पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५७२

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गोपवन-गोपातीर्थ है। गौकी हडडो कभी भी लकन न करनी चाहिए। २ महाभल्लानक गुड़। ३ अनन्ता। ४ माष्ठशारिवा। गायको मृत्यु होने पर उमकी गन्ध परित्याग न करें। ५ गाय पालनेवालो, ग्वालिन। वह गन्ध जहां तक फैलती है, वहां तक जमीन पवित्र (त्रि.) गां पाति पा लिय। गोर तक ७ लुन हो जाती है। जननी के मदृश गाय भी मर्वदा रक्षणीय करनेवाला, हिपानवाला ( स्त्रो०) ८ शाक्य किङ्गिनी- पूजनीय तथा पालनीय है, जो मनुष्य इन्हें ताड़ना करता, श्वरकी कन्या एवं सिद्धार्थ बुद्ध की स्त्री ' एक दिन बुद्ध रथ उमे रोरव नरक होता है। जब गाय क्र. हो आघात पर चढ़ कर घरको लौटे जा रहे थे, गस्तमें गोपाको दृष्टि करनके लिए उद्यत हो जाबनम ममय जो मनुषा "क्षम उन पर पड़ो। बुद्धदेवने गोपाकै मनोहररूप पर मुग्ध हो मात:" ऐसा कहकर स्थिर रह जाता है, उसे गो प्राघात कर उमो जगह रथको नोचा किया और उसके रूपको नहीं पहुचातो और वह परम पदको पाता है। छटा देखने लगा । मिद्धार्थको इस तरह म हित देख कर (माटि मम्स) किमोन गोपाको कथा गजा शुद्धोदन कर सनाई। गोपवन ( म० की. ) गोपभूयिष्ठ वन मध्यपदनो० । राजान गोपाला अपने पुत्रमे विवाह कर दिया । भोट , जिम वनमें बहुत बहुत ग्वाला वाम करें । (१०) २ एक ग्रन्थ टुल्वक पढनेमे पता लगता है कि जब बुद्धदेव ऋषिका नाम। थावस्तो नगरमें रहते थे देवदत्तने ग पाको हरण करने गोपवनादि ( म०प०) गोपत्रन आदियं य, बहुव्रो। को इच्छामे उमका हाथ पक , किन्तु गोपनि अपना पाणिनीय एक गण । इम गण के उत्तरवर्ती अपत्य प्रत्यय- हाथ छडा कर उमोका हाय इतना जोरमे मचोड़ कि का लोप नहीं होता है। गोयवमादिभाः । पा०४८. गोपवन, साथमे रक्त गिरने लगा। तत्पश्चात गोपाने उमको घरको विन्द भाजन, अश्वावतान, श्यामाक, श्यामक, ज्यापणा, छत्तमे वो धमत्व ( बुद्ध )के प्रमोद मरोवरमें फेक 'दया । हरिण, किन्दाम, वयम्क, अर्कलष, वध्योग, शिग्र , विष्णु, 'दलव' ग्रन्थम बुद्धदेवको यशोधरा, गोपा और मृगदजा बछ, प्रतिवोध, रथीतर, रथन्तर, गविष्ठिर, निषाद, तोन स्त्रियों का उल्लेख है । मिफनर माह चका कहना है शिवर, अलम, मठर, मृड़ाकु, मपाकु, मृदु, पुनर्भू, पुत्र, कि गोपाका दूसरा नाम यशोधरा भो था। शोध देखि । दुहिट, ननाट परस्त्री और परशु इन सबको गोपवनादि, गोपा--हिन्दी भाषाके एक सुप्रसिद्ध कवि । इनका गण, कहते हैं। जन्म १५३३ ई में हुआ था। इन्होंने रामभूषण तथा गोपवरम्-मन्द्राज प्रदेशस्थ कड़ापा जिल्लाके अन्तर्गत अलङ्कारचन्द्रिका रचना की है। .एक गण्ड ग्राम । यह प्राहरसे ३ मोन उत्तरको अवस्थित गोपाङ्गना ( सं० स्त्री० ) गोपस्याङ्गना, ६-तत् । १ गोपस्त्री, है यहां प्राञ्जनेयस्वामीके मन्दिरमें तीन पुरातन शिला. ग्वालाकी स्त्रो। २ शारिवा, अनन्तमूल नामको ओषध । लिपि विद्यमान हैं। गोपाचल ( म० पु.) १ ग्वालियरका प्राचीन नाम । गोपवल्लिका ( म० स्त्रो०) गोपवानो स्वार्थ कन्टाप । २ ग्वालियर के निकट एक पहाड़। गोपवल्ली। गोपाजित ( म०वि०) गोपा गोमो 'मा विभीत' इति गोपवल्ली ( म० स्त्री० ) गां पाति गोपा-कटाप । गोपा. वाक्योच्चारिणी जिवा यस्य, बहुगी । जिसकी जिह्वा चामौ वल्ली चेति, कर्मधा० । १ मूर्बा नामका पेड़, जिम- भय नहीं' एमा शब्द उच्चारण करती है जिसे कुछ भी की रेशामे धनुषका गुण और मेखला बनाये जाते हैं। भय नहीं है। ( मक_) २शारिवा, अनन्तमूल । ३ श्यामानता । गोपाटवक ( म०४०) गोपाल, जो वन वन गो चराता गोपर-(म स्त्रो०) यजिया गौ, यन्त्रको गाय ।। फिरता है। गोपस ( स० त्रि. ) गप-प्रसुन । रक्षिता, रक्षक. बचाने- गोपातीर्थ--बौखका तीर्थ विशेष । भद्रकाल्वावदान ग्रन्य- वाला। में लिखा है कि देवदासने यगोधारासे प्रेम रखनेके लिए मोघा (मस्त्रो०) गौ पाति पाक-टाप ।। श्यामालता। प्राथना की, किन्तु यशोधाराको उसका यह व्यवहार