पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५५६

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५५४ गोदावरी प्रतिदिन मवर मदानमें बीज बोतं और उनके तपोवन ला गोको पुनर्जीवित कर मकै तब हम लोग ठहर सकर्म द्वारा उम बीजम अङ्गर, गा तथा फल निकलते थे। नहीं तो किम तरह इम अपवित्र स्थानमें रहें।' गौतम मन्ध्या पहलेही पक शस्य काट कर चावल प्रस्तुत किये। ऋषि उनकी बात पर मम्मत हवे। उन्होंने क.षियोंको जात और उसे सिद्ध कर ऋषि पाहार करते थे। हादश । श्राश्रममें रख त्राप्वक पहाड पर जा हरपावती और वर्ष के बाद सुवृष्टि हुई, जिससे वसमतो फिर भो शस्य- गङ्गाको पृथक् पृथक तपस्या कर उन्ह मन्तुष्ट किया। शानिनी हो गई। हम समय केलाममें एक विभ्राट श्रा बाम्बकेश्वर पावतीक माथ गौतमको दियाई दिये और पड़ा। शिवज! गङ्गाको अपने जटाकै मध्य रखे हुए हैं, गमः। उन्होंन वर मांगनका आदेश किया। गीतमने प्रार्थना जानकर एक दिन पतिमोहागिनो हैमवती (पार्वती) को ' को -यदि आप मुझे वर देने की इच्छा करते हैं तो नदी दर्षा हुई। वह कातर हो शिवजोम वीन्नो- 'नाथ' अपनी जटास्थित गङ्गा मुझ प्रदान कर, में उन्हें ले जाकर आपने गङ्गाको मस्तक पर और मुझको गोद में धारण किया मृत गाको पुनर्जीवित करुगा।" महादेवजीन उनको है इमसे मेरा अपमान होता है । इम लिए अाप शीघ्र ही प्रार्थना स्वीकार को। गौतमन पन: एक और कर गडाको नीचे उतार रद।" शिवजान उनकी बात पर । मागा--'भगवन् ! गङ्गा मृत गोको जीवन दान कर मागर कभी ध्यान न दिया, इममे पाव तोकी और अधिक में गमन कर तथा म र नामसे विख्यात होवे ।' शिवजीन टाख डा। पार्वतीने गणशको अपने मनको व्यथा कह कहा---'यह गीतमा गङ्गा और गोदावरी नामसे ख्यात सुनाई। गणपतिन अपनो माता के दुःग्व दूर करनको हांगीं। जस तरह भागीरथी मागरमझम पर, यमुना सिमाजानी। कात्तिक माथ वह ब्राह्मण के भषौ त्रिवेणीमङ्गम पर तथा नम दा अमरक गट में पुण्यपदा, सोमाय वर्भािगमं प्रा ऋषियांकी देख कर बाले- , उसी तरह गतिमा गङ्गा भी मवत्र ५ण्यप्रदा हांगो एवं "ब्राह्मणगण ! अब मवत्र हा शस्य उपज गये हैं, हम में इन दोनों तौर पर निङ्गरूपमें अवमान करुगा।" समय आप लोगों को पगन्न पर निर्भर करना उचित नहीं, सा कह शिवजान गङ्गाको गातमक हाथ ममपण आप लोग अपन अपन आथमको चले जाय।" ऋषियाने किया। गौतम दृष्टचित्तम जटाक साथ गङ्गाको ले ब्रह्म गौतमक निकट आ बिदा मांगो। गौतमने उन्हें उत्तर गिरिस्थ आयमको पहुचे । इस स्थान पर गङ्गाजा विधाग दिया- 'दि नमें आप लोगों को अब दिया है, अभी हुई। एक धारा ब्रह्मगिरिस्थ मृत गाको पुनर्जीवित कर अच्छा ममय देख आप लोग मुझे छोड़ जातं यह उचित दक्षिणमागरम मिल गई, दूसरो ब्रह्मगिरि भेद कर पाताल नहीं है। मेरो इच्छा है कि आप यहीं ठहरें।" वृष् को चलो गई और तोमरी धारा अाकाशमार्ग को जा ब्राह्मणवेशी गणेशन ऋषियोमे यह कथा सुनो। वे वहां- वियद गङ्गा नाममे 'वख्यात हुई। से चल कात्ति कर्क निकट आ बोले- भाई ! तुम गौ हो गोदावरी नदी मधा भारतके पथिम घाटमे पूर्व घाट कर गौतमक क्षेत्रमें जा ममम्त शस्य नष्ट कर डालो। गीतमः पर्वत तक विस्टत है। जनकी पवित्रता, दानां कूलोंका के ताडन पर तुम मृतवत् हो जमीन पर पड़ रहोगे।" मान्दर तथा मनुष्यको उपकारिताक मम्बन्धमं यह गङ्गा और कात्तिक भो गो रूपमें गोतमक क्षेत्र में जा ममम्त शस्य मिन्ध नदोक तुल्य है। यह ८६८ मोल लम्बो एवं प्रायः नष्ट करने लगे। गौतमको दृष्टि उम पर पड़ो। ज्योंही ११२२०० वग माल भूमिके ऊपर हो कर बहुत वेगसे वे गोको मारने के लिए दौड़े, त्योंहीं गी मृतवत् हो पृथ्वी प्रवाहित है। मनुष्योंमे सुना जाता है कि नासिक जिलेके पर लेट गई। अम्वक ग्रामके पथावर्तो पहाडमे उप्त नदोको उत्पत्ति आयमम गोहत्या हुई है, यह सुन कर ऋषि लोग है । इम स्थान पर एक कृत्रिम कूप है। जिससे नीचे जाने की तैयारी करने लगे। इस समय भी गौतम जानके लिये ६८. एक एक कदमवाली सीढ़ियां हैं। ऋषिने उन्हें ठहरनका अनुरोध किया। किन्तु उन्होंने यहां खोदित मूत्ति के प्रोष्ठ प्रान्तमे बुन्द बुन्दमें जल टय- उत्तर दिया--'यदि आप भगीरथको नाई गङ्गाजीको कता है।