पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५७६

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गोपालकृष्ण-गोपालतापनीय प्रवासी भारतवासी भी श्रीयुत पण्डित गोपालकृष्ण २ दिनाजपुर के अन्तर्गत एक गगडग्रास । यहां एक गोखलेके अत्यन्त कृतन रहेंगे क्योंकि इन्हींके उद्योगमे । सुन्दर देवमन्दिर है। नेटालको प्रतिज्ञावद्ध कुलियोंका जाना बन्द हुआ । ३ विहार प्रान्तके मारन जिले का उत्तर सब डिवि. १८१२ ईमें ये अपने दुशाग्रस्त भाइयों और बहिनी- जन। यह अक्षा० २३ १२ तथा २६ ३८. उ० और को दशा देखनके लिये दक्षिण अफ्रिकाको गर्य । वहां देशा० ८३°५४ एवं ८४५५° पू. में पड़ता है। क्षेत्रफल उन्होंने गजमन्त्रियोंसे मिन्न कर वार्तालाप को इम ७८८ वर्ग मोल और लोकसंख्या कोई ६३५०४७ है पूर्व- वार्तालापका फल लाभदायक निकला। उन्होंने सोचा। को गण्डक नदी बहती है। इस उपविभागमें एक नगर था कि देश तब तक उनति नहीं कर मकता है जब तक और २१४८ ग्राम हैं। अशुल्क अनिवार्य प्रारम्भिक शिक्षा प्रारम्भ न हो। इम ४ विहार प्रान्तकं मारन जिलेमें गोपालगञ्ज मब विषयका बिन्न इन्होंने कोमिलम पेश किया, परन्तु अम्बो- डिविजनका मदर । यह अक्षा० २६.२८ उ० और देशा० कार किया गया। इममे यं किञ्चित निरुत्साहित तथा ८४ २७ पृमें अवस्थित है। जनसंख्या प्राय: १६१४ हताश न हुए। इन्होंने स्वयं कमिली इम तरह कहा, होगी। यहां माधारण पबलिक दफतर बने और सब "मैं हतोत्साह नहीं हुआ है और न में शिकायत हो जलमं १८ कैदी रह भकते हैं। करता है क्योकि यह मब कोई जानते हैं कि १८७० ! गोपालगिरि-एक गिरि। मंस्कृत ज्यो तमन्य यन्त्रराजक ईक अनिवार्य शिक्षा एक पाम होनक पहले इङ्गनगड । मतमे यह २०१२. अक्षांश पर स्थित है। के लोगांको कमे कमे उद्योग करन पड़ थ । इमक गोपाल चक्रवर्ती-एक विग्यात टोकाकार । इनका मिवा मुझे यह भी माल म है तथा बहुत बार कह भो बनाया हुआ भागवत और अधात्मरामायण की टीका चुका है कि वर्तमान पीढ़ोके हम भारतवामियोंको अम.' प्रचलित है। फलता हारा ही स्वं देश मेवा करनी बढ़ी है।" गोपाल चन्द्र माहु--एक विख्यात हिन्दी कवि। ये प्र मड १८.१३ ई.म ये (Public Service Commission) हिन्दोकवि हरियन्ट्रक पिता थे। उनका दूसरा नाम पवनिक मविम कमीशन के मदस्य नियुक्त हुए थे। गि रधर वनामी था। इहान दशावतार काव्य और १८१४ ई में मम्राट इन्हें मरको उपाधि देते थे, परन्तु भाषाभूवनका भारतोभूवन नामक हिन्दी टोका रचना इन्होंने उसे मधन्यवाद अस्वीकार कर दिया । इनका की है। विश्वास था कि 'मर'को उपाधि ग्रहण करनेमे देशमेवा गोपानताताचार्य --एक विख्यात नैयायिक । इन्होंन संस्कृत में बाधा पहुच मकतो है। भारतवामियोंक अभाग्यमे से महापुरुषका देहान्त १८१५ ई०को १८ फरवगेको भाषाम अनिक ग्रन्थ रचे है-जिनमेंसे कळके नाम यं हो गया। इनके शवके माथ तथा प्रमशानदहमें लगभग हैं-अनुपलब्धिवाद, अनुमितिमानमत्वविचार, अन्तर्माव- बीम हजार मनुष्यांको उपस्थिति थो । इनकी मृत्य वाद, आत्मजातिमिडिवाद ईश्वरवाद, ईश्वरसुखवाद, पर लोकमान्य पगिडत बाल गङ्गाधर तिनकन ममान- एकत्वमिडिवाद, कारणता , ज्ञान कारणवाद, इन्दनक्षगा- 'भूमिमें आंसू बहाये थे और बड़े लाट मारवन भी वाद, नव्यमतवाद, परामर्शवादाथ , वाधवुद्धिवाद, राज- अपनो कोम्मिलको बैठक एक दिनके लिय बन्द को थी। पुरुषवाद, वादडिांगडम वाद फकिया, विधिवाद, शिष्य- गोपालकेशव ( मं० पु०) कृष्णको एक मति । शिक्षावाद, ममाधिवाद ार सादृश्यवाद । मोपालगञ्ज-१ वङ्गक फरिदपुर जिलान्तगत एक नगर । गोपालतापनीय (म० को०) गोपालस्तापनीयः मेव्यो यत्र, । यह अक्षा० २३.० २२ उ. और देशा० ८८.५२ प्र०के बहुव्रो० । उपनिषदविशेष : किमी किमा जगह गोपाल- मधा मधुमती नदीके तीर अवस्थित है। धान, लवण, तापन नामसे इमका उल्लेख मिलता है। शङ्कराचाय, पाट, दधि और शीतलपट्टो ( चटाई) के लिए यह नगर जोवगोस्वामी, नारायण, विश्वेश्वर प्रभृतिका रचा हुआ प्रसिह है। गोपालतापनीका भाथ अथवा टोका पाई जाती हैं।