पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गोपालदारक-गोपाल नन्द वाणीविलास गोपालदारक (म० पु०) जैनियों के एक आचार्य का नाम । | किया। इनको वित्तासे मुग्ध हो कर कलकत्ते के गोपालदाम-१ पारिजातहरण नामक संस्कृत नाटकके रच पण्डित-गमाजने इन्हें 'न्यायवाचस्पति' उपाधि दी थी। यिता एवं वन्दोमञ्जरोकर्ता गङ्गादासके पिता। २ वद्य इमके मिवा अन्य मभाओंसे इनको 'स्याहादवारिधि' सारम ग्रह नामक मंस्कृत चिकित्साग्रन्थ-प्रणता। ३ कर और 'वादिगजकेशरी' इत्यादि कई एक उपाधियां प्राप्त टिकौतुक नामक संस्कृत ग्रन्थ के रचयिता। इनके पिता हुई थीं। इनके स्वार्थत्याग लिय ममस्त जैन समाज का नाम वलभद्र था। ४ भक्तिरवाकर नामक वष्णव अब भी उनका म्मरण करता रहता है। आपके द्वारा ग्रन्थकार। इन्होंन इम ग्रन्थको १५६० ई० में रचा था । जैन-ममाजमें न्याय और कम मिहान्तक जाननेवाले ५ वल्लभाग्यान नामक प्राकृत ग्रन्थकार । ६ एक प्रसिद्ध पचामा विहान् तयार हुए हैं। हम ममय जो "जैनमित्र" वंद्यक ग्रन्थकार। ये सिडेश्वर के पुत्र और रामरामर्क नामक मासाहिकपत्र निकल रहा है, उमको मबमे पले पौत्र थे। इन्होंन १७०१ ई०को योगामृत नामक संस्कृत इन्होंने निकाला था। उन्हांन सुशोला उपन्याम, जन- चिकित्मा ग्रन्थ और सुबो धनो नामक उमको टोका रचो मिद्धान्तदपण, जनाभद्धान्तप्रवेशिका आदि कई एक हिंदी है। ७ एक म्मात पण्डित। इनका उपाध मिद्धान्त ग्रन्थ लिख हैं। पिकन्नो पुस्तकका जनममाजमें खब वागीश भट्टाचार्य थो। इनका बनाया हुआ व्यवहारा- प्रचार है। लोक नामका स्मृतिमंग्रह पाया जाता है।८व्रजक एक इनका स्थापित गोपालजैनमिद्धान्तविद्यालय अाजकल हिन्दी कवि। यं ई० मतरहवीं शताब्दी में विद्यमान भी जोवित पार मचा रुपमे कार्य कर रहा है। इनमें इनको प्रायः मभी कविताय खडो बोली में हैं, जिन य अव तनिक अध्यापन करत थ ।। में एक नीचे दी जातो है-- १८१० ई में ग्वालियर के अत्तगत मोरेना नामक स्थानमें इनकी मृत्यु हुई। "मेरे महाया मार डानिया फन्दाय । विकटो चढ़ कर दम्खन लागो कतोक दूर मार पिय र गो॥ गोपालदेव-१ राष्ट्रकूटवंशीय राजा भुवनपालक एक पुत्र- इम नियामें दम दा बजवा चार कहार मिन घर पहब । का नाम । २ भोजप्रवन्धवगित गिडन नगरका एक कात गावानदाम कहरवा चणा- मनको में वनिनि जार.. काव। ३ एक प्रमिद्ध वैयाकरण । इनक। द्रमरा नाम गोपालदास बग्या न्यायवाचस्पति- दिगम्बर जैन मम्प्र. मन्य देव था, य शम्भ देवक पुत्र अर रुगादेवके कनिष्ठ दायक एक प्रसिद्ध विहान और ग्रन्थकार। इनके पिता भ्राता थ। इन्होंने परिभापिन्दश वर, व याकरणभूषा । का नाम लक्ष्मणदास और माताका नाम लक्ष्मोमतो था।। लघु वयाकरणमिद्धान्तभूषण और लघुशब्द न्दीवरको वि. स. १८२३में आगरमें इनका जन्म हुआ था । टोका रचना की है। गोपालदेशिकाचाय---एक विख्यात मस्कृतवित पगात । जैसवाल जाति और बरया इनका गोत्र था । मातवर्ष की उममें ( म० १८३० में ) इनके पिताका देहान्त हो उन्होंन मस्कृत भाषामें निपचिन्तामणि और मारम्वा दिनी नामक वदान्त, रामनवमानिणय और प्रालिका गया। माताने बहुत कष्टमे इनको मट्कुिलेशन तक पद्धति प्रणयन किये हैं। पढ़ाया। गणितमें ये बहुत ही निपुण थे । २० वर्ष- गोपालधानो ( म त्रि०) गोपालो धोयतत्र धा आधार की उम्रमें हाईस्क ल छोड़ दिया। इनका १४ वर्षको ल्यु ८ ङोप। गोष्ठ, गा रहनका न । उम्रमें विवाह हो गया था। अजमेर में इन्होंन प ण्डत गोपालनगर - बङ्गाम नदिया जिले के अन्तर्गत एक वाणिज्य- मोहनलालके पास रहकर दो वष तक गोम्मटसार सरोख प्रधान नगर यह अता. २३३ ५०3० और देशा. महान् ग्रन्थका अध्ययन किया। ८८४८ ४० पू० पर अवस्थित है। इसके उपरान्त ये ग्वालियरके अन्तर्गत मुरेना नामक गोपालनन्द वाणोविन्नाम-भगीरथ मिथके पुत्र । इन्होंने स्थानमें रहने लगे। यहां रहकर इन्होंने "जैनसिमान्त मारावलो नामक कुमारमम्भवको एक उत्कृष्ट टोका विद्यालय" नामका एक न. विश्वविद्यालय स्थापन | लिखी है।