पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गाव २४९ पाथोद्गत, हारिग्रोवा रोहिण्य और नोशनहि, इनका वर्तमानमें प्रचम्नित गोत्र और प्रवर्गके नाम ( १ ) इस नाम अगस्तिगोत्रगण है । इनके अगम्ति, दाव्य च्युत प्रकार हैं--- और उध्यवाह-ये तोन प्रवर है । ( बोधायन अगस्तिगाव काण्ड ) गावाके माम। प्रबर के नाम बौधायनके अनुमार गोत्र और प्रवरका विषय लिखा १ जमदग्नि जमदग्नि, प्रोव और वशिष्ठ । जा चुका है। कात्यायन-प्रणीत थोतग्रन्थमें और मत्मा २ विश्वामित्र विश्वामित्र, मरीचि और कोशिक । पुराण में भी ये मब गोत्रकापड लिखे हैं। परन्तु तोनी । ३ अत्रि अत्रि, आत्रेय और शातातप । ग्रन्थों में एकमा नहीं लिखा. कहीं पर किमी ग्रन्थ में दो ! ४ गोतम गोतम. वशिष्ठ और वाहम्पता। एक गोत्र ज्यादा भी है और कम भो। (गावरमधरो) ५ वशिष्ठ वशिष्ठ । मतान्तरमे वशिष्ठ, अत्रि गोत्रप्रवरदपण के कर्ता कमलाकरन अपन ग्रन्थम और माङ्ग ति । बोधायनोक्त भृगुगोत्रकाण्ड का उल्लेख करते हुए कहा है काश्यप, अमार और नैध व । कि, "एत वाधायनोक्ताः यद्यपि प्रवरमञ्जरीतबौधायन ७ अगम्त्य अगस्ति, दधीचि और जैमिनि । मोकालोन मत्र आकरमूत्रे च भूयान् ब नाधिकभावः तदप्य भ. मोकालोन, आङ्गिरम, वाईस्पता, यानुमारेगा वदामः ।' अर्थात्-याप य बौधायनक अपमार और नै ध्रुव । कहे हए गोत्र हैं, परन्तु तो भी प्रवग्मचरीमें बोधायनके ८ मोहन्य आर्य, यवन, भागव, जामदग्न्य और जो जो मूत्र उडत किये गये हैं, उनमें और (जो प्राा है) आप्न वत्। बाधायनक मूल ग्रन्थमं बहतप्त पाली में व्यतिक्रम या पगशर पराशर, शक्ति और वशिष्ठ । ११ वहम्पति न्य नाधिकता पायो जाती है। एमो दगाम हम यहां वृहस्पति, कपिल और पार्वण । काञ्चन दोनांक मतानमार हो लिखेंगे। इमोम माफ हो जा हर अश्वत्थ, देवल भार देवराज । होता है कि, बौधायन मूलग्रन्य के माथ पुरुषोत्तमकत १३ विष्ण, विण , वृद्धि और कौरव । १४ का िक कौशिक, अत्रि और जमदग्नि । प्रवरमञ्जरोका पाठ बहुत जगह मिलता नहीं। कमला- कर भी यह निथित नहीं कर मकै कि, किमका पाठ १५ कातपायन अत्रि, भृगु और वशिष्ठ । यथार्थ है और किमका भ्रमात्मक। इमो लिए उन्होंने १६ पात्रय आत्रेय शातातप ओर माव्य। दोनोंक अनुमार लिखा है। अतिप्राचीन हस्तलिखित १७ कागव कागव, अश्वत्थ और देवल । प्रवग्मन्नरोम जमा पाठ लिखा है, वहां वैमा हो पाठ मबिर्व शित किया गया है। बाधायनने जिन जिन गाती (१) "जमग्रिम रहा विश्रामिवाविगानमाः । और प्रवरांका उल्लेवि किया है, वर्तमानम उनका प्रचार वशितः का गमय' मन्या गावकारिगाः ॥ बहत हो कम देखने में आता है । जितने भी गोत्र देखे मेधा मानापन्यानिनि गावागमन । पदुमन पमन्या मायदर्गमाजमथाच । जाते हैं, उनके प्रवर बोधायनोत प्रवरमे मित्र हैं। अत मोकानोगकम दगन्यापहम्पस ॥ 'एब धनञ्जयक्त धम प्रदोपमें जितने गोत्र और प्रवर कावना विण की कायनन यकागद का । लिखे हैं, यहां भी उनका उल्लेख करना जरूरी था। विय: B1% figating 11 ग म * ॥ परम इनि वातः चा काम जिनः। पमान मिनाक रामाण्डिन्न्यास व च। • मसापुरागा, कायायन-पोतम व पथनायन-श्रीवम व, भाम्ब श्र' माव । निम्यान वैध घायघन '117 । म व भादि गन्धों को देखना चाहिये। शक: कागवान वाम की भन्नया । +निम्वित पोयो देख कर योधायमों के गोव चार प्रवरकै नाम लिसे पुन मोयन यं मनरी गानकाविणाः । गये है। इसलिए नामों में पास मग मन्द भी है। एनेष यान्वयानि तानि गावागिण मन्ध से ॥" (धर्मप्रौप) Vol. VI. 138