पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५८८

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५८६ गोमांस-गामिवो गोमांस (म० क्लो० ) गोमांस ६ तत् । गोका मांस । चरक गोमित्री-दक्षिण देशमें रहनेवाली वाल्मीक ब्राह्मणों के के मतसे इसका गुण-वायु, पीनम, विषमज्वर, शुष्क अन्तगत एक श्रेणी। इनकी उत्पत्ति के विषयमें प्रवाद कास, श्रम, अग्निवृद्धि भोर क्षयरोगनाशक है । (चरक मृत है कि जब थोरामचन्द्रजीने वाल्मीकि ऋषिको यथेष्ट धन २७ ९ध्य ५ ) सुश्रुतके मतमे इमका गुण- वाम, कास, दिया था तब ऋषिने उस धनका सदुपयोग करने के लिए प्रतिश्याय और विषमज्वर वायुनाशक एव श्रमजीवी एक यज्ञ करना निथय किया और इम हेतु अावू पहाड़ और वद्धि ताग्नि मनुषाके लिये विशेष हितकर हैं। पर वाल्मो केश्वरी देवीके मन्दिरमें अपना पाश्रम स्थापित ( सुश्रुत म व ४६ अ० ) शास्त्रके मतमे इसका किया। यज्ञारम्भके लिए उन्होंने दर दरमे ऋषियोंको माम ग्वानमे बहुत पाप होता है। अन्जानमे गोमांस खाने बुलाया। यज्ञमें गौतमजी, वशिष्ठजी, कगव, च्यवन आदि पर प्राजापत्य व्रतका अनुष्ठान कर पवित्र हो मकता है। ऋषियों के साथ साथ एक लाख अन्य ऋषिगण उपस्थित "गामा म भ गो मापन नरेत । (ममगा) यदि मानमे गोमाम हुए भक्षण करे तो उमके प्रायश्चित्तके लिये ममुद्रगामिनी व ते शिषा नक मुत्तमा वेदवित्तमाः। तेषां विहितमयाना गावापि विमलानि च ॥१६॥ किमी नदी तीर जा चान्द्रायण व्रतका अनुष्ठान (मि. व मा०पू०५८) . करे। व्रतको समाप्ति होने पर ब्राह्मणभोजन करावे अर्थात उम यजम आये हुए एक लाख ऋषि थे। वे और प्रत्येक ब्राह्मण को एक वृष और एक दुग्धवती गाय मच वेदपारग थे। उनमेंसे उन पचाम हजार ऋषियों- दान दे। ऐसा करने पर ज्ञानकृत गोमांस भक्षणका को गोमित्रो मंज्ञा हुई। जो गोवों को रक्षा करने के लिए प्रायश्चित्त होता है। ( ताला) नियत किये गये थे। मनानसे यदि अनेक वार गोमाम ग्वाया जाय तो इनके गोत्र ये हैं- संवत्सर कच्छ व्रतका अनुष्ठान करने पर पाप नाश होता प्रवर हिजजातिके लिए उपरोक्त प्रायथित करने के बाटभी १ भरद्वाज पुनर उपनयनादि मस्कार करना उचित है। २ वशिष्ठ वमिष्ठ। (प्रायवित्तविवेक ) ३ काश्यप काश्यप, वत्स ध्रुव । गोमामभक्षण ( म० ली. ) गोमामस्य भक्षणाम्, ६-तत्। ४ गाय काश्यप, वत्म, ध्र व । १ गौका मांस खाना । २ तालुस्थानमें जिह्याका प्रवेश। ५ आत्रेय पात्रेय, अचनान्, शशावाखा। गोमाक्षी ( म० स्त्री० ) कर्ण स्फोट, एक प्रकारको लता। ६ गौतम गोमाट ( मं० स्त्रो०) गवां माता, ६.तत्। १ सुरभि, ७ वत्स कश्यपको हो। २ मरुत् देवता। ८ कौण्डिन्य वशिष्ठ, मत्रावरुण, कौण्डिन्य । गोमायु (म० पु० स्त्रो०) गां विकतां वाचं मिनोतीति मा- ८ भार्गव भार्गव, च्यवन, आहावान, प्राष्टि रण। १ शृगाल, मियार, गोदड़। इसका मुत्र और षण और अनुपेक्षा पुरीषादि भक्षण निषिद्ध है । हिजाति यदि मूत्रादि भक्षण १० मुगल आङ्गिरम, ब्राह्य, मुहल । करे तो उसे चान्द्रायणवत करना चाहिये । एमक शब्द- ११ जमदग्नि जमदग्नि, भार्गव, प्रौर्व । से शुभाशुभका विचार किया जाता । एमान देखो। २ एक १२ पाङ्गिरम आङ्गिरम, ब्राह्य, मुगल . गन्धवका नाम। (रवश २६ प्र. ) ( लो०) ३ वश १३ कुत्स मान्धाता, आङ्गिरस, कौत्स । लोचन। १४ कौशिक गोमायुभक्ष (म पु०) गोमायु भक्षयति भक्ष. अण. उप १५ विखामित्र विश्वामित्र, हैवत, हैद, अषस । पदमः। नीच जातिविशेष। १६ पुलस्त्य गोत्र