पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

५२८ गोपुरमा-गागाचौहान इसका संस्कृत पर्याय-त्रिकण्ट, स्थलगृङ्गाट, गो. गोखग (हिं पु० ) थलचर, पशु, जानवर। कण्टक, त्रिपुट, कण्टकफल, पुर, गोक्षुरक, इक्षुगन्धा, गोखले-दक्षिण प्रान्तके कोकणस्थ ब्राह्मण सम्प्रदायको खदंष्ट्रा, स्वादुकण्टक, गोकण्ट, वनशृङ्गाटक, सुरक, भक्ष्य. एक उपाधि । ये महाराष्ट्र जातिकै अन्तर्गत हैं और पूना, कगट, इक्षुगन्धिका, तुरङ्ग, श्वदंष्ट्रका, कण्टकी, भद्रकण्ट, सतारा और कोल्हापुरमें रहते हैं। पूनमें इस श्रेणीके व्यालदंष्ट्र, षङ्ग, गोखर, त्रिकट त्रिक और इक्षुर है। ब्राह्मणोंको बड़ी प्रतिष्ठा है। इस जातिमें ऐसी प्रथा है गोखरू देखनमें चना या बूटके मदृश होता है। कि हरएक मनुष्य नामकै माथ उमर्क पिताका नाम भी इमका गुण-शीतल, बलकर, मधुर, हण, कच्छ, साथमें हो बोला जाता है । इम जातिम बडे बड़े भारत- प्रश्मरो, मोह और दाहनाशक एवं रमायन है। भाव के भूषण अनकी भद्र पुरुष हो गये हैं जिनमेंसे सुप्रमिड प्रकाशके मतसे इमका गुण--स्वाद, वस्तिशोधक, दीपन. लोकमाना प्रातःम्मरणीय महात्मा गोपाल कृष्ण गोखले. पष्टिकर, श्वामकाश, अश और वणनाशक है। राज वल्लभक मतम गोक्षुरका गुण - वायुनाशक एवं वृष्य है। गोखरू (हिं.) मातुर देखें।। इमके शाकका गुण--तिक्त, वृष्य और स्रोतशोधक है। गोखा (मं० स्त्री०) मां भूमि खनत्यनया ग्बन ड । १ नख, गोक्षुरके दो भेद हैं-छुद्राकार और बृहत्। इन दोनोंमें नाग्वृन। बृहत् गोक्षुर ही प्रशस्त है। दुर्भिक्षक ममय पश्चिमाञ्चल- गोवा (हिं पु० ) १ मोग्खा, झरोग्वा । के मनष्य गोक्षर क बोजको चण कर जीवन पालते हैं। गोखुर (म. पु० ) खरति विलिखति खर-अच । १ अस्त्र- २ एक तरहका वृक्ष । ( Rucllin longifolia) विशेष । गोः पृथिव्याः खुर इव । २ गोक्षुरवृक्ष, गोखरुका ३ गोखरू के फलके आकारके धातुके बने हुए गोल कंटीले पेड़ । (क्ली०) गा खुर, ६-तत् । ३ गोर्क खुर। टक। मस्त हाथियोंकी पकडनके लिए ये टकडे उनके गोखुरा--एक तरहका तीन विषधर सर्प, करत माप । रास्तमें फैला दिये जाते हैं। चलते समय जब ये उनके इसका फन गौके खरका जमा होता हैं, इमो लिये इसका पैरों में चुभ जाते तो ये चल नहीं मकते। ४ एक प्रकार नाम गोखुरा पड़ा । स देखो। का साज जो गोटे और बादलेके तारीमे गूथ कर बनाया गोखुरि ( म० पु० ) गवां खुगिरिव । गोचर देखो माता है। ५ एक प्रकारका प्राभूषण जो कड़े के आकार- गोगा (हिं पु० ) छोटा काँटा, मख। का होता है। यह हाथों और परीमें पहना जाता है। गोगा चौहान-१एक मिड वीरपुरुष । हिमालयसे नर्मदा ६ काटा गड़नके कारगा तलवे हथेली आदिमें पड़ा हुआ तक क्या हिन्दू क्या मुसलमान सबके सब इन महापु- घट्ठा। रुषकी भक्ति श्रद्धा किया करते हैं। हिन्दू इन्हें गोगा गोक्षुरक ( मं० पु० ) गोक्षुर स्वार्थ कन्। गोचर देखो। चोहान या गोगा वीर तथा मुसलमान “गोगापोर" वा गोक्षुरादिगण ( मं० पु. ) गोक्षर आदिय॑स्य, बहुव्री० सतः "जाहिग्पोर" कहा करते हैं । हिन्दुओंका कथन है कि कर्मधा० । भीषक्शास्त्रोक्त एक गण । गोक्षुर, सुरक, घर्घरा नदी तट पर धर्म रक्षाकं लिये इन्होंने मुसल- व्याघी, सिंहपुच्छी और कुशिम्बिका, इन सबको गोक्षुरा- मानोंके विरुद्ध अस्त्रधारण किया था। इमीलिये ये पूज दिगण कहते हैं। इसका गुण वातनम नाशक है। नीय हैं। मुसलमान कहते है कि गोगा इस्लाम धर्म में गोक्षुरि (सं० पु०पी०) गा देखो। दीक्षित होनेके कारण उन लोगोंक मम्मामाह थे । गोक्षुरीवीज (सं० क्लो. ) गोक्षुर्या वोज़तत। गोचर- प्रवाद ऐसा है-वागड़ देशसे राजा वत्सराज चौहान का बीज । इसका गुगण-शीतल, मूत्रधिकर, शोथनाशक ने तोमरराज जयमलको दो कन्यायोंसे विवाह किया वृष्य, प्रायुष्कर, शक, मेह और कच्छ नाशक है। था। उन कन्याओं के नाम वाचल और काचल थे। (पा सहिता) वाचलका दूसरा नाम शीलवतो था। यमुना तोरस्थ सीक्षोढ़क (सं० पु. स्त्री०) एक प्रकारका पक्षी । प्रतुन देयो। पिर्शाया मगरमें दोनों कन्यायोंका जन्म हुपा था। बहुत