पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५७०

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५६८ गोपभद्रगोपरिचर्या गोपभद्र ( म० लो० ) शाल क वृक्षविशेष। गौ हारा उपक्कत हैं, उनके लिये गोधन महश दूसरा धन गोपभद्रिका ( सं० स्त्री० ) गाम्भारोवृक्ष । ( Gmelina | नहीं है। इन मवेशियोंका आहार वन्यटण और वाम arboren) स्थान अरण्य है। जो जल दूमरे के पीने लायक नहीं वही गोपमाउ-युक्त प्रदेशमें ही जिले के अन्तर्गत एक वन्य जल पीकर अपना जीवन पालते हैं। गौ प्रतिपालन प्राचीन नगर । यह अक्षा० २७३२ उ. और देशा० ८०| करनमें एहस्थको विशेष आयाम करने नहीं पड़त, वरन १८ पृ के मध्य अवस्थित है। यह हर्दोई सदरमे ७ कोम वे इनके ग्धसे बहुत लाभ उठाते हैं। गौका मुत्र और उत्तर पूर्व में अवस्थित है। लोकमख्या प्राय: ५६५६ है। विष्ठा प्रभृति एहस्थके लिए प्रयोजनीय और उपकारी प्रवाद है कि पूर्व कालमें ठठेरीने जगल काट यहां मब्बा है, गृहस्थ मात्र हो गौके ऋण आवद्ध हैं। बाल्यकाल- मराया या मब्बाचाचर स्थापित किया था। १०वीं शता में माता और गो इन्हीं दोनोंके स्तन पान कर जोवन ब्दीमें गजा गोपने यहां अपने नाम पर एक नगर बमाया । धारण किया जाता है, इमो लिए दोनोंको ममान भावसे ठठेरोंमें प्रतिष्ठित इम स्थानको कोरेरुदेव और वादल भक्ति करनी चाहिये । ब्रह्मपुराणके मतसे यह स्थको प्रति देवकी प्रस्तरमूर्तियां आज भी पूजी जाती हैं । १०३२ | दिन गौ पूजा, नमस्कार और उनकी सेवा करनी उचित ईको ममायदके अधीन लालपीर गोपमाउ नगर पर है। गोष्ठ में जा गौओंका प्रदक्षिण करनेसे चराचर भू- आक्रमणके लिये आये थे। किन्तु यह लड़ाई में मारे गये मगडल परिभ्रमणका फल होता है। गोमूत्र, गोमय, और विजताने उन्हें गोपीनाथके म दिग्में गाड़ दिया । वृत, टुग्ध, दधि और रोचना गोके ये छः द्रव्य मङ्गलकर १२३२ ई०को अल्तमामके आदेशसे रब्बाजा ताज उद्दीन और सकल पापनाशक हैं। गायकी ग्रामदान करने पर होमेन यहां मसैन्य उपस्थित इये। इन्होंने यहां एक स्वर्गवास होता है। गौके शरीर पर हाथ फेरनसे सब मस्जिद निर्माणको जो १७८५ ई०को अर्काटके सुवादार पाप दूर हो जाते हैं। नबाब मुहम्मद अलीग्वाँक यत्नसे मरम्मत हुई थी। अक ____ पद्मपुराणके मतानुमार गौको देख कर पहले “नमो बरके ममय इम नगरमें १२ फुट ऊची एक जुम्मामस्जिद गोभ्यः" इत्यादि मन्त्र पाठकर नमस्कार करना चाहिये। निर्मित हुई और १६८८ ईमें नौनिद्धराय कर्ट क यहां रामायणमें लिखा है कि रामचन्द्रके पूर्व पुरुष महाराज मिड गोपीनाथका मन्दिर स्थापित हुवा। इम | दिलीप स्वर्गसे लौट आने के समय गोको नमस्कार करना मन्दिरमें मस्कृत शिलालेख है। भूल गये थे। इमो पापसे अनेक दिन पर्यन्त ये पुत्ररत्नसे --. ... त्य वञ्चित थे । गोपरम (सं० पु०) गां जलं पिवति पाक । गापाकोत्स्य बहवी । घोल, क्षारजल। "आदित्यपरागका मत है कि गोको यथाशक्ति लवण- गोपराजपण्डित--एक ज्योतिर्विद, ग्रहणगणितकल्पतरु | दान करनेसे पुण्यलोकको प्राप्ति होती है। जो प्रतिदिन वामनाभाष्यके रचयिता। विना खाये गौको खिलाता है, उसे सहस्र गोदानका गोपराज-भानुगुप्लके अधीन एरणका एक राजा। फल होता है। देवीपुराणमें लिखा है कि मक्षिका और गोपराष्ट्र (मं० पु०) गोपप्रधानाः राष्ट्रा: । भारतवर्षस्थ एक डांस प्रभृतिसे निवारण के लिए गोग्टहमें धम देना प्रदेश, ग्वालियर प्रान्तका एक प्राचीन नाम। यह गोप चाहिये। गगोंका प्रधान वासस्थान था। महाभारतमें इस जनपद गोग्टहमें धम नहीं देनेसे गोपालक मक्षिकालीन का उल्लेख है। मरकको जाता एवं नरकको भोषण मक्षिकायें उसके गोपरिचर्या । म पु० ) गोः परिचर्या, ६-तत् । गोसेवा, चर्म को फाड़ कर रक्त पान करती हैं। गौका बच्चा मर गौका प्रतिपालन । हिन्दूशास्त्र में लिखा है कि प्रत्येक जाने पर इसे दूहना नहीं चाहिए, ऐसा करनेमे उस नरा- गृहस्थको गौ प्रतिपालन करना उचित है । पूर्वकालमें | धमको नरक में वाम कर सुधाके लिये हाहाकार करना राजा महाराज गौ मेवा किया करते थे। गृहस्थ मात्र ही पड़ता है। (पुराण)