पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५५५

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गोदान-गोदावरो भावसे अनवर गोदान करते. वे सूर्यवर्ण विमानमें आरो- गोदानिक -गौदानिक देखा। हणकर स्वर्गको गमन करते हैं । स्वर्गीय रमणियां क्रीड़ा गोदाम ( हि पु० ) माल अमबाब रख जानका सरक्षित कौतुक कर मर्वदा उनको आनन्दित किया करती हैं। स्थान । (महाभारत ) गोदाय ( म०वि० ) गां ददाति गौ-दा-अण उपपदमः। विण धर्म में लिखा है कि पुण्य दिनको स्नान कर गोटाता, गा दान करनेवाला। प्रथम पितृतर्पण करें। इसके पूर्व दिन केवल पञ्चगव्य गोदारग ( म० की.) गां भूमि दारयति णिच-ल्य । खाकर रहे। तदनन्तर वृत और तोग्हारा विष्णु या हन। २ जमीन खोदनको कदान । शिवजीका अभिषेक कर पुष्पादि उपहारमे भक्तिपूर्वक गोदावरी ( मं० स्त्री० ) गा स्वग ददाति दा-वागप ङोप उनकी अर्चना करे। इमर्क बाद एक दुग्धवतो रष्टि स्थान्तादेशः । यहा गोदानां वरोथ ठा, तत्। नदो- धनको उत्तरमुवी कर स्थापन करे, गोके शुङ्ग मुवणमय विशेष। यह नदो बहुत दिनाम हिन्दको अादरणोय आर ग्वुर रोप्यमय हो । अन्तको मन्त्र पाठपूर्वक ब्राह्मण है: हिन्द्र इमै एक पुण्यतोर्थक जैसा ममझते हैं ममस्त को अपंग करे उपमें यथाशक्ति दक्षिणा दी जाती है। कार्याक पहन हो जलशुद्धि करनक लिये मन्त्र हाग दूस दानका मन्त्र- नदोका भी आवाहन करना पड़ता ह । ब्रह्मवै वत्त । "गावो ममा यत: मन्तु गयो भै मन्] पृष्ठतः । पुराण में लिखा है कि काई ब्राह्मणो अकलो तो यात्रा गाने में ही मन्न गवां मध्य वमान्य है। कर रहा था। जति जात रास्तम एक निविड निर्जन इमाम “निगोन । न ता मया तव । पष्पोद्यानक मध्य किमी एक कामुकन उस देवा । युवती- म म " नोलाय गोविन्द: प्रीयतामिति ॥" ( अग्निप०) भारत अनुशामन : अध्याय :भृतिम भो गोदानको का मन्दर रूप देत वह कामुक कुक देर भो स्थिर न रह मका। ब्राह्मनि उम बहुत वारण किया, किन्तु अन्तम प्रशंमा अ र नियम लिख हैं। भविष्य पुराण में लिखा है कि धन सूर्य को कन्या हैं. मव लोक मङ्गल और यज्ञ उम कामुकन वन्नपूर्वक अपना पाशववृत्ति च रताथ मिति के लिए डमको उत्पत्ति हुई है। ब्राह्मण नया गा का। ब्राह्मणोका गमञ्चार हा । ब्राह्मण यह देख एक कुल हो उत्पन्न हैं। गर्मि यजको मिद्धि होती है। कर क्या कहंग इम भयम ब्राह्मणोन उमा ममय गर्भ देव पार पडङ्ग चतुर्व द हम में उत्पन्न हुए हैं। गांक । परित्याग किया पार उमस उमी ममय ताकाञ्चनवर्ण शृङ्गक अग्रभागमें ममम्त तोय तथा चराचर, प्राोर्ष पर एक पुत्र उत्पन्न हुआ। पुत्रका सुन्दर मुख देख ब्राह्मणी मव भूतमय शिव, ललाटाग्रमें देवी, नामिकाक अग्रभाग उम् फेक न सको, इम मद्योजात बालकको गोद में ले पर कात्ति कय, दोनों नामापुटीमें कम्बल ार अश्वतर रातो रातो ब्राह्मण निकट पहचो और ममम्त घटना नाग, कर्ण द्वयमें अखिनोकमाग्यगन्न, दोनों आँखाम चंद्र माफ माफ कह सुनाई। ब्राह्मणने पत्रके माथ उमे परि- तथा सूर्य, दन्तमें वाय, जिहामें वरुण, कत्तदेगमें सनम त्याग किया। लज्जा आर अभिमानम ब्राह्मणान योग गा, इङ्गारमें मरस्वती. मुगडम यम बार यक्ष, ओष्ठ पर करना प्रारम्भ किया। योगबन्लस वह नदी हो गई। सन्ध्या, ग्रोवामें इन्द्र, वक्षस्थल पर माध्यगण, जट्टादेश पर उमोका नाम गोदावगे है। (ब्रह्मा ) ध, खुरके अग्रभाग पर पत्रगगा. खरक पशाद भाग पर गोदावरी का दूसरा नाम-गोतमी है। ब्रह्माण्ड अप्सरागण, पृष्ठ पर वसुगण, योणितटमै पितृलोक, उपपुराण के अन्तर्गत गातमोमाहात्मा गोदावरीको उत्- ला लमें चन्द्र. केशमें मय रश्मि, मूत्रमें गङ्गा, गोमयमें पति-कथा अन्य रूपमे वणित है-जब महर्षि गौतम यमुना, दुग्धमें मरम्वतो, दधिमें नर्मदा, वृतौ हताशन, ब्रह्म गिरिके आश्रममं रहते थे, उम ममय एक बार बारह- रोमकूपमें २८ करोड़ देवता, उदरमें पृथिवी तथा ग्राम वर्षे अनावृष्टि रहो, जिममे चारो ओर दारुण दुभिक्ष उप. चतुम्मागर और पयोधर अवस्थान करते हैं। इस तरह स्थित हा। वशिष्ठादि ऋषिगण गोतमके प्रायमको समस्त ब्रह्मांड हो गोमें अवस्थित है। पहुचे। गौतमने ऋषियोंको अब दे रक्षा की। वे