पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५४५

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गांव ५४३ परिभाषाके अनुसार जाना जाता है कि, पौत्र आदि रहा है। इसके मिवा वशिष्ठ, भरद्वाज आदि वशमें उत्पन्न मन्तानोंका नाम गात्र है पाणिनीसम्मत अर्थको स्वीकार लोगोंको यथाक्रममे वशिष्ठ और भरद्वाज गोत कहते हैं। करने परभो पहिला दोष नहीं छटता । इमोलिए बौधा और फिर कोई कोई कहते हैं कि गोत्र शब्द स्वभाव- यन आदि मब हो ग्रन्थकारोंन गोत्र शब्दका टूमरा एक में ही नपुमक लिङ्ग है, पूर्वोक्त व्याख्याकै स्वीकार करन- पारिभाषिक अर्थ किया है कि,- से कहना पड़ेगा कि, विश्वामित्रगोत्र, वशिष्ठ गोत्र और . विवामिया कम : निर्भर साजोऽथ गौतमः । भरद्वाज गोत्र इत्यादि षष्ठीतत्य रुष ममाम होको स्वीकार अविवशिष्ठः कयन्यने मन अषयः । करना पड़ेगा। व्याकरणके नियमानुमार तत्पुरुष ममास- मममा मष गामगन्याटमामा यदपायलगावम् । (१) बोधायन) का उत्तरपद जो लिङ्ग होगा, ममाम होने पर भी वह विश्वामित्र, जमदग्नि, भरद्वाज, गौतम, अत्रि, शब्द वही लिङ्ग होता है। तो गोत्रशब्दकै नमकलिङ्ग वशिष्ठ, कश्यप और अगम्त्य इन आठ मुनियों के पुत्र और होने पर विश्वामित्रगान आदि शब्द भी नमकलिङ्ग हुए पात्र आदि मन्तानी मेंसे जो मुनि हो मके हैं, वे ही उमसे जात है, और "विश्वामित्रगोत्रमहं", "वशिष्ठगोत्रमहं", पूर्ववर्ती ओर परवर्ती मब ही के गोत्र हैं, अर्थात् उन्होंके । "भरवानगात्रमहं" तथा "वश्वामित्रगोत्राणि वयं" इत्यादि नाममे उम वंशका ग.त्र चलता है। का भी व्यवहार किया जा मकता है। परन्तु लौकिक और पतण्व वश्वामित्रको मन्तान देवगत आदि विश्वा वैदिक ग्रन्थीमें एमा नहीं पाया जाता । वल्कि विश्वामित्र- मित्रक गोत्रके हैं और जमदग्निको मन्तानमाकंडय आदि गोत्रोऽहं, भरद्वाजगोतोऽहं और विश्वामित्गोतावयं एमा जमदग्निके गोतक हैं (२)। आश्वलायन यात्म की हो देखनमें पाता है। विनायन (१२।१०।१) श्रौतसूत नारायणकत वृत्तिमं लिखा है कि विश्वामित्र आदि पाठ को नारायणकृत वृत्तम भो "मित्युवगीतोऽहं, मुगल ऋषियांको सन्तानका उनके गोत ममझना चाहिये। गोत्रोऽहं" मा प्रय ग मिलता है। अतएव बौधायन जैम -जमदग्नि ऋषिके गोत्र वत्स आदि, गोतमक गोत्र आदि द्वारा कहे हुए गोत् लक्षणक “यदपत्य तद्गोत्" आयस्यादि भरवाज के दक्ष, गर्ग आदि, (३) । अब बात इम अंग की व्याख्या दूमरो तरह माननी पड़ गो । विश्वा इतना ही है कि, बोधायनके “विश्वामित्" इत्यादि वाक्यम मित्र आदि आठ ऋषियोंको मन्तानोंक गोत्, विश्वामित् कश्यप और गोतमका उज्जव है । इमलिए नारायगाकत आदि इम प्रकार होनम विश्वामित्गोत्, वशिष्ठ गोत, वृत्ति को स्वीकार करें तो कश्यप गोत् और गातसवगियों भरद्वाजगोत् इत्यादि स्थल में विश्वामितो गोत्' यस्य-एमा को गोतम गोत्रीय मानना पड़ेगा। परन्तु पाचोन ममय बहुव्रीहि ममास हो सकता है (४)। बहुव्रीहि ममास बरबोरि मसास हो ममता में काश्यप गोत और गोतमगोत का व्यवहार चला आ होनसे वह शब्द वायलिङ होगा. इस ___ होनसे वह शब्द वायलिङ्ग होगा, इस लिये "विश्वामित- गोत्रोऽहं" इत्यादि लिखनमें कोई भी वाधा नहीं आती। (१) गन्याम बहुल जगह पाठभद देव में पास है। उ में जो पाठ सगत बीर बहुत से ग्रन्थों में मिला है। वही पाठ निरखा गया है। "विश्वकप अगर एमा न मानें, तो “भारद्वाजगोत्रस्य अमकी देयाः' कार्यालय में महोत असालग्वित गाव पवरमागे पीर वाचस्पत्यमै एमा अभूतपूव वाक्य भी स्वीकार करना पड़ेगा। परन्तु "गौतम" पोर पो हुई पाशलायम यौबम्बको प्रात्त भार "विध काष कार्या इम व्याग्याक अनुमार भी गौतमगोव और काश्यपगोत्रका लय में म र निखित गाववादपणा में "गीतम" पाठ मिनता है: व्यवहार किया जा मका है। यदि उम जगह गौतम इनमें से यह पर "गीतम" पाठौ स'गन मान म पड़ना है। (२) “तदक भवन पात्या टम मप्रर्षा कां मध्य यम्याप कवित्व 'भरतपात गावखपमा: । : ' माना यदपन्यत... प्रातमत्तच मोवमुच्यने (गैविप्रवर मरी) मवान । यय-देवगतादोना गाव निशामिवति मासे यादनांगमदार _ “येशं यौवादात्य ऋषित तत्व भाविना पनवनाविमाध दानि गावापीति (गावप्रवरमभरो) गतिमिन्यामधयते : (गाववादपए) . ... रम पवमे "पथ तर गाव" ममको माया ममानी ...). "सभाम सत्यमिति ये साले महोमिय यी या जमद पडेग'-प्रगत पाटन मनपा या मध्य-बमा ऋषपपन्य' परपोवाट गाँव वन्मादयः तथा गौवनस्वायस्यादयः।" (बोचनायम १२१वता (1) तहतविम कप: गोरखा सद्गाव' भवतीविए।