पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५६५

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गौच मौकाने ५६६ में गोध म १०० पल, जल ३२ श० डाल कर काढ़ा प्रस्तुत बाद दो दण्ड समयको गोधूलि कहते हैं। मूहत्तचिन्ता कर जब अन्तमें केवल ८ शराव बच जाय तो उसे नीचे मणिके टीकाकारका कथन है कि उपरोक्त दो मत देशभेद उतार ले और गोधूम, मुञ्जाफल (अभावमें तालमुस्तक), और आचारभेदसे आदरणीय हैं। मुहर्त चिन्तामणिके माषकलाय ( उग्द) , द्राक्षा (दाख ), परुषफल ( नोली मतमे हेमन्त और शीत ऋतुमें स य पिण्डाक्तति होने पर कटसरैया ) काकोलो, क्षीरकाकोनो, जीवन्ती, शतमूली, गोध लि होती है। इस प्रकार चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ ओर अश्वगन्धा, पिण्डी खजुर, मधुक फल, त्रिकट, शर्करा, आषाढ़ मास में मर्य अम्ति, तथा थावण, भाद्र, आश्विनी भन्नातक ( अभाव में रक्तचन्दन ) और आत्मगुलफल या अार कार्तिक माममें म र्य मगडलक म पूर्ण अस्त होने मूल । त्य कके ३॥ तो ४॥र को चर्ण कर उसमें मिलाते पर गोध लि हा करती है। हैं। इसके बाद गुड़त्वक् ( दारचीनी ), एन्ला ( इला मुहत -चिन्तामणिके मतसे बृहस्पतिवारमें म र्य के , यची ) पिप्पली, धन्धाक ( धनियां ), कर्पूर, नागकेशर अस्त होने तथा शनिवाग्में स्थित रहने पर गोध नि शुभ- प्रत्येक १०॥ तोले और शर्कग ८५०, मधु ८५०को उम. प्रद है । गोध लि ममयके लग्नसे अष्टम या पठम चन्द्र में डाल कर राकाण्डसे उसे अच्छी तरह घोटना चाहिए। रह एम गोध लि ममयमें विवाह देनसे कन्याको मृत्यु बाद १२५० मेवन करनका विधान है। होतो है । लग्नमें या अष्टममें मङ्गल रहे तो वरको मृत्य (चक्रविदत्त न मग्रा) होतो तथा चन्द्र एकादश वा हितोय राशिमें रहे तो वर गोध मी (म० स्त्रो.) गां ध मयति ध म णिच् अण -गोरा और कन्या अनेक तरह के सुख पाते हैं। . दित्वात् डोप। गोलोमिका, ज्वे तदूर्वा, एक तरहका ज्योतिस्तत्त्वक मतमे अग्रहायण और माघ मासके घास जिममें पुष्य भी लगते हैं। गोध लि योगमें विवाह करने पर कन्या विधवा होती, गोधलि ( सं० स्त्रो० ) गवां चुरोत्थिता धनि: । कालविशेष, फाला नर्क गोध लि लग्नमें विवाह करनेसे पुत्र, आयु और संध्या समय । ज्योतिषशास्त्रमें लिखा है कि गोधूलि लग्न धनको वृद्धि होती है। इसी तरह वैशाखमें शुभ और सब कार्यों में ही प्रशस्त है। इमसे नसत्र, तिथि, करण, प्रजावृद्धि, ज्येष्ठम वरको सम्मानद्धि एवं आषाढ़ मामक लग्न, वार, योग ओर जामिनादि दोषों का भय नहीं गोध नि लग्नमें विवाह करनसे धन, 'धान्य ओर पुत्र वृद्धि रहता, गोध नि ममस्त दोषोंको नाश करती है ! नल्लादि हा करती है। ज्योतिर्वत्ताओं के मतसे शुभ दिन या शुभलग्न के अभावरी गोधनु ( म० स्त्री. ) गौरव धनुः । दुग्धवती गाभी, दुधारी अगत्या गोध न्तिमें अपरिहाय कार्य किया जा सकता है, गाय। किन्तु शुभलग्न पाने पर गोध निमें कार्य करना निषिद्ध गोधर (म त्रि०) गुध बाहुलकात् एरक् । रक्षक, रक्षा है, करने पर अमङ्गल होता है। करनेवाला। नारटके मतानुसार पूर्व देश और कलिङ्गदेशवामियों गोधरक ( म त्रि. ) गोधर स्वाथ कन् । १ रत्तक । (१०) के लिए गोध लि शुभप्रद है। गोध लिमें गन्धवादि विवाह गोधर मज्ञायां कन । २ चमष्यद मर्प विशेष । और वैश्योंका विवाह हो मकता है। देवत मङ्गलके गोध (म पु०) गां भूमि धरति गो-मूनविभुजादित्वात् मतमे शुदके पक्ष में गोध लि प्रशस्त है, किन्तु दिनांके लिये कभधर, पर्वत. पहाड । प्रशस्त नहीं है। गोधा-गुजरातके पांचमहल जिन्ने के गोधा उपविभाग के गोध लि समयका निरूपण लेकर ज्योतिषशास्त्र में अन्तर्गत एक प्रधान नगर । यह असा. २२.४६ ३." मतामत लक्षित होता है । किसो किमी ज्योतिविदके उ. और देशा० ७३.४० पू० पर अवस्थित है। यहां मतसे सूर्यविम्बके कुछ अस्त होने के बाद दो दगड जिलेको मदर अदालत, दिवानी अदालत, डाकघर, समयको गोधूलि कहते है। थोड़े ज्योतिषिक कहते हैं कि कारागार और औषधालय हैं । सूर्य बिम्बके तीन भागोंमें दो भागोंके अदृश्य होनेके गोन (हिं॰ स्त्री०) १ अनाज भरनेका चमड़ा, या कंवलको