पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५४९

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गोत्र ५४७ माधुक्षार बार अजगन्धि -इनको कारणपालिगण कहते यन, गत्म्य प्रायण, धात्यकि, मात्यकायन, नेतुगड, स्तुता, हैं। इनके प्रवर तीन हैं,- आङ्गिरम, गौतम और भाहन्य और देवस्थानो-ठूनको विष्णुबडगा कहते हैं। कारणपालि । ( मौधायन गोतम काड (प.) .३ प्रवर ये हैं-आङ्गिरम, पौरकम और त्रामदस्य । मरहार-गाय कागड-- ५। सङ्कति, मलक, पोलस्तगिड, शम्व शेभव, १ । भरद्वाज, क्षाम्यायण, मङ्गड़ा, देवश्वानुवहन्या, तारक, आघारि, ग्रीवाशेषय, श्रौतायन, रायग्नायन, प्रगयोमि, सीमायन, तैदेह, अत्ताला, योक्षाभूर, पार- प्राघापि ओर पृतिमाष--ये मब मङ्ग तिगण हैं। इनके गह य, केजरवय, इषुवत्, वोदयेधि प्रवाहणय, ३ प्रवर-आङ्गिरम, गोरवीत और मांकता हैं । कम्योण, स्तम्वि. मंयोय, प्रकृतपर, हेरि, मेहयद्रूग, ६ । कपि, वतन्तः अनाव मायन, पतञ्जन, अन्तर- क्षारि, ग्रोवि, औपमि. वायाति, भेद, अग्निरेद्याघट, विन, ताण्डिन, आम्भोज, मिनाङ्गाश, स्वनाङ्गर, शिखंडा. गौरि, वायवि, कर्ण, धाक्ष, मानविय, कङ्गवमेका, यन, अामोषितकि, मागमह और वाणि - इनको कपि- खोज्वलि, ग्वारुडादि, तरुङ्गय, भद्रामय, भौग्भ, मैद्यकेय, गण कहते हैं। इनके आङ्गिरम, आमहोय और उक- कोगडायन, कोगडलप्य प्रवाहणेय, पलभीकि, कडागपथ, क्षयम ये तोन प्रवर हैं। ( बोधायन ) शालाहनि, वदवेलायण, नृत्यायन, शालालय, शाल, पदिगाव काण्ड- ब्रह्मम्तम्ब, अग्निम्तम्ब, वायुम्तम्ब, सूर्यम्तम्ब, मोमस्तम्व, १। अत्रि, कान्दादि, पौष्टिका. माहुलय, नेपाच्छग. विष्णुम्तम्व, यमम्तम्ब, इन्द्रम्तम्व, आपस्तम्ब तथा अन्यान्य लाच्छनाकि, प्रोगाभावा, गोरिग्रीव, योग, विशिष्ठिरा, शिशु- म्तम्वान्त शब्द, आरण्याकि, मिन्धमोगन्धि, शिवायन, पाल, कृणात्र य, गोरात्र य, अरुणात्रय निनात्रय प्रता. आत्र यायण, कुक्षा. कोकाति, पतेनैतूति, दार्भिस्यामय, अय, महात्र य, पालेयेता, गयरामाथि, वैतभाव, मौद्र य, मश्वनाथ, कारुणायन, कारुपथि, कारिषायण और कारत्म कोद्रे य, गोपवत्य, कालायचय, अनिन्नायन, पाङ्गि, इन मबको भरद्वाजगण कहते हैं। इनके प्रवर तीन प्रकार मानङ्गि, मारङ्गि, गौरङ्गि, पुष्पय, मेव्य, मार्कतायन भार- हैं-आङ्गिरस, वाहस्पत्य और भरद्वाज। हाजायन और इन्द्रातिग्मि -इनको अत्रिगण कहते हैं। (बोधायन मरहाज गोमत कागड) इनके प्रवर तीन प्रकारके हैं.-पात्र य. आर्चनान और के वग्नागिरम गांव :- अानमण्याव। १। हरित, शङ्ख्योदना. मीभग. लोमरव, मन्नायु, २। वाम तकगणक तीन प्रवर ये हैं, -पात्र य, नावोटर, नैमिथ, आमिथोदन, कौतप. कारिषि, कोलि, आनसण्याव और वाम तक। योलि, पाण्डल, माध य, माधातु और माण्डकारि इनका । गविष्ठिरमणके तीन प्रवर-आत्र य, पाचेनान गण हरित है ! इनके प्रवर तान हैं-पाङ्गिरम, आम्वरोष और गविष्ठिर। और यौवनाश्व । ४। मुद्गन्न. व्याशि, मंयि, श्रारणक्ष, बोधात, गवि. २। कद्रु, योपमकरायण, वास्क न, पोनहानि, लोमानि ष्ठिर, वैतवाह, शिविषय शालिमन, गारिति, गारकि मानि, मोधिगान्ध, विजिवाजि पीर वाजयवम, ये मब और वायवन. इनको मुहलगण कहते हैं। उनके भो कगण हैं। इनके तीन प्रवर हैं-आङ्गिरम, प्राजा तोन प्रवर हैं-आत्रय, प्राचनान और मादन्य। और काद्रव। (बधाम, पतिवाड) ३। रथोतर, हस्तिदामि, काक्षायगा, नीतिरक्षु, विश्वामितगीवाड- शौलालि, भिलेभि, लिड़ायन, साबहब, भैक्षावाह और । कुशिक, पर्ण जंघ, वारक्य, और्द नि, माणि, हेमनाबाद-इनको रतिगण कहते हैं। इनके भी प्रवर वृहदग्नि. वानविग, यहिरापहाधा, कामन्तका, वर्ड तीन -पाङ्गिरम, वेरूप और रथीतर । कथा, चिकि, ताल, मकरायण, शालकायन, शाङ्गायन,

विषणुवृद्ध, शटामरण, भद्राण, मद्राण, वादा. लोक, गौर, मोगस्ति, यमहत, अभिव, शनवकायन,