पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५७

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खुरदा ( खुरषा)-खुरफ दया गया है। पपने बुधवससे मीने विवेयी खरदाम मिन्नलिखित राजा राज्य करते - तब देश पधिनार कर बिद्रेणी में घाट और मन्दिर रामचन्द्रदेव १५८०० सापम किया । उन्होंके समय वनपसका नवाब पुरुषोत्तमदेव सुलेमानके मेनापति .कासापाइने १९५८ में ११.८ मरसिंहदेव रामाको परास्त पोर मार कर उड़ीसाको पपने १५३० गाधादेव १६५५ अधिकार कर लिया। वनभद्रदेव मुकुन्द देव के बाद दो मनुष्य नामही मानके गजा १६५५ मुकुन्ददेव वे और वे दोनो मुसलमानों के हाथ से मारे गये। द्रयामरदेव १२८२ तत्पश्चात् उड़ीम.-राज्य २१ वर्ष तक पगजक अवस्थामै कृष्ण वाग्विष्यादेव १०१५ मुसलमानों के अधिकारमें रहा। नामको भी एक गोपीनाथदेव १७२० राजा नहीं था। उसके बाद बहुत सी गड़बड़ोके पोछे रामचन्द्रदेव (२रा) १७२७ दमाई मन्त्रीके पुत्र रपणाई रामचन्द्रदेवने १५८० ई. वोरकिशोरदेव १७४३ को सदरीके अभिप्रायानुमार-उड़ीसा महाराज नामसे टूथसिंह देव (स) सिंहासन ग्रहण किया। दनार विद्याधर गजपति मुकुन्ददेव (२०) १७८८ बंशके थे, रसिये इनको वंशावली 'गजपतिवंश' मी अन्तिम गाने 'पारेजीके विद्रोही नामसे विख्यात थी। उनके पूर्वगौरव नष्ट होने पर कर अपना राज्य मष्ट किया । इस वंशक भी यह 'जमिदार वंग' नामसे पुकारा जाता है। महा- गजगण पन्तम नामही मानके जगवाथ का राजा' वा राज रामचन्द्रदेवहीन कालापहाडके ध्वंसावविध 'उड़ोयागम' कहलाकर राजदरवारमें सम्मानित होते देवमन्दिरादिका निर्माण, संस्कार और देवमूर्तियों का थे, किन्तु यथार्थ में ये सिर्फ साधारण जमींदार । जहार किया। जगनाथदेवको मूर्ति भी इसी समय पश्चान्य विशेष विवरण उत्कल शब्द देखी। नसन प्रस्तत को गयो । १५८२९० को राजा मानसिंह खुरदाय (हिं. पु०) सासे पमान मांडने का काम। यहां शासनबर्ता होकर पायें । इस समय तेसङ्ग खुरनम् ( सं• वि०) विकल्प न टच् णत्वा । खरवस देखो। मुकुन्दटवके दो सड़क पौर. राजा रामचन्द्र के बीच खुरपका ( हिं. ५०.) पगभेद, चौपायांबी एक गन्य पामेको तकरार उठो । राजा मानसिंगने मध्वस्य बीमागे। इसमे उनके मुख तथा खुर्गेमें दाने उभर करस गरबडोको रस भर्तपर शान्त कर दिया भात, मुखमै सामानाव ता, देश गमे बाता, कि खुपदा प्रदेश और पुरुषोत्तमक्षेत्र विना करके महा. उष्ण खास चमता भोर पांव रखना कठिन पड़ा है। राज रामचन्द्र भोग करें मे और महारानको उपाधि खुरपा (हिं. पु.) १ बड़ी खुरपी। यह प्रौजार की रहेगी। किसा बाम और उसके अधीन का बनता और पकड़ने के लिये इस दस्ता पन्यान्य स्थान का मुकुन्द पुत्र राम- गता है। इसको बास छीनने और मोन गोडने में चन्द्र गयके पधिकार और मारयगढ़ चकोरी सुकुन्द व्यवहार करते है। २ चर्मकार यन्त्रभेद । मसे कोस कवितीय पुत्र के अधिकार में रहेगा। ये भी राजा की- कर चमड़ा साफ किया जाता . पुरम (सं० पु. ) खुर इव प्राति, स्वर-माकवाप सायेंगे, किन्तु महाराज रामचन्द्र की १२० किमाके विशेष, किसी किस्म मा तार । अपर मत करेंगे और समों में रहोंको प्रधानता खुरफ (हिं. पु०) कुसफा, एक साग । यह सोनिया- समी। साता।