पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५७१

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गोपरिचरिर्या ५६५ महाभारतका मत है कि वृषणात गोको जलपान करत करें। गोमय या गोमूत्रको कभी भी छणा दृष्टिमेन समय जो व्यक्ति वाधा देता उसे ब्रह्मघातक कहते हैं। देखें। शुष्क क्षार हारा हमेशा गोग्राह परिष्कार कर जोशीत तथा वायरोधक गोयह निर्माण करता है, उमा डालें। ग्रोमकानमें शीतन वृक्षको छायाम और शीत- के सात कुल उद्दार होते हैं। कालमें गर्म तथा कद मविहीन गृहमें तथा वर्षा और एहस्थ के अपने घरमें कुलक्षणा गायको उत्पन्न होने शिशिरकालको अल्पोषण और वायविहीन घरमें गौको पर उसे परित्याग करना नहीं चाहिये। शोतकालमें रखना चाहिए। उच्छिष्ट, सूत्र, विष्ठा. कफ, काश तथा अनाथ मवेशियोंका घर निर्माण कर देना उचित है। दूमर किमो तरहका मल गोगहमें परित्याग न करें। (नं. ५) रजस्वला. कुलटा या नीच जातिको गोशालामें प्रवेश होने गायके प्रमव कालसे दो माम पर्यन्त उसे दुहना नहीं न दें। कभी भी गोवत्स का लड़न न करें। गोशालाकै निकट चाहिये। हतीयमाममें मिर्फ दो स्तन दुहनेका विधान कोड़ा करना निषिद्ध है । जता पहन कर अथवा हाथो, है और शेष दो स्तन बच्चाके लिए छड़ देवे। चतुग घोड़ा या गाड़ो पालकी प्रभृति पर आगेहण कर गौके मासमें तीन स्तन दुहना चाहिये, किन्तु दुहते ममय यदि मध्य गमन न करना चाहिए । पिता तथा मासाकी नाई' गाय किसी तरह कष्ट अनुभव करे, तो उसे अच्छी तरह श्रद्धा महित गोत्रीका प्रतिपालन करें। महा कोलाहल, न दुह । प्राषाढा, आश्विनो और पोष पूर्णिमाको गोदो- धोर दुदिन और देशमें विप्लव उपस्थित होने पर मवेशि- हन करना निषेध है । युगादि, युगान्त, षड़शोति. विषु योको तृण और शीतल जल्न खान के लिये देना चाहिए । वत् म क्रान्ति, उत्तरायण एवं दक्षिणायण प्रवृत्तिक (मपुरा) दिनमें चन्द्र या सूय ग्रहणमें एवं पूगि मा, अमावस्या, विष्णुधर्मातरम लिखा है कि राजाओं के लिये गो चतुर्द शो, हादशी ओर अष्टमी तिथिमें गोपूजा करनी प्रतिपालन करना उचित है । गोमय और गोमत्र द्वारा चाहिए तथा ४ पल लवण, ८ पन्न घृत, १६ पल अपर अलक्ष्मीका विनाश होता है। इन्हें कभी भा घृणा दृष्टिले दग्ध और ३२ पल शीतल जल गोको खाने देना उचित ___ न देखें । उतनी हो मख्या गौ रखें जितनी मख्याका है। किन्त रुचि और ग्धके परिमाणानुसार आहारीय प्रतिपालन अच्छी तरह कर सके। कभी भी सुधार्स परिमागा डि या हाम करना पड़ता है। प्रात:काल हो गा कष्ट न पा मके, उसके प्रति विशेष लक्ष्य रखना लवण और इसके बाद जल तथा तृग खानके लिये देना चाहिए जिम घरमं गाय क्षुधामे कातर हो रोदन चाहिए । रात्रिको गोग्राहमें दोप, तन्त्रीवाद्य और पौरा करती है. वह व्यक्ति नरकको प्राप्त होता है। मरेको णिक कथाका प्रसङ्ग करे। मनुषमात्रको हो गौओंको गोको ग्राम दान करनेमे अधिक पुण्य होता है। समस्त तृण जलाद द्वारा प्रतिपालन, पूजा और प्राणके साथ शीतकालमें दूमरको गोको ग्रासदान एवं आठ वर्ष भक्ति करना उचित है। तथा उठते. ब ठत, वात, पोते. पय न्त अग्रभक्त प्रदान करने पर भी स्वर्ग को प्रानि होती सोते समय सर्वदा अपने मनमें निम्नलिखित मन्त्र पाठ है। जो व्यक्ति मवेशियों के गृहमं शीत निवारणका उपाय . करना चाहिये। और जलपात्रको जलसे परिपूर्ण कर देता वह वरुप मन्त्र यथा- लोकको जा अप्सरा कि माथ नृत्य-गीत कर मकता है। "alदषु मव५ मत्ता को न्तु गावः मष: भवत्माः । सिंह, व्याघ्र, भय त्रस्त एवं पङ्क या जलमग्न गायको और मुञ्चत मन्द बन्न गोतानपश्याधिस्य विमुत्रा: । उडार करने पर एक कल्प पय न्त स्वर्गभोग होता है। इस प्रकार गोपरिचर्या करनेमे एहिक सुख भोग और घरमें एक गाय मात्रकै रहन पर रजस्वला स्त्रोका कभी परकालमें स्वर्ग लाभ होता है । ( अभपा) भी गर्भ दोष नहीं होता, तथा उस घरकी मिट्टी किसो सर्वदा सन्तोषके साथ गोको घास खाने के लिये तरह दूषित रहने पर भी अच्छी हो जाती है। गौके देना चाहिए। ताड़न, आकाश या खेद स्वप्रमें भी न । नि:श्वाम-वायुसे वह धर सर्वदाके लिये शान्तियुक्त हो जाता Vol. V. 143