पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५७४

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.१७२ गोपाल-गोपालकृष्ण दमि इयनवीन' दध दति विमान पायम विश्ववन्दी) प्रणयन किये हैं। १३ ये "परमहंस परिव्राजकाचाय गोगलगायबोताह कमानिनमन कगठमप'वर' व:। (सनसार) ! गोपाल" नाममे ख्यात हैं। ये गगापति और नृसिहके ५ राजा कीर्ति वर्म देवकै प्रप्रान मंत्री और मेनापति गुरु है। इन्होंने बहुतसे वैदिक ग्रन्थोंकी रचना की हैं इन्हीं के उत्माहसे प्रवोधचन्द्रोदय नाटक रचा गया था। जिनमेंसे थोड़े ये हैं. -आपस्तम्बसूत्रविवरण, आपस्तम्ब- ६ मन. इन्द्रियांका पालनवाला । ७ पन्द्रह मात्राओंका शुल्वरहस्य, कात्यायनपरिशिष्टिम ल्याध्यायभाषा, गोपाल एक छन्द, इममें और ८ पर ज्योति होनी है। कारिका, बौधायणीय चातुर्मास्यप्रयोगकारिका, दर्श पूर्ण- गोपाल-विदेहराज विरुढ़कके मंत्री, मकलके ज्येष्ठ पुत्र । मामादिकारिका, पक्षयागटीका, बौधायनोय पशु प्रयोग मकल विदेह परित्यागपूर्वक मपुत्र वैशाली नगरमें आ कारिका, प्रायथित्तकारिका, बौधायनीयश्रोत्र विवरण, वाम करते थ। गोपाल माहमी और वीर पुरुष थे। भरहाजम त्रटीका, यज्ञप्रायश्चित्तविवरण, श्रौत्रकारिका प्राचीन बौद्धसूत्र में निग्वा है कि बुद्धदेव बैगालोमे गोपान | और मोमकारिका। और मिहके शालबनको आये थे । मबको मृत्य के बाद गोपाल आचाय-१ प्रादेशकौमुदीखण्डन नामक एक उनके लड़के मिहने पिपद प्राह किया था। गोपाल वैदान्तिक ग्रन्थ रचयिता। २ विष्णुपूजाक्रम नामक मंस्कृत . अपनको उपेक्षित ममझ वैशालीका परित्याग कर राज- ग्रन्थकार। गृहमि प्रा बिम्बिमारके राजाकै प्रधान मंत्री होकर रहने गोपालक (म त्रि.) गां पालयति पाल-गव ल ६ तत् । लग। थोड़े ममय बाद राजा विम्बिमारने गोपाल- १ गोरक्षक, ग्वाला । २ भ पाल, राजा । (पु.)३ शिव, को भ्राटकन्या वासवीके माथ विवाह करा दिया। महादेव । गोपाल स्वार्थे कन् । ४ नन्दनन्दन । ५ च गड़ गोपाल-इस नाम पर बहतम संस्कृत ग्रन्थकारी के नाम महासेन नरपतिका एक पुत्र । पाये जाते हैं। गोपालकक्षा ( में स्त्री.) गोपालानां कसं व । १ भारत १ एक धर्म शास्तकार, योदत्तने श्राद्धकल्पमें इनका वर्ष के पशिम भागमें अवस्थित एक प्रदेश । (पु० ) मत उडत किया है। २ तह शवामी, गोपालकक्षाके रहनेवाले।

. २ वृत्तदर्पणकार जानकोनन्दनके पितामह और गोपालककटी ( म स्वी• ) गोपालस्य गोरक्षकस्य प्रिया

रामानन्द के पिता । इन्होंने कणादसूत्रको टीका और | कर्कटो । क्षुद्र कर्कटी, ग्वाल ककड़ी। इसका मस्कत काव्यकौमुदी रचना की हैं। पर्याय- वन्या, गोपकक टिका, क्षुद्रं वारु, क्षुद्रफला और ३ मस्कृत चैतन्य चरितामृतरचयिता । चिभिटा है । इसका गुण-शीतवीय , मधुर, पित्त, ४ट्रव्यगुण नामक वैद्यक ग्रन्यप्रणता। १६०६ ई०- म त्रक्कच्छ, अश्मरी, मेह, दाह, और शोषनाशक है। को यह ग्रन्थ रचा गया था। इन्होंने चक्रपाणि और गोपालकवि-१ एक विख्यात हिन्दी कवि । इनका जन्म नारायणक्कत ट्रव्यगुण उद्द,स किया है। १६५४ ई०को हुआ था। ये गजा मित्रजितमिहके ५ पञ्चोपाख्यानरचयिता। सभाकवि थे। २ वाघेलखण्डके रेवाजिलान्तर्गत वन्धी ६ ए के ज्योतिविद। ये भास्वताक टोकाकार। ग्रामक रहनेवाले एक कवि । ये जातिके कायस्थ एवं ७विवेकामृत नामक वैदान्तिक ग्रन्थरचयिता।। बन्धोक महाराज विश्वनाथसिंहके मन्त्री थे: १८३० ८ शालवंशन्टपमुक्तावलो नामक ग्रन्थकार । ८ शुल्व ई में इन्होंने गोपाल पचीमी नामक एक प्रसिद्ध हिन्दी सत्रका एक टीकाकार। १० विषमार्थ दीपिका नामक ग्रन्य रचा । ३ आनन्दलहरी नामक वैद्यक ग्रन्धकार । मारखत व्याकरणका एक टीकाकार । ११ विवाद गोपालकृष्ण--१ एक विख्यात मस्कृत ग्रन्थ कार । इन्होंने माणवका एक मग्राहकार। १२ राजानक गोपाल अम्बाहिशती, प्राय वर्ण मालिका, उग्रनृसिहस्तव, महे. नामसे मशहर हैं। इन्होंने दोनक्रन्दनस्तोत्र, प्रद्युमन खराष्टक, कुमारकर्णामृत, दुर्गानवरत्न, देवोतवरत्न, पञ्च- शिखरपोछाष्टक, . महाराजीस्तव ओर शिवमालाकाव्य ' दशवर्ण मालिका, वासुदेववादशाक्षरी, वासुदेवनन्दिनी-