पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५८१

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गोपिलपुरम्-गोपीनाथ ५ पिलपुरम् -मन्द्राजमें वृद्धाचल तालुककै अन्तर्गत एक दान क म मान भुनपति जान विक्रम जोन दोष माधव वन विमान । प्राचीन ग्राम। यह वृद्धावलसे ५ मील पूर्व दक्षिण में गोपीचन्द को दोमो ए राजा राम राव मार मौला गहनायो चतुर सजान' वस्थित है। यहां परातन शिवमन्दिरमें अनेक शिला- गोपीचन्दन (पु.) एक प्रकारको पोलो मट्टी। वणव- लिपि उत्कीर्ण हैं। गण इम महोका तिलक लगाते और ममम्त अङ्ग पर पिष्ठ ( स० त्रि. ) अतिशयेन गोपी दुष्ठन् टिलोपः। हरिनामका छाप देते हैं। 'गोतम। हारकाका गोपीचन्दन ही सर्व श्रेष्ठ हैं। बहतांका गोपी ( म स्त्री. ) गोपस्य स्त्री गोप डोष । गोपपतो, विश्वाम है कि जब कण लोलामम्बरण कर म्वग चले | ग्वालिनो। पूर्व समयमै ये ममम्त कणको सेवा करतो गय तब विरहकातरा गोपोगणने एक पोग्वरमें डब कर थीं। वृन्दावनकी गोपी कृष्ण प्रेममें मतवालो हो कर अपना प्राण त्याग किया था। उमी पोग्वर ( तालाब) अपने पतिपुत्रको छोड़ कृष्णक माथ रहा करती था। को मट्टो गोपोचन्दनसे प्रमिड है। साधारण मनुष्ण उन्हें मानुषी ममझत एव' करण के गोपीचन्द्र-१ रङ्गपुरके एक राजाका नाम । इनका साथ रहनके कारण उनके चरित्रमें कलङ्क ठहराते थे, गान अब तक भी रङ्गापुर अञ्चलमें प्रचलित है । कोच- किन्तु प्राचीन हिन्दशा के प्रति लच्च करनसे जाना विहार और कामरूप देखो। जाता है कि गोपीगण मामान्य मानवी नहीं. पार्थवः । २ मूतिकमृतकृत एक प्राचीन कवि । सुबके लिए वे कृष्णको वन्दना नहीं करती और वे कष्ण गोपीजनवनभ ( मं० पु. ) गोप्य व जनम्तम्य वनमः । श्री. को नन्दगोप नन्दन कह कर भी नहीं समझती, वग्न : सोनी कगा। । उनको विराट, अव्यय, मच्चिदानन्द और जगतपति मानती पी.) गो गोरचनेव पीतः । एक प्रकार- थीं, इस लिए मांसारिक सुख परित्याग कर मान, लज्जा का वचनपक्षी जिमका देखना अशुभ समझा जाता है। और लोभभयको जनाञ्जलो दे कर उन्होंने कक्षा में आत्म- गोपीथ ( मं० लो० ) गां पशून पाति गो-पा-थक निपातन ममपंग की थी। माधु। १ तीर्थस्थान । २ मोमपान। ३रक्षण, रक्षा। पदमपुराणके पातालखगडमें लिखा है कि गोपीगगा ४ राजा। ५ गोके जल पीनेका मरोवर । मानवौं थीं। श्रुति, देवकन्या और मुनिकन्यागण ही गोपोथ्य ( म० क्ली. ) गोः पृथिव्याः पीथं पालन गोपीथ- गोपीरूपसे वृन्दावनमें वाम करती रहीं। इनमें से राधा. मेव गोपीय स्वार्थ यत्। पृथ्वीपालन । चन्द्रावली, विशाखा और ललिता प्रभृति कई गोपियां गोपीनाथ ( मं० पु. ) गोपियोंकि स्वामी, श्रीकृष्ण । प्रधान थीं। गोपीनाथ-१ अग्रहोपर्क प्रमित विष्णुविग्रह, चैतन्यदेव गोपायति रक्षति गुप्-अच गौरादित्वात् डोष ।। कतक अभिषिक्त और गोविन्दघोष ठाकुर कतक प्रति २ शारिवा, अनन्तभूल । ३ रक्षिका. रक्षा करनेवाली । ष्ठित । अहीप चौर गाविधाषठाकुर देखो। २ अग्न्याधान- गोपीक-सूक्तिकर्णामृतत एक प्राचीन कवि। प्रयोग नामक मंस्क,त ग्रन्थकार । ३ अनुमानवाद नामक गोपीकान्त-वेणोदत्तके पुत्र, न्यायप्रदोप नामक मंम्कत न्यायग्रन्थकार। ४ एक विख्यात म्मात पण्डित । इन्हीं- ग्रन्थक रचयिता। ने आङ्गिकचन्द्रिका, तुलापुरुषमहादानपद्धति, प्रेतदीपिका, गोपीकामोदो ( मं० स्त्री० ) कामोद और केदारो योगसे । मासिकथाङपद्धति, मस्काररखमाला, मापिगडाविषय उत्पन्न रागिणीविशेष। प्रभृति मस्कृत ग्रन्थ रचे है।५ त्रिविक्रमशतश्योको नामक गोपीगीता (सं० स्त्रो० ) गवतके दशम स्कन्धान्तर्गत । ज्योतिर्ग्रन्थका और दुर्गमाहात्माका टोकाकार । ६ गोपोगण कृत कृष्णको स्तुति । न्यायविलासके रचयिता । ७ पदवाक्यरत्नाकरकं प्रणता । गोपीचन्द-ये हिन्दी के एक सुप्रसिद्ध कवि थे। इन्होंने ८ज्ञामपत्तिके पुत्र। इन्होंने शब्दालोकरहस्य की रचना कई एक कवितायें रची है जिनमें एक नीचे देते हैं- कोजातिविवेक रचयिता। ये व्यामराजक पत्र