पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५५८

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गोदावरो दक्षिणा देने के लिये प्रार्थना की। दूम पर भगवाज उसको कर वोलो-'स्वामिन् ! इस पापिष्ठन आपके रूपसे मोहित बड़ाई कर बोले-'तुम इम कन्यासे विवाह करो, इसीसे कर मुझे मर्व नाश किया । मैं पापिनी नहीं हूं। मुझ तुम्हारा गुरु-दक्षिणा हो जायगी। कठ गुरुका आदेश क्षमा कीजिए।' गौतम ऋषि धयान योगसे सब जान उलान कर न मका, उसी ममय उसने कुत्सिता कामिनी. फिर वोले-'अहल्य ! तुम नदीरूपमें प्रवाहित हो का पाणिग्रहण किया। तदन्तर कठन नवविवाहिताक मुझसे पुनः मिल जावोगी। बाद इन्द्र को अपने चरणों माथ भरहाजीमङ्गमर्क निकट शिवलिङ्ग प्रतिष्ठापूर्वक पर निपतित देख कहा --'इन्द्र ! तुम भी गोतमोमें स्नान वैदोक्त स्तवसे शिवजोकी आराधना की। शिवजी माक्षात कर पापमुक हो महस्रचक्षु लाभ करोगे।' अहल्या नदो हो उसे मस्त्रीक भारद्वाजीमङ्गममें स्नान करनका आदेश रूपस फिर भी पतिक साथ मिल गई। इन्द्र ने भो इम कर अन्तहित हए। उमो समय उन दानीन मङ्गममें स्नान अहल्यामङ्गममें सान कर सहस्र चक्षु लाभ किये। किया। स्नान कर ज्याही बाहर निकले, त्यांही विता तभीम इस मङ्गमका और एक नाम इन्द्रतीर्थ हुप्रा। मुथा और परमा सुन्दरी दोग्खन लगा स्नान कर ग्वतो. मङ्गम स्थल पर प्रभा तोथ लमगड़ी नामका ग्राम देखा क सुन्दर हो जाने पर सङ्गमका दूसरा नाम रखतोमङ्गम जाता है । हवा है। (गीतमौमाहात्मा) । वृद्ध गातम की नामोत्पत्तिकै मम्बन्धमें भी गातमी माहात्माम इम तरह लिखा है, –“मह पं गौतमन एक गातमीमङ्गमका दूसरा नाम असल्यामङ्गम भी है। वडासे विवाह किया था । एक दिन वशिद कई एक गतिमामाहात्मामें लिखा है ब्रह्माका कन्या अहन्नया । ऋषि गौतमक आय उम वृद्धा को देख उन:- जमो मुन्दरो पार रूपवतो कोई स्त्रो न थी। इन्द्रादि मे एकन कहा-'गौतम ! इम वडाम तुम्हें पुत्रोत्पाद. देवगणन अहलाकि पानको इच्छा को था, किन्तु ब्रह्मान को सम्भावना नहीं है। यह सुन अगस्तान गौतमले गोतमको उपयुक्त पात्र स्थिर कर उन्ह अपना कन्यारत्न कहा-गौतमो नामको तुम्हारी लायो हुई नदोके तौर मम्प्रदान किया। गातम अहलाको माथ ले ब्रह्मगिरि पर कि माथ देखगराधना करनमे तुम्हारा मनस्काम आयममं सुखमे रहने लगे। इन्द्र अहलया के रूपमें मुधि सिद्ध होगा। यह सुन गातम गातमीतारको आ शिव, हो कुअभिप्रायस आथम निकट अवस्थान करन लंग। गङ्गा और विष्णुको आराधना करने लगे। गङ्गाजीने एकदिन उहनि गातमका रूप धर अहलाकि माथ संभोग मानात हो दोनांक अङ्ग पर पवित्र जल किडक दिया। किया था। मयोगवश उमा ममय गातम ऋषि मशिषा इमम् वे दोनों बहुत अच्छे देख पड़ने लगे। गङ्गाम प्रायमा पहुचे । इन्द्र गौतमके भयसै विड़ालरूप धर अभिषिक्त वह जल नदोरूपमें वह मागरको जा मिला अपेक्षा करने लग । गौतम गृहमें प्रवेश कर अहल्याको वही वृद्धगातमी नामसे ख्यात है। गातम ऋषिन इमके अवस्था देव क ड ही बोले-'पापायमि । तू यह क्या तौर पर वृद्धेश्वर नामक शिवलिङ्ग स्थापन किया था। कर रही है।' इसके बाद उस विड़ालको देख गीतमन स्वयं शिवजी रम वृद्धामङ्गममें स्नान कर ब्रह्महत्याजनित कहा-'तुम कोन हो । मत्य मन्य बोला, नहीं ता अभी पापसे मुक्त हुए थे । इस स्थानमें स्नान करनमे बन्ध्या स्त्री तुम भम्म करता हूं।' इम पर मार्जाररूपो इन्द्र भयमे भी पुत्ररत्न लाभ कर सकती है।” कृताञ्जस्लिपटमें बोले-'प्रभो ! मन मायासे विमुग्ध हो कोशिको-गौतमामात्मामें लिखा है कि विश्वा- यह पापकार्य किया है, अब आपका शरणापत्र हाह्र मित्रने ब्राह्मणत्व पनिक उद्देशम पशिठामे कल्या नामको कृपया मेरी रक्षा कोजिए।' ऋषिन यर कह कर उनको नदो ला उसके तौर पर तपस्या को थी । को शकसे लाये शाप दिया-'पापर्क प्रतिफलस्वरूप तुम्हारे शरोरम एक जान पर यह काशिकी नामसे मशहर है। हम दोनों हजार भग होंग।' तदन्तर अहल्यासे कहा-'पापोयसि! तौर पर पुण्यपद रामेश्वरक्षेत्र और लक्ष्मणश्वरनेत्र हैं। तम भी अतिकसित हो ।' इस समय अहल्या गे यहां राम और लक्ष्मणने शिवलिङ्ग स्थापन किया था।