पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५३२

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गोग्रास--गीचर गोग्रास (म० पु०) सिड अन्न जो खाने के समय ठा थाडा- | इनकी दो शाखाये हैं टम्मोमा और मुनजनस । एक दिकके प्रारम्भमें गौके लिये अलग व दिया जाता है। दूमरमें आदान प्रदान चलता है। ये नाटे और मजबूत गोघरी (हिं स्त्री. ) भडौच और बरोदामें होनेवाली होत, इनको नाक चिपटो होतो और शरीरका रंग काला एक प्रकारको पाम । होता है। इनका प्रधान मोजन चावल है। ये शराब गोधा - बम्बई प्रान्त के अहमदाबाद जिलेमें धनधुक तालुक नहीं पीते लेकिन माम मचलो इत्यादि खाते हैं। इनके का नगर । यह अना० २१४१ उ. और देशा० ७२ कपड़े लत बहुत मने रहते हैं। ये मच्च , इमनदार १७ पृ०में रखम्बातको ग्वाड़ी पर पड़ता है। जनसंख्या और शान्त स्वभावके हते है। ये ब्राह्मण को अपना पुरो कोई ४७८.८ है । नगरमे पौन मोल दर एक अच्छा बन्दर हित मानते हैं। नाच जातिक हान पर भी ये कट्टर है। वन्भी गजाओंके ममय मम्भवतः उसे गुगडोगर धार्मिक होते हैं। ये अपन घरमै कुलदेवताको मूर्ति कहते थे। १३२१ ई में फ्रियर जोर डानमने उमको स्थापन करत और प्रतिदिन भक्तपृव क उनकी पूजा Carn जैमा लिवा । गोधाक लोग भारतवर्ष में किया करते हैं। मृतदेहकी ये पृथ्वोम गाड देते हैं और मबसे अच् मनाह ममझ जाते हैं। यहां जहाज रमद तेरह दिनों तक अशोच मानत हैं। पानी ले और मरम्मत का मकते । महान दक्षिण गोचना (हिं० कि०) रोकना कुंकना, किमी चौजको चाल जो पालोका बना, १० मन क देख डता है। रोकना। (पु.) चना मिथित गर । कुक्क वर्ष मे इसका काम काज बि ड गया है। अमेरि- | गोचनी ( हि स्त्री०) गा५मा १०। कामें जब एहयुद्ध चलता, यह काठियावाडमें रुईका गोचन्दन ( म०लो. ) गोशाग्य' नन्दनं. मध्यपदनो। खाम बाजार था। नगरमे उत्तर और दक्षिण नमक सुश्रुतकै अनुमार एक प्रकारका चन्दन । झील हैं । १८५५ ई०को मुनिमपानिटो हुई। (म। चिकित्सा २० प्र०) गाचन्दना ( मं० त्रा० ) एक प्रकारको जोक । मुश्रुतका गोधात ( स० पु० ) गां हन्ति गोइन् अण । गोहन्ता, गोहत्या। मत है कि जिम जांकका अधाभाग या पुच्छदश गोषण गोघातक ( मं० पु०) गवां घातकः, ६-तत् । गोहत्या- की नाईदो भागांम विभक ण्व मुख बहत काटा हो कारी, गोहिंमक, गायको मारनेवाला, बूचर. कमाई। वहो गांचन्दना कहलाता है। दमकं काटनस मूछा, गोघातिन् ( सं० त्रि० ) गां हन्ति गो-हन्-णिनि । ज्वर, दाह वमन, मत्तता या मनको विरु त ार शरीर ग'वान टेखा को अवमनता होती हैं, और काटाहुपा स्थान सूज आता गोघृत (मं० क्ली०) गोः पृथिव्याः वृतानव शस्यपोपकत्वात्। है। एमी अवस्थामै 'अगद' नामक औषधका पोना. १ष्टिजन्न, वर्षाका पानी। गोष्ट । ६.तत्। गव्य दंशनस्थान पर लेपदं ना और उसका नम जना उप- वृत, गौका घो। चादव । योगी है। गोत्र ( म०प०) १ गोको मारनेवाला, गोका वध करने-गोचर ( मं० पु.) गाव इन्द्रियाणि चरन्त्यम्मिन गोचर वाला। २ अतिथि, मेहमान, पाहुना । प्राचीन ममयमें अच् । ग च। माप ०५ जा 4 निगमाय । १।३।३.११८६१ इन्द्रिय किमी अतिथिक अनि पर मधुपर्क के लिए गाहत्या करन- जिमे ग्रहण करता है, विषय, रूपरस आदि । को प्रश थी, इमोसे अतिथिका नाम गोन्न पड़ा है। "न.... कचरा गवः।' ( +14 . रि० ) गोङ्गधिकारी-कनाड़ा जिले के मेलापुर और मिहापुर में | २ सानविषय ममतम य गोतम दो।' (भेषध ) रहनेवाली एक नीच जाति। ये शहर और ग्रामीम (त्रि. ) गवि भूमो चरति गोचर कतरि अच । हिन्दनोंक साथ रहते हैं। कहा जाता है कि, ये महि- ३ भूचर, जमीन पर रहनेवाला । मुरसे पाकर उक्त देशोंमें बस गये हैं। इनकी मातृभाषा (पु.) गाववर त्यस्मिन पूर्ववत्साधु । ४ गोप्रचार- कनाड़ी है। ये वीरभद्रको अपना र सदेवता मानते हैं। का स्थान, गोष्ठ, चगगाह, चरो।