पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५८२

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५८० गोपीनाथकविराज-गोपीनाथपन्थ और मामराजके पौत्र ) । १० पशुपत्याचार्यसिहके पुत्र अपने शयनकक्ष में देख चकित हो उठे, एवं अति समा. और कातन्त्रपरिशिष्टप्रबोध रचयिता। दरमे उनके आनेका कारगा पृछा। शिवाजी धीरे धीरे गोपीनाथ कविराज-एक प्रसिद्ध टीकाकार । इन्होंने बहुत गम्भीरतासे बोले -“मैं भवानोक आदेशानुसार कविकान्ता नामक रघुवंशकी टोका, सुमनोहग नामका गोब्राह्मणको रक्षाके लिये नियुक्त हुआ हूं, म्लेच्छके काव्यप्रकाशकी टीका, हर्षहृदया नामक नेषधको टोका कराल कवलसे गोब्राह्मणका परित्रागा करूंगा, यही मेरा एवं दशकमारकथा और सहाशती नामक दो मंस्कृत ग्रन्य एक मात्र आभप्राय है। आप स्वय' ब्राह्मण है ! ब्राह्मण प्रणयन किए थे। होकर क्या स्वजाति और स्वदेशको रक्षा कर नहीं गोपीनाथदीक्षित-थावणकम नामक मस्कृत ग्रन्थकार। मकत ! यदि आपने अर्थ के लिये मुगलमानका दासत्व गोपीनाथदेव-उड़ीमाके एक राजाका नाम ! आपने स्वीकार किया है तो मैं आपका यह अभाव दूर करने में १७१८ मे १७२८ ई. तक राज्य किया था। प्रतिश्रुत हूँ। मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि यदि आप अनु- गोपीनाथपथ-एक विचक्षण महाराष्ट्र ब्राह्मण । कूल होवें तो हवरा नामक ग्राम सदाके लिये चापको १६५८ ई०को जिस समय विजापुरके मुमलमान राजदर- प्रदान कर दूं।" ऐमा सुन कर गोपीनाथको ऑमी जस वारमें अमात्यों के मध्य गोलयोग चल रहा था, उम ममय आ गया, और आलिङ्गनकर शिवाजी को कहा-'मैं अफजल खाँ नामक एक सम्भान्त वोरपुरुष शिवाजो पर भवानोका आदे । शिरोधार्य करता हूं, अवश्यहो मैं शामन करने के लिये नियुक्त हुवे। ये ५००० अश्वारोही आपकी सहायता करूंगा।" और ७००० उल्क ष्ट पदातिक मैन्य माथ ले रवाना हुए। ऐमा कह कर इन्होंने अफजल खों की दुरभि. उस ममय शिवाजी प्रतापगड़में थे, इन्होंने कौशलक्रमसे सन्धि और मनका भाव प्रकाश किया । बहुतही थोड़े अफ जल खाँको लिख भेजा कि विजापुरके विरुद्ध अस्त्र ममयम परामर्श स्थिर कर शिवाजी घर लौठ आये । धारण करना उनके लिये अभिप्रेत नहीं है। यदि अफ दूसरे दिन इन्होंने गोपोनाथकै माथ काजी भास्कर जल खाँ मनोयोग करें तो वे सुलतानके आश्रय ग्रहण कर नामक एक ब्राह्मणको अफजल खाँके निकट भेजा। सकते हैं । अफजल खान देखा कि वन जगल होकर गोपीनाथ और कृष्णजीने शिवाजोसे भेंटके लिये अफ- शिवाजी पर आक्रमण करना महज नहीं है। इस सुयोग. जलों के निकट अनेक अनुनय विनय किया । गोपी. में शिवाजीको यदि हम्तगत कर मके तो उनके गौरवको नाथ का वचन मान वे शिवजोक माथ मुलाकातके मोमा न रहेगी। इस लिये इन्होंने गोपीमाथको अन लिय प्रस्तुत हुए। इधर शिवाजोन अफ जलखॉकी चरके माथ प्रतापगढ़को भेजा । गढ़के निकटवर्ती अभ्यर्थनाके लिये प्रतापगढ़के नीचे एक स्थानको सुमज्जित पार नामक ग्राममें गोपीनायके पहचने पर शिवाजी- किया और वनजंगल कटवा कर उनके आनका रास्ता ने स्वयं आ उनका आदर सत्कार किया। गोपीनाथने परिष्कार करवा दिया। पथके चारों ओर रोतिमत सेना शिवाजीको कहा "अफजल खां भी आपके साथ मित्रता रखी गई। अफ जन्न अल्पसंख्यक मैन्य और गोपीनाथको स्थापन करनेके लिये अभिलाषी है, वे सुलतानके निकट साथ ले शिवाजीमे मुलाकातके लियं आये । जिस स्थान आपके हेतु क्षमा प्राय ना कर आपको जागीरदार पर दोनों साक्षात् होते वहां अपने अपने पक्षका सिर्फ बना देंगे ।" शिवाजी रस पर सम्मत हो गये और एक एक व्यक्ति सङ्ग ने उपस्थित हुवे। शिवाजीको कमर- गोपीनाथका वामस्थान कुछ परमें निर्दिष्ट करा दिया। में वाघनख नामक दारुण अस्त्र रक्षित था। दोनों में ठीक दो प्रहर रात्रिको शिकाजी पकी गोपोनाथके घरमें ज्योही परस्पर आलिङ्गन होनेको था यही शिवाजीने प्रवेश कर उनमे भेंट की। गोशाय बामण थे, सुतरां कटिस्थ 'बाघनख' से अफजलका उदर विदोगा कर कृत्- शिवाजोने माष्टाङ्ग से प्रणिपात पूर्वक सह अविष्ट भक्ति पिण्ड छिव कर डाला। थोड़े ही ममयमें अफफलखाँ दिखलाई। गोपीनाथ ऐमी गभोर रात्रिम शिकाजीको निहत हो गए। शिवाजी ने भी अपना अङ्गिकार पालन