पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५४८

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५४६ गाव - यनने इनके प्रत्ये क गणक अन्तर्गत जितने गोत्र हैं, उन । तीन प्रवर हैं, भार्गव, देवदाम और वाध्र । सबका निर्णय किया है। इस लिए यहां मिर्फ बोधा- (बोधायन प्रवाध्याय) यनके मतानुमार गोत्रगण लिखे जाते हैं। ६ शुनक, यसमद, यज्ञपति, मोगन्धि, खाद मायण वत्स, मार्कगड य, मागडु केय, मागडव्य, कार्षायण, गाभारण, मत्यगन्ध, थोत्रिय और तैत्तिरीय- इनको दार्भायण शाकराक्ष, देवलायन, शोनकायन, माधुकेय, शुनकगण कहते हैं। इनका एक हो प्रवर हैं-शुनक वार्षिक, शाक, प्रभायण, पैल, पलायन, वा यकि, अथवा गार्म मद । (बौधायन र प्रवराध्याय) कात्यायनके मतानु- वाह्यक, वैश्वानरि, वहिनरि, विरोडिन, वाह्य, सध्र, सार इनके दो प्रवर हैं, एक भार्गव और दूसरा गात्म - गोष्ठायन, टिकी, कारण, कृष्ण, वादभूतक, ऋतभाग, मद । आश्वलापनकै मतमे इनके प्रवर तोन हैं,... रोहिनायन, जानायन, पाणिन, वाल्मो क, स्थाल. १ शानक, शौनहोत्र और गास मद । (पाश्च० ० १२।१०।१०) पिगिड, शासन, जिहिनि, मावगि', वाक्यायन, वालायन, वन्य, पार्थ ओर वाल्कन्न-ये वन्यगण कहलाते मोडति, मण्डविष्टि, हस्ताग्नि, मार्कायण, काक्षायण, हैं। आश्वलायनकै मतमे-वैन्य की जगह 'शात पाठ भो वायकव, वायनो, शाकारव, कारवच, चान्द्रमम, गाङ्ग य मिन्नता है। (पाश्च० श्री. १२ १०११) इनके प्रवर तोन हैं- नौध य, याजिय, वाहु, मित्रायण, आपिाल, वष्टपुग्य. भाग द, वन्य और पार्थ । ( बोधायन प्रग०) लोहितायन, --अमृत, मालायन, शारहतायन, रजतशाह, गौतम गोवा- वात्स्य और वात्स्यायन-पपरता गगा , । इनके प्रवर १। आयस्य, योणिचेय, मिढ़रथ, मात्यकि, स्वं देह, इम प्रकार हैं,-भाग व, च्यवन, प्राप्तवान, आव और ! कोमाग्वत्य, तौड़ि, दाम, पैर नत्यमुानि, कार जामदग्न्य । (बोधगम र प्रवराय) वोग्वा, न करि, तेषिकि, किला लि, करुगि, कठोक तमि २विटील. अवर प्राचीनयोग्य, अभयटि, कागड | और कति, इनको आयस्यगौतमगण कहते हैं । आङ्गिनम. रथि, वैनयि, पुलम्ति, आर्कायन, ताग्नायन, क्रोञ्चायन आयस्य और गौतम ये तोन इनके प्रवर हैं। और फामन--इनको विदगण कहते हैं। इनके भी पांच (धायन मौतमकाण्ड १९०) प्रवर हैं, भार्गव, च्यवन, आप्रवान, और्व और वेद ।। २। शरहन्त, अभिजित, रोहिण्य, क्षीरकरम्भ, मौमुचि, (बोधायन, ४ प्रबरध्याय) मोयागुण, कोपि न्दु, रहुगण, गणि और माषण्य-ये शरद ३। प्राष्टिष गा, रथि, कादम्वायन, कोलायन, न्तगातमगण कहलाते हैं। इनके भी प्रवर तीन हैं,- चन्द्रायण, षोढ़कलायन, मिद्ध, सुमनायन, गोग्भी और आङ्गिरम, गौतम और शरहन्त । (बोधायन गो० १ ० १ ४०) प्राम्भ-ये आष्टि ष णगण हैं। इनके प्रवर भी पांच ___३ । कीमगड, मामन्दु, ईषणा, यासुराक्ष, काष्ठं रषि प्रकार हैं--भार्गव, च्यवन, आष्टि ष ण, आप्रवान और और प्राञ्जयन-ये कामगड-गोतमगण हैं। इनके पांच प्रवर हम प्रकार हैं,---आङ्गिरस, प्रीतथ्य, कातिवत, प्रान प । (बौधायन ५ भवराध्याय) गातम और कोमण्ड । (वाधायन गौ० का ३५०) ४ यस्क, भोनमूक, वाधुन्न, वर्षपुष्य, भागन्नेय, गजिता. यन, भागनय, उद्दि न, भास्कर, रैवतायन, वाफान, माध्य । दोघतमागण के भी पांच प्रवर हैं,-आभिरम, मेय, वापि, काशाम्ब, काविन्य, मात्वकि, चित्रसेन, आतथ्य, काक्षिवत्, गौतम ओर दीर्घतमम्। भागरि और कापिशायन इतन यस्कगण हैं। इनके प्रवर (बांधायन गौ. कां. ५०४) तीन हैं,-भागव, वैतव्य और माचेतस । ५ । मोशनस, पादत्य, अनुपप्रशम्त, सुरुपाक्ष,महोदर, (बोधायन ६ प्रवराणाय) विकन्दत, सुवुधा, निहत, इनको प्रौशनमगण कहते हैं। ५ मित्रयुव, रोक्षायण, मापिण्डित, सरभिनि, माहा. इनके तीन प्रवर हैं-आङ्गिरस. गौतम पार प्रौशनस । महावाशा, ताक्षायण, उक्षायण, वाजायन, मोजाधय, (बौधायन गौ• का०५०) कौमतवायन-इनको मित्रयुषगण कहते हैं। इनके भो। ६ । कारेणपालि, खेतोय, गौजिष्ठ, यौदञ्जायन