पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५६

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18 खुरट-खुरदा ( खुरधा) सम्बी बम्बी बनती है। बौघमें दोनों ओर पावश्यक वा। वरण मन्त्रोके कौशनसे मन्धिपुत्र मधु श्रीचन्दन- वस्तु रखने के लिये मुल होता है। या मुसाफिरोंके के सबसे प्रतापरुद्र के पशिष्ट पतीसों सड़के बड़े कामकी पौत्र है। दो थैले रहमेसे इसे अनायास मार डाले गये। राज्यके अनेक समसाशासी घोडे पर रख या कन्धे पर डाल सकते हैं। जैसा मनुष्यों को मार कर मंत्री गोविन्द विद्याधर पकण्टक पाराम खुरशीमें सामान रख कर चलनसे मिसता, राज्य पाकर १०१.में राजा गोविन्ददेव नाम बैग या दामें देख नहीं पड़ता। पाप कर गज-सिंहासन पर बैठा। उस समय मुकुन्द सुरट (हिं.पु०) खु रोगविशेष, चौपायोंके मुमकी परिचन्दन नामका एक संगकी पौर प्रधान मन्त्री एक बीमारी। इसे खु ग, खरा या खुरपका भी दनादन विद्याधर विशेष विख्यात थे। मुकुन्द कटकके करते हैं। माबदामके कीचड़ में जामबरको पलानिम शासनकर्ता । कर राजा उपनाम से विख्यात थे। स्ट मिट जाता है। इम ममय बङ्गालके मसनमान शासनकर्ता और सरपस ( .वि.) खर व नामिका पस्य, बहुव्री. दक्षिण में गोमकुण्डाके मुसलमान गजापोंने उडीसाक नसादेशः टच एवन । चिपिटमासिक, चपटा। विज्ञापस्त्र धारण किया। राजमहेन्द्री प्रभृमि गोदावरी सरतार (हिं. स्त्री. ) खुरका पाघात, टापकी चोट तोरस्थ स्वाम लेकर गोलकुण्डा गजांक साथ विवाट सुरपी (हिं. स्त्री० ) कुलस्य, कुसथी। ठाना । इस विवाद के लिये युद्ध प्रारम्भ पा। खुरदा (खरधा ) उड़ीसाके अन्तर्गत पूरी जिसाका एक राजागो वन्द देव राज्य छोड़ कर पाठ मास तक उपविभाग । या पचा. १९४१ एवं २० २०७० मालिगण्डा नामक स्थानमें रहने के लिये वाध्य हुवे । और देशा. ८४ ॥ तथा ८५ ॥ प्र०के मध्य इस समय इनके दो भ्रातपत घुमन छोठग और पवखित है। इसका परिमाण फम ८७१ वर्गमोस है। वलही बोचन्दनने लगबाथजी मन्दिरके पार्षदों को सोकसंस्था प्रायः ३५४२३५३, जिसमें हिन्दुयों की संख्या विनाश किया और कटके शासनकर्ता मुकुन्द हरि. अधिक। १२१२ गांव बसाया उपविभाग चन्दनको कट कसे भगा कर राज-सिंहासमको ग्रहण दो थानों में विभक्त है। खरदा पौर बायपुर। किया। राजा गोविन्ददेवने रस संवादको पाकर डोसाके प्राचीन हिन्दूराजापोंके पधःपतन सेन गातीरमें अपने दोनो भानपुरको परास्त किया। पर शेष राजा यही शुद्र उपविभाग मान लेकर थोई पाप गातीर पर मृत्य के बरामग्राम में फैम गये पौर समय तक स्वाधीन थे। इसके जान पौर पद सादि तत्पश्चात् मन्त्री दनाई विद्याधरने प्रमापरुद्रदेव नाम के महाराष्ट्र पखागो मेनासे दुर्भब पोर दुरागेर हो- एक मनुषको राजसिंहासन पर बैठाया। यह बहुत के कारण वे अपनी स्वाधीनताको रक्षा करने पाये • पवा बागै राजा थे। सिर्फ म चौके जनसे पाठ वर्ष थे। पन्तम १८.४०को याक राजाने पारेज राय राज्य करने वाद नि:सन्तान भवम्बामें पन्होंनदेश त्याग केविरुर पस्त्र धारण किया, इसका परिणाम या किया। उसके बाद मरसिंजाना मामा एन सारसो वाकि परेज-राजानेमका रायसीम खिया। सरदार मुकुन्दपरिचन्दनको सहायताले दमाई-विद्या- नमोसे या पार जोंके अधीन वसा पास है। धाको कारावा करके पाप सिंहासन पर बैठ गये। म मौराममहाप्रभुके समसामयिक सूर्यवंशीय राजा प्रताप ममय गजा गोविन्ददेव कामावन रघुभन्न कोठरने बद्रदेवका १५२४९०को स्वर्गवास एषा । इसके साथ सैन्य संग्रह करके राज्य पर हमला किया; किन्तु मुकुन्द साथ सूर्य वंशका गौरव भी नष्ट हो गया। उनके मरने हरिचन्दनने हे कंद कर डाला । एक वर्ष के बाद मर- पर उनके १२ सड़कोमसे बड़ा सड़ का राजा बना। सिंजामा सिंहासनसेचत किया गया । पन्त में मुकुन्द रोविन वा प्रभूत क्षमतामात्री मंत्री गोविन्द-विद्याधरती परिचन्दनने सङ्गी मुकुन्ददेव नामसे १५५. में हादसे मारा मया। उसके बाद दूसरा मड़वा राना राज-सिंहासन पर लिया। ये बड़े विवेना पार