुहा- इसमें स्नान करनेसे ममस्त पाप विनष्ट होते हैं।" हारमे उनके निकट उपस्थित हए तथा गौतमको प्रार्थ- (चन्द्र च म ११०) नामे उमी स्थान पर लिङ्गरूपमे अवस्थान करना अङ्गी 'कुशवतीके निकट अम्बष्ठ नामक एक पापी व्याध | कार किया। वही स्थान गौतमतीर्थ नामसे प्रसिद्ध है। रहता था। चौर्यत्ति हो उसको जीविका थी। दुरा उममें स्नान, दान और भक्तिपूर्वक गौतमलिङ्ग दर्शन शय व्याध बाल्यकालसे हो निर्दयतासे पशुओंका शिकार करनसे समस्त पाप जाते रहते और मज अभिलाष पूगा करता था। धीरे धीरे व्याधको वुढापा आया । किमी थावणी पूर्णिमा तिथिक मोमवारको देश विदेशमे तीर्थ- 'दानवांके उपद्रवमे मौत हो जगतपति हरि इसके यात्रिगण झुण्डक झुगड चन्द्रचड तार्थ को जा रहे थे, पहले एक गुहामें जा शिवजीको आराधना करने लग । उप उन्हें कुशवतो नदोको टंख कर ही वहां जाना पड़ता। वामी ग्ह तीन बार म्रान और मृत्य ञ्जय मन्त्र पकर इन तीर्थ यात्रियों को देख अम्बष्ठके मनमें एक अभीष्ट वर और एक उत्कष्ट रथ पाये । इमी कारण दूमरा हो भाव उत्पन्न हो आया, और वह यात्रियोक वह कन्दग मीमतीथे नाममे विख्यात है। इसके प्रसव- साथ हो चन्द्रचूड़को पहंचा। यात्रियों का भक्तिभाव, णमें नान करने मर्व वनके फल तथा वह बार वेदपाठ पूजा और आचार व्यवहार देख व्याधको भक्तिका मंचार करनेका फन्न होता है। हो गया। उस दिन इमन कुछ भी न खाया। मध्याके 'क्षयरोगग्रस्त कोई नरपति इम पर्वतके अग्निकोणमें बाद शिवजीक उद्द शमे एक दोप जला कर सुधा और मनोहर मोमोदकमें मान कर शिवजीको आराधना पिपामामे कातर हो ज्योही वह खान लगा त्योंहीं प्रथम करके क्षयरोगसे मक्त हुए थे। हमीम वह चन्द्रोदयतीर्थ ग्राम गले में अटक उस व्याधको मृत्यु हो गई। मृत्य के कहा जाता है। इसमें स्नान करनेसे क्षयरोगका प्रतीकार बाद यमको प्राज्ञासे यमदूत उसे लेजा रहा था, राप्त होता है। शिवानुचर स्ट्रगणने उन्हें रोक दिया। अनेक वादा. 'पव तर्क उत्तरको ओर कामप्रपूरण नामक एक तीर्थ नुवादक बाद स्थिर हुआ कि वाल्यकालमे पापाचारी होने है। कोई मनिकन्या वहां रह तपस्या करती थी। तप पर भी तीर्थ और दिनमाहात्माम यह रुद्रलोकमही वास करेगा। यमदूतने उनके बचनसे पराजित हो अपन स्याके फलसे मुनिकुमारी पार्व तोकी मखी हो कैलास- वामिनी हो गई। राह लो। अम्बष्ठ रुद्रानुचरके माथ कद्रलोकको चम्ला गया। इमीलिए वह स्थान अम्बष्ठतीर्थ नाममे विख्यात ___ 'शर्मिष्ठा नामकी एक अप्सरा थी। उसने यज्ञनिरत है। श्रावणमासके सोमवारको पूणि मा तिथि होने पर | किसी ब्राह्मण के माथ विवाह करनेको इच्छा को । योग होता है इस दिन वहां जा नान दान करनेसे | समस्त ब्राह्मण उमके रूप देख मोहित हो गये थे शमि शिवलोकको प्राप्ति होता है। ष्ठान किमीको भी पसन्द न किया। एक दिन वर _ 'कपिल नामक एक राजा शत्रुसे पराजित हो इम | महर्षि और्व के प्राथमको पहुची और मुनिक शापसे तोथ में रहते थे। यथाविधि स्नान दान और शिवजीको | कुमित हो उमन जन्मग्रहण किया। शर्मिष्ठा चिररोग- आराधना कर पुनार अपना राज्य प्राप्त किया था। वे | ग्रस्त हो दारुण यातनासे काल बिताने लगीं । अन्तको जिस स्थान पर रह शिवजीको आराधना करते थे, वह काम पूरणतीर्थ रह दश वर्ष पर्यन्त प्रतिदिन निय- कपिलतीर्थ नामसे प्रसिद्ध है। मित रूपसे नान करने लगीं। तीर्थप्रभावसे पूर्व की